कानून को पहियों तले रौंदते नाबालिग!
कानून को पहियों तले रौंदते नाबालिग!
महाराष्ट्र के पुणे शहर में हाल ही में एक बेहद दर्दनाक हादसा हुआ। रात के तीन बजे दो युवा आईटी इंजीनियर अनीस अवधिया और अश्विनी कोस्टा अपने साथियों के साथ कल्याणी नगर में एक भोजनालय पर भोजन करके वापस लौट रहे थे। वे सभी दोस्त मोटरसाइकिलों पर सवार थे। जब वे कल्याणी नगर जंक्शन पर पहुंचे, तो बेलगाम रफ्तार से दौड़ती आ रही लग्जरी पोर्शे कार ने उन दोनों के मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी, मोटरसाइकिल गिरी और कार ने दोनों को कुचल डाला, जिससे दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। जब आरोपित कथित नाबालिग कार चालक को पकड़ कर जुवेनाइल कोर्ट में पेश किया गया तो उसे कुछ घंटे में इस दलील के साथ जमानत दी गई कि वह सड़क हादसों पर 300 शब्दों का निबंध लिखे। यह जुनाइल जस्टिस बोर्ड का कैसा फैसला है जिसके बारे में आम आदमी चीत्कार उठा है। क्या नाबालिग को कोई भी अपराध करने की छूट है। हमें याद आ रहा है निर्भया कांड का वह शैतान दरिंदा जिसे जेजेबी ने उस बेहद बर्बरता हैवानियत के आरोपी को किशोर सुधार गृह में रखने के बाद सिलाई मशीन गिफ्ट के साथ रिहा कर दिया था जबकि इस नाबालिग का निर्भया के साथ दरिंदगी बर्बरता में सबसे बर्बर रोल था और इस कांड के दूसरे आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई थी। क्या दो युवाओं की जिंदगी छीन लेने की सजा मात्र दो पन्नों का निबंध है?
पुणे की यह घटना कथित एलीट सोसाइटी के बिगड़ैल रईसजादों के उच्छृंखल हो कर मनमानी करते हुए कानून को तोड़ने और उनके सामने बेबस कानून के अंधा कानून साबित होने का जीता-जागता उदाहरण है। आरोपित को इसलिए कुछ ही घंटों में जमानत दे दी गई, क्योंकि वह 17 साल का नाबालिग है। वह पुणे के एक बड़े बिल्डर का बेटा है और 2 करोड़ रुपये की पोर्शे कार दौड़ा रहा था। अमीर पिता ने यह महंगी गाड़ी अपने नाबालिग बेटे के हवाले कर दी थी। इस साल मार्च में खरीदी गई इस गाड़ी पर लाइसेंस नंबर नहीं था क्योंकि रोड टैक्स के 44 लाख रुपये नहीं दिए गए थे। यहां तक कि गाड़ी चला रहे नाबालिग लड़के के पास कोई ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था।
वह कितना मासूम नाबालिग था, इसी से समझा जा सकता है कि इन दो युवाओं को कुचलने से ठीक पहले वह पब में शराब पार्टी करके आया था। आरोपी का एक वीडियो सामने आया, वीडियो में आरोपी दोस्तों के साथ शराब पीता हुआ दिख रहा था। पुलिस की मानें तो आरोपी नाबालिग ने हादसे से पहले कई पबों में पार्टी की थी। हादसे से पहले उसने दो पब में जाकर मात्र 90 मिनट में 48,000 रुपए खर्च कर दिए थे। पुणे के पुलिस आयुक्त अमितेश कुमार ने पत्रकारों को बताया कि नाबालिग ने 48,000 रुपये का बिल कोजी में चुकाया गया जो शनिवार रात 10 बजकर 40 मिनट पर किशोर और उसके साथियों द्वारा दौरा किया गया पहला पब था। कोजी रेस्त्रां द्वारा उन्हें सेवा देना बंद करने के बाद वे 12 बजकर 10 मिनट पर दूसरे पब ब्लैक मैरियट में चले गए। कुमार ने कहा, हमें पब का 48,000 रुपये का बिल मिला है, जिसका भुगतान नाबालिग के ड्राइवर ने किया था।
कोर्ट ने मामूली शर्त पर किशोर को रिहा कर दिया। अदालत के इस फैसले की खूब आलोचना हुई। पुलिस ने आरोपी, आरोपी के पिता, कोसी रेस्तरां के मालिक नमन प्रल्हाद भूतड़ा, इसके प्रबंधक सचिन काटकर और ब्लैक क्लब होटल के प्रबंधक संदीप सांगले को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया। पुणे की विशेष अदालत ने 24 मई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया। खास बात यह कि कानून की कमजोरी देखिए कि सरेआम दो लोगों की हत्या कर डालने वाले उस नाबालिग या उसके बाप के नाम का खुलासा तक करने पर पाबंदी है, क्योंकि कानून कहता है। नाबालिग अपराधी भी हो तो उसकी पहचान उजागर नहीं की जा सकती। क्या यह शर्मनाक नहीं है कि पब में बैठकर शराब पीने वाला, 2 करोड़ रुपये की कार बेलगाम रफ्तार से दौड़ाने वाला, दो युवाओं को कुचल डालने वाला नाबालिग होने के नाम पर आजाद घूम रहा है? यदि वह सच में नाबालिग है तो भी उसने एक नहीं, कई कानून तोड़े हैं। पहला वह 18 साल से कम उम्र का है, इसलिए उसका ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बन सकता और बिना लाइसेंस गाड़ी चलाना कानूनन अपराध है। दूसरा नाबालिग किसी पब या बार में जाकर शराब नहीं पी सकता, इस मामले का आरोपी सीसीटीवी में दोस्तों के साथ शराब पीता साफ नजर आ रहा है। तीसरा बिना पंजीकरण कोई भी गाड़ी सड़क पर नहीं चलाई जा सकती, जबकि वह मार्च से ही इस पोर्शे कार को बिना पंजीकरण और बिना नंबर प्लेट चला रहा था। इस मामले में उसके बाप पर भी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। चैथा शहरों में किसी भी वाहन की अधिकतम गति सीमा तय होती है, इस मामले में उसने यह कानून भी तोड़ा, क्योंकि जांच में पता चला कि हादसे के समय कार की रफ्तार 250 किलोमीटर प्रति घंटा थी और इतनी रफ्तार की भारत के किसी भी शहर में अनुमति नहीं है।
गौरतलब है कि शराब पीकर गाड़ी चलाने और दुर्घटना में दो लोगों की मौत से जुड़े इस मामले में आरोपी को जमानत मिलने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई।क्या जुवेनाइल कोर्ट को पता नहीं कि बालिग होने के करीब पहुंच चुके नाबालिग पर भी वयस्क की तरह केस चलाया जा सकता है? दिल्ली के निर्भया केस के बाद कानून ही बन चुका है कि नाबालिग अपराधी भी बालिग की तरह है। उसे अदालत में अपनी उम्र याद आ गई, पर शराब पीते हुए खुद का नाबालिग होना याद नहीं आया? जुवेनाइल अदालत ने इस शैतान कथित नाबालिग को जमानत पर रिहा कर दिया और उसे सड़क सुरक्षा पर तीन सौ शब्दों का निबंध लिखने और पंद्रह दिन ट्रैफिक कंट्रोल में मदद करने की शर्त जोड़ दी।
आपको बता दें कि इस पूरे घटनाचक्र के सामने आने के बाद इस पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। इन्हें संज्ञान में लेते हुए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भी माना कि बोर्ड का रुख घटना की गंभीरता के अनुरूप नहीं है। पुलिस ने इस मामले में ऊपरी अदालत का रुख किया है। इस बीच बिल्डर पिता समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही कथित नाबालिग आरोपी को 5 जून तक किशोर गृह में रखने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि ऐसे मामले एक नकारात्मक संदेश देते हैं यदि कोई साधन सम्पन्न पैसा और पावर वाला है तो किसी को कुचलकर भी आजाद घूम सकता है। पूर्व में भी ऐसे कई नकारात्मक संदेश देने वाले हादसे सामने आ चुके हैं। मुंबई का सलमान केस हो या पुणे का यह हादसा, इनमें कार्रवाई दिखावे की होती है,ऐसी स्थिति में न्याय मिलेगा यह तो महज कल्पना मात्र है।
यह घटना महज दो इंजीनियरों की सड़क दुर्घटना में मौत नहीं है यह दो परिवारों पर वज्रपात कर उनके भविष्य को चैराहे पर खड़ा कर देने का अपराध है। आज कल न्यूक्लियर फैमिली है उनके इकलौता जवान बेटा यदि ऐसी दर्दनाक मौत का शिकार बन जाए तो बूढ़े मां-बाप और परिवार के सामने अंधेरा छा जाता है।
लुंज पुंज नाकाम सिस्टम के अंधे और लचीले कानून का फायदा उठा रहे अपने मजे और अय्याशी कर रहे एक साल बाद वयस्क होने वाले को नाबालिग का कानूनी फायदा देना किसी को सड़क पर चींटी की तरह कुचल कर हत्या करने का लाइसेंस जारी करने जैसा है। किसी शराबी, किसी हत्यारे को केवल इसलिए छोड़ देता है कि उसके दस्तावेजों में उम्र 18 साल से कम लिखी हैं। ऐसे कानून को ही अंधा कानून या अंधेर नगरी चैपट राजा का खिताब दिया जा सकता है। इस सिस्टम को और ऐसे कानून को कौन सा संविधान और सरकार संरक्षण देता है? क्या यह जनसापेक्ष कहा जा सकता है?
ताजा अपडेट के मुताबिक अब एक ड्राइवर यह दावा कर रहा है कि गाड़ी नाबालिग नहीं वह चला रहा था। घटना के चार दिन बाद इस ड्राइवर का यह दावा साफ बताता है कि चांदी के जूते में कितना ताकत है। पैसे से खरीदा ड्राइवर मालिक और बेटे को बचाने के लिए खुद को गुनाहगार बता रहा है क्योंकि उसे पता है कि पूंजीपति मालिक पुलिस और अदालत से देर सवेर उसे बरी करा लेगा। शर्मनाक से भी शर्मनाक स्थिति है यह यदि सही जांच एजेंसी जांच करे तो बीच में आकर जुर्म कबूलने वाले ड्राइवर को भी जांच को भटकाने के आरोप में जेल की सजा सुनाई जानी चाहिए। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)