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विधायकों का कदाचरण और बचाव

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

जन प्रतिनिधियों के कदाचरण को क्या उनका विशेषाधिकार मान लेना चाहिए? करेला और नीम चढ़ा वाली बात तो तब सामने आती है जब विधायक सत्तारूढ़ दलों के होते हैं। पूर्वोत्तर भारत के राज्य त्रिपुरा में इसी प्रकार के एक मामले ने तूल पकड़ लिया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सत्तारूढ़ भाजपा का एक विधायक विधानभवन में अश्लील वीडियो देख रहा था। इस विधायक के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गयी। विधानसभा में 7 जुलाई को वित्त मंत्री प्रणजीत सिंगा राय वर्ष 2023-24 का बजट पेश कर रहे थे लेकिन एक जनप्रतिनिधि के कथित कदाचरण के चलते विपक्षी दलों ने हंगामा किया। इसी के चलते पांच विपक्षी विधायक निलंबित भी किये गये हैं। मुख्यमंत्री माणिक साहा ने इसे अफसोसजनक बताया लेकिन मूल मुद्दे पर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा है। इस तरह के जनप्रतिनिधि के खिलाफ क्या कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? कम से कम चर्चा तो करायी ही जानी चाहिए।
त्रिपुरा में बीते दिनों कांग्रेस के दो विधायकों गोपाल रॉय और बिरजीत सिन्हा को छोड़कर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, टिपरा मोथा तथा कांग्रेस के अन्य सभी विपक्षी विधायकों ने पांच विपक्षी सदस्यों को निलंबित करने के फैसले के विरोध में बजट सत्र के पहले दिन बहिर्गमन किया। निलंबित होने वाले विपक्षी विधायकों में सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य एवं कांग्रेस विधायक सुदीप रॉयवर्मन भी शामिल हैं। विधानसभा में जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई विपक्षी दल के नेता अनिमेष देववर्मा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक जादव लाल नाथ के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए अपने स्थगन प्रस्ताव की स्थिति के बारे में जानना चाहा। गौरतलब है कि श्री नाथ को इस साल मार्च में पिछले विधानसभा सत्र के दौरान कथित तौर पर अश्लील वीडियो देखते हुए पकड़ा गया था। विधानसभा अध्यक्ष विश्वबंधु सेन ने श्री देववर्मा को बोलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और इसके बजाय वित्त मंत्री प्रणजीत सिंगा रॉय को 2023-24 वित्तीय वर्ष के लिए बजट पेश करने का निर्देश दिया। विपक्षी नेता सभी 27 विपक्षी विधायकों के साथ सदन के बीचोंबीच आ गए।
विपक्षी सदस्य श्री नाथ के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए नारा लगाया और 40 मिनट तक नारेबाजी और हंगामा जारी रहा। विरोध के दौरान अचानक टिपरा मोथा के तीन विधायक नंदिता रियांग, बृशकेतु देववर्मा और रंजीत देववर्मा सदन में मेज पर चढ़ गए तथा अपना विरोध जारी रखा। विरोध एवं हंगामा से व्यथित होकर मुख्यमंत्री डॉ. माणिक साहा ने विधानसभा अध्यक्ष से बजट सत्र के दौरान सदन की मर्यादा को भंग करने के लिए पांच विपक्षी विधायकों को सत्र से निलंबित करने का अनुरोध किया। नतीजतन, विस अध्यक्ष सेन ने कांग्रेस विधायक सुदीप रॉय वर्मन, टिपरा मोथा विधायकों- विरशकेतु देववर्मा, रंजीत देववर्मा और नंदिता रियांग के साथ-साथ माकपा विधायक नयन सरकार को दिन के कामकाज से निलंबित कर दिया। फैसले का विरोध करते हुए कांग्रेस के दो विधायकों को छोड़कर पूरा विपक्ष सदन से बहिर्गमन कर गया जब अध्यक्ष ने अपना फैसला वापस लेने से इनकार कर दिया।
त्रिपुरा विधानसभा में विपक्ष के हंगामे और लगातार विरोध के बीच, वित्त मंत्री प्रणजीत सिंगारॉय ने 2023-24 वित्तीय वर्ष के लिए 611.3 करोड़ रुपये के घाटे के साथ 27654.4 करोड़ रुपये का बजट पेश किया। श्री सिंगारॉय ने बजट पेश करते हुए कहा कि बजट में पिछले साल के संशोधित अनुमान की तुलना में 9.87 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है और पूंजीगत व्यय में 22.28 प्रतिशत की वृद्धि का प्रस्ताव है। त्रिपुरा में विधानसभा की कार्यवाही में बाधा डालने को लेकर विधानसभा अध्यक्ष ने विपक्षी दलों के पांच विधायकों को दिन भर के लिए निलंबित कर दिया गया। हालांकि, बाद में उनका निलंबन रद्द कर दिया गया। दरअसल, बजट सत्र शुरू होने के कुछ मिनट बाद ही टिपरा मोथा पार्टी (टीएमपी), सीपीआई-एम और कांग्रेस से जुड़े विपक्षी नेताओं ने भाजपा विधायक जादब लाल देबनाथ के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए नारेबाजी शुरू कर दी। इस साल की शुरुआत में भाजपा विधायक जादब लाल देबनाथ विधानसभा में एक आपत्तिजनक वीडियो देखते हुए पाए गए थे। इस मुद्दे को लेकर विपक्ष के नेता अनिमेष देबबर्मा ने भाजपा विधायक के विवाद पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश किया, जिसे अध्यक्ष ने खारिज कर दिया। इसके बाद विपक्षी नेताओं का विरोध शुरू हो गया।
त्रिपुरा में किसी भी पार्टी को सरकार बनाने का बहुमत नहीं मिला था। विधानसभा चुनाव में बिना किसी सहयोगी दल के चुनाव लड़ने वाली और 13 सीटें जीतने वाली नई क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-इंडिजिनियस फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) और वाम-कांग्रेस गठबंधन के मत प्रतिशत में महत्वपूर्ण पैठ बनाई। वर्ष 2021 में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को लेकर गठित इस पार्टी का मुख्य जोर राज्य
की 60 विधानसभा सीटों में से जनजातीय बहुल 20 सीटों पर रहा। जनजातीय लोगों ने इस नयी नवेली पार्टी पर भरोसा भी किया। टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 13 सीटों पर उसने जीत हासिल की। पार्टी को लगभग 19 प्रतिशत मत मिले। क्षेत्रीय पार्टी के उम्मीदवार सुबोध देब बर्मा ने चरिलाम निर्वाचन क्षेत्र में उपमुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा को 850 से अधिक मतों से हराया।
भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन ने 60 सदस्यीय विधानसभा में 33 सीटें जीतकर सत्ता तो बरकरार रखी लेकिन 2018 के मुकाबले उसे 10 सीटों का नुकसान हुआ। ऐसे में उसके पास एक स्पष्ट बहुमत है। इस स्थिति में उसे टिपरा मोथा से मदद लेने की जरूरत नहीं पड़ी। भगवा पार्टी ने 55 सीटों पर चुनाव लड़ा और 32 सीटों पर जीत हासिल की, जो 2018 की तुलना में तीन कम है। पार्टी को
38.97 प्रतिशत मत मिले। आपसी गुटबाजी से प्रभावित आईपीएफटी केवल एक सीट पर विजयी होने में कामयाब रही, जबकि पांच साल पहले उसे आठ सीटें मिली थीं। इस बार उसका मत प्रतिशत महज 1.26 फीसदी रहा। अब एक विधायक
के कथित कदाचरण को लेकर राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है तो मुख्यमंत्री को इस पर विचार करना होगा। (हिफी)

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