कजाकिस्तान में मोदी का संदेश

भारत के प्राधनमंत्री नरेन्द्र मोदी को वैश्विक स्तर पर एक मार्गदर्शक के तौर पर देखा जाने लगा है। यह भारत के लिए भी गर्व की बात है। मोदी को लगातार तीसरी बार देश का नेतृत्व सौंपा गया है और देश के साथ वैश्विक स्तर पर उनकी कुछ योजनाएं भी चर्चा में आयी हैं। उदाहरण के लिए भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह पर एक टर्मिनल के संचालन के लिए 10 साल का अनुबंध हुआ है। यह पहली बार है जब भारत किसी विदेशी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लेगा। इससे वैश्विक व्यापार को एक नई दिशा मिलेगी। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की वार्षिक बैठक में आतंकवाद से निपटने, आपसी विवाद कम करने और विकास के रास्ते तलाशने पर विचार-विमर्श हुआ। भारत ने चीन के साथ सीमा विवाद को खत्म करने पर चीन के विदेशमंत्री से सकारात्मक वार्ता की तो आतंकवादियों को आश्रय देने वाले देशों को बेनकाब करने की अपील की। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण पढ़ते हुए कहाकि किसी भी रूप में आतंकवाद को उचित नहीं ठहराया जा सकता और हम उसे माफ नहीं कर सकते। इसके अलावा पीएम मोदी ने प्रौद्योगिकी की मौजूदा दौर में व्यापक संभावनाओं का भी उल्लेख किया है। कृत्रिम मेधा अर्थात एआई और साइबर सुरक्षा की दिशा में भी सावधान रहने की जरूरत पीएम मोदी ने बतायी है। निश्चित रूप से विश्व अब अंतरिक्ष में कदम रख रहा है लेकिन आपस में संघर्ष भी बढ़ता जा रहा है और प्रौद्योगिकी के खतरे भी। इसलिए पीएम मोदी के संदेश को शंघाई सहयोग संगठन के देशों ने काफी महत्वपूर्ण बताया है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कजाकिस्तान की अध्यक्षता में अस्ताना में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में पीएम मोदी की ओर से संदेश पढ़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एससीओ समिट को संबोधित किया। कार्यक्रम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी हिस्सा लिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मैसेज में राष्ट्रपति लुकाशेंको को भी बधाई दी और कहा कि मैं संगठन के नए सदस्य के रूप में बेलारूस का स्वागत करता हूं. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि हम आज महामारी के प्रभाव, चल रहे संघर्षों, बढ़ते तनाव, विश्वास की कमी और दुनिया भर में हॉटस्पॉट की बढ़ती संख्या के चलते एकत्र हुए हैं। पीएम मोदी ने कहा कि इन घटनाओं ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण दबाव डाला और उन्होंने वैश्वीकरण से उत्पन्न कुछ समस्याओं को और बढ़ा दिया है। ऐसे में हमारी सभा का उद्देश्य इन घटनाक्रमों के परिणामों को कम करने के लिए साझा आधार खोजना है।
पीएम मोदी ने कहा कि आर्थिक विकास के लिए मजबूत कनेक्टिविटी की जरूरत होती है. इससे हमारे समाजों के बीच सहयोग और विश्वास का मार्ग भी खुल सकता है. कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान जरूरी है. पीएम मोदी ने कहा कि एससीओ को इन पहलुओं पर गंभीरता से विचार-विमर्श करने की जरूरत है।
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने पीएम मोदी के मैसेज को सुनाते हुए कहा कि स्वाभाविक रूप से आतंकवाद का मुकाबला करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो यह क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
एससीओ को एक सिद्धांत-आधारित संगठन बताते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इस समय यह जरूरत है कि हम अपनी विदेश नीतियों के आधार के रूप में संप्रभुता स्वतंत्रता क्षेत्रीय अखंडता में हस्तक्षेप न करें।आतंकवाद को सुरक्षित पनाह देने वाले देशों को अब अलग-थलग करना होगा। किसी भी रूप की अभिव्यक्ति में आतंकवाद को उचित नहीं ठहराया जा सकता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब इसे बेनकाब करना ही होगा। देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों के विपरीत कोई भी कदम न उठाने पर भी सहमति व्यक्त करनी होगी। इसी के साथ पीएम ने आतंकवाद से निपटने को प्राथमिकता देने का आह्वान किया।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसमें 9 सदस्य देश शामिल हैं, जैसे भारत गणराज्य, इस्लामी गणराज्य ईरान, कजाकिस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, किर्गिज गणराज्य, इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज्बेकिस्तान गणराज्य।
यह भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वह क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान के साथ रचनात्मक चर्चा में शामिल हो सकता है और अपने सुरक्षा हितों को उनके समक्ष रख सकता है। हालाँकि सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में पाकिस्तान के साथ बैठकों से परहेज किया है, परंतु इस दौरान सरकार ने पाकिस्तान और चीन के साथ चर्चाओं के लिए एससीओ का उपयोग किया है, यहाँ तक कि हाल में भारत और चीन की सेनाओं के बीच लद्दाख गतिरोध के दौरान भी इसका उपयोग किया गया।
एससीओ अफगानिस्तान में तेजी से बदल रही स्थितियों और इस क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद से उत्पन्न होने वाली शक्तियों (जिनसे भारत की सुरक्षा और विकास को खतरा हो सकता है) से निपटने के लिये एक वैकल्पिक क्षेत्रीय मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
भारत के लिए इसलिये भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह पश्चिमी देशों के साथ भारत के मजबूत होते संबंधों के बीच वैश्विक राजनीति में भू-राजनीतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पाकिस्तान द्वारा भारत और अफगानिस्तान (तथा इसके आगे भी) के बीच भू-संपर्क की अनुमति न देना, भारत के लिये यूरेशिया के साथ अपने विस्तारित संबंधों को मजबूत करने में सबसे बड़ी बाधा रहा है। इसी कारण वर्ष 2017 में मध्य एशिया के साथ भारत का व्यापार मात्र 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग) का रहा, जबकि इसी दौरान रूस के साथ भारत का व्यापार लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। इसके विपरीत वर्ष 2018 में रूस के साथ चीन का व्यापार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक और मध्य एशिया के साथ 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था। मजबूत संपर्क के अभाव ने इस हाइड्रोकार्बन-समृद्ध क्षेत्र और भारत के बीच ऊर्जा संबंधों के विकास में भी बाधा उत्पन्न की है।
रूस द्वारा भारत को एससीओ में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करने के पीछे एक बड़ा कारण चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करना था। हालाँकि वर्तमान में जब भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया है, तो इसी दौरान रूस और चीन की बढ़ती निकटता भारत के लिये एक नई चुनौती बनकर उभर रही थी।
इसके अतिरिक्त रूस-चीन- पाकिस्तान त्रिकोणीय हितों के अभिसरण से क्षेत्र में उभरता नया समीकरण भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जिसे दूर करना बहुत ही आवश्यक है। भारत मध्य एशिया में अपनी पहुँच को मजबूत करने के लिये इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व से जुड़ी रूस की चिंताओं को भुना सकता है, इसके अतिरिक्त मध्य एशियाई देश भी इस क्षेत्र में भारत द्वारा एक बड़ी भूमिका निभाए जाने को लेकर उत्सुक हैं। हालाँकि इसके लिये भारत को पहले अपनी पकड़ को मजबूत करने पर विशेष जोर देना होगा।
इस संदर्भ में यूरेशिया में एक मजबूत पहुँच स्थापित करने के लिये चाबहार बंदरगाह के खुलने और अश्गाबात समझौते में भारत के शामिल होने का लाभ उठाया जाना चाहिये। इसके अलावा ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ के संचालन पर भी विशेष ध्यान देना होगा। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)