अर्थव्यवस्था पर मोदी का आकलन

(अखिलेश पाठक-हिफी फीचर)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता से वादा किया है कि यदि उनको देश सेवा का तीसरा कार्यकाल मिला तो भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। पीएम मोदी की इस भविष्यवाणी को कुछ लोग राजनीतिक चश्में से देखते हैं। ऐसा अस्वाभाविक भी नहीं है लेकिन निष्पक्ष रूप से व्यवस्थाओं पर नजर रखने वाले पहले से यह कहते आए हैं। अब तो वित्तीय परामर्शदाता डेलायॅट इंडिया ने भी एक रिपोर्ट मंे कहा है कि वैश्विक अनिश्चितताएं जारी रहने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था का जुझारूपन कायम रहेगा। भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2023-24 में ही 6 से 6.3 प्रतिशत तक रहेगी। इस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आकलन की पुष्टि होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों भाषण के दौरान एक बड़ी भविष्यवाणी की। उन्होंने कहा कि उनके तीसरे कार्यकाल के दौरान भारत दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन जाएगा। पीएम ने इसे अपनी गारंटी के रूप में भी पेश किया। कई वैश्विक संस्थाओं ने भी पिछले साल अनुमान लगाया था कि भारत 2027-28 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दरअसल भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2011 के बाद से क्रय शक्ति समानता के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अक्टूबर 2022 में भविष्यवाणी की थी कि भारत 2028 तक जर्मनी और जापान को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
संगठन का अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था, जो वर्तमान में लगभग 3.75 ट्रिलियन डॉलर है, वित्त वर्ष 28 तक 5 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी। आईएमएफ ने अनुमान लगाया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 31 ट्रिलियन डॉलर के साथ शीर्ष पर रहेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था का 24 फीसद हिस्सा बनेगी। इसके बाद चीन का 25.7 ट्रिलियन डॉलर और वैश्विक जीडीपी में 20 फीसद हिस्सा होगा। वहीं भारत 5.2 ट्रिलियन डॉलर और वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4 फीसद के साथ तीसरे स्थान पर होगा। इसी तरह, भारतीय स्टेट बैंक ने जुलाई में कहा था कि देश की वित्त वर्ष 2028 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है, जो 2014 से सात पायदान ऊपर है, जब यह 10वें स्थान पर था। एसबीआई इकोरैप- बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 28 तक तीसरा स्थान हासिल करने के लिए, भारत को 2027 तक (डॉलर के संदर्भ में) 8.4 फीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) की आवश्यकता है। इसका मतलब प्रति वर्ष 11-11.5 फीसद की जीडीपी वृद्धि (शब्दों में) है, जो हासिल करने लायक है। वर्ष 2023 में भारत की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 16 फीसद थी।
विश्व बैंक के अनुसार, 2011 में क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के मामले में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। 2005 में यह 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और छह वर्षों में सात पायदान ऊपर पहुंच गई। पीपीपी माप का उपयोग कीमतों में अंतर को समायोजित करके लोगों की अर्थव्यवस्था और आय की तुलना करने के लिए किया जाता है।
2023 के लिए आईएमएफ के आंकड़ों के अनुसार, क्रय शक्ति समानता के मामले में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में संयुक्त राज्य अमेरिका की हिस्सेदारी 15.39 फीसद है, इसके बाद चीन की 18.92 फीसद और भारत की 7.47 फीसद है।
चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6-6.3 प्रतिशत रहने की संभावना जताते हुए डेलॉयट इंडिया ने कहा है कि वैश्विक अनिश्चितताएं कम होने पर अगले दो साल में इसकी वृद्धि दर सात प्रतिशत से भी अधिक रह सकती है। वित्तीय परामर्शदाता डेलॉयट इंडिया ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक अनिश्चितताएं जारी रहने के बावजूद भारत में मजबूत आर्थिक गतिविधियां जारी हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के जुझारूपन को ध्यान में रखते हुए डेलॉयट आर्थिक परिदृश्य को लेकर आशावादी है। रिपोर्ट कहती है, ‘‘इस वर्ष और अगले साल के लिए हमने अपनी उम्मीद जता दी है। डेलॉयट को उम्मीद है कि भारत की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023-24 में छह से 6.3 प्रतिशत रहेगी और उसके बाद इसका परिदृश्य और भी मजबूत
रहेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर वैश्विक अनिश्चितताएं कम होती हैं तो अगले दो वर्षों में भारत की वृद्धि दर सात प्रतिशत से भी अधिक रह सकती है। डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा, ‘‘चालू वित्त वर्ष के लिए हमारा वृद्धि अनुमान अप्रैल जैसा ही है। हालांकि, पिछले वित्त वर्ष के बेहतर नतीजों ने हमारे तुलनात्मक आधार को ऊंचा कर दिया है। अर्थव्यवस्था में तेजी को देखते हुए हमने वृद्धि अनुमान की निचली सीमा बढ़ा दी है। विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने भी कहा कि भारत वैश्विक सुस्ती के दौर में कई ऐसे कदम उठा रहा है जो उसे आगे रखने में मदद कर रहे हैं। विश्व बैंक के शीर्ष पद पर पहुंचने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति बंगा ने कहा कि भारत कोविड महामारी के समय पैदा हुई चुनौतियों से मजबूत बनकर उभरा है, लेकिन उसे यह रफ्तार आगे भी कायम रखने की जरूरत है। बंगा ने कहा, ‘‘भारत वैश्विक स्तर पर कायम सुस्ती के बीच काफी कुछ ऐसा कर रहा है जो उसे आगे रखने में मदद कर रहे हैं। भारत के पक्ष में एक खास बात यह है कि इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ा हिस्सा घरेलू स्तर का है।
बंगा ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर सुस्ती होने के बावजूद अपने घरेलू खपत की वजह से सुरक्षित है। उच्च आय वाली नौकरियों में संभावित वृद्धि के बारे में पूछे जाने पर बंगा ने कहा, ‘‘हमें यह समझना होगा कि ये नौकरियां कहां पर हैं। ये नौकरियां प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हैं और बहुत कम संख्या में हैं। फिर विनिर्माण क्षेत्र में ऐसी नौकरियां हैं। भारत के सामने फिलहाल यह मौका है कि वह ‘चीन प्लस वनश् रणनीति का फायदा उठाए।
चीन प्लस वन रणनीति का मतलब है कि दुनिया के विकसित देशों की कंपनियां अब अपने विनिर्माण केंद्र के तौर पर चीन के साथ किसी अन्य देश को भी जोड़ना चाहती हैं। इसके लिए भारत भी एक संभावित दावेदार के तौर पर उभरकर सामने आया है। बंगा ने कहा, ‘‘भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि चीन प्लस वन रणनीति से मिलने वाला अवसर उसके लिए 10 वर्षों तक नहीं खुला रहेगा। यह तीन से लेकर पांच साल तक उपलब्ध रहने वाला अवसर है जिसमें आपूर्ति श्रंखला को अन्य देश में ले जाने या चीन के साथ अन्य देश को जोड़ने की जरूरत है। (हिफी)