रानी दुर्गावती के आदर्श पर मोहन यादव

इतिहास से हमंे प्रेरणा मिलती है। मध्य प्रदेश के नये मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अभी हाल मंे एक लेख लिखा, जिसकी बहुत चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने रानी दुर्गावती की शैली को आदर्श माना है। रानी दुर्गावती के शासन मंे नारी की सुरक्षा और सम्मान अपने चरम रूप मंे था। बुंदेलखण्ड मंे ही कालिंजर नाम का एक राज्य था जहां के चंदेल राजा कीरत सिंह के घर में रानी दुर्गावती का जन्म हुआ था। उनका विवाह गोंडवाना के राजा दलपत शाह से संपन्न हुआ। राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद दुर्गावती ने राज्य की बागडोर संभाली थी। राज्य की सुरक्षा के लिए रानी दुर्गावती ने कई किलों का निर्माण कराया और कई किलों का जीर्णोद्धार भी कराया। इस प्रकार राज्य की सीमा को मजबूत करने के साथ उन्हांेने कृषि तथा व्यवसाय को विशेष रूप से संरक्षण दिया था। रानी दुर्गावती की सरपरस्ती मंे गोंडवाना एक समृद्ध राज्य बना। न्याय और समाज व्यवस्था के लिए रानी के प्रतिनिधि गांव-गांव मंे रहते थे और प्रजा की बात रानी स्वयं सुनती थीं। मध्य प्रदेश अब भारत गणराज्य का एक प्रदेश है, इसलिए सीमाओं पर किले बनाने की जरूरत नहीं है लेकिन नारी सुरक्षा और सम्मान तथा जनता की समस्याएं स्वयं सुनने और गांव-गांव अपने प्रतिनिधि तैनात करने की रणनीति मुख्यमंत्री मोहन यादव बना रहे हैं। रानी दुर्गावती को आदर्श बनाकर वह सरकार चलाना चाहते हैं। इसका यह मतलब भी नहीं कि मोहन यादव प्रजातंत्र की जगह राजतंत्र की वकालत करते हैं लेकिन राजतंत्र की जन कल्याणकारी नीतियां अपनाना श्रेयस्कर माना जाता है।
इतिहास गवाह है कि रानी दुर्गावती ने राज्य विस्तार के लिए कभी आक्रमण नहीं किये, लेकिन मालवा के बाज बहादुर द्वारा किये गये हमलों में उसे पराजित किया। गोंडवाना राज्य की रानी की शासन व्यवस्था और शौर्य की साख ने अकबर को भौचक्का कर दिया। अकबर ने आसफ खां के नेतृत्व में गोलों और बारूद से विशाल सेना का दल भेजा और गोंडवाना राज्य पर हमला कर दिया। आसफ खां का यह दूसरा आक्रमण था। पूर्व में वह पराजित हुआ था। इस भीषण संग्राम में जबलपुर के बारहा गाॅव के पास नाला के निकट तोपों की मार से जब गोंडवाना की सेना पीछे हटने लगी तो नाले में आई बाढ़ ने रास्ता रोक दिया। रानी समझ गयीं, उन्होंने अपने स्वाभिमान के लिए स्वयं को कटार घोंपकर आत्मबलिदान किया।
रानी दुर्गावती स्वाभिमान और स्वतंत्रता का प्रतीक मानी जाती है। वीरांगना दुर्गावती ने बलिदान की जिस परंपरा की शुरुआत की, उस पथ का कई वीरांगनाओं ने अनुसरण किया। रानी दुर्गावती के वंशज राजा शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथशाह को 1857 के महासंग्राम में शामिल होने और कविता लिखने पर अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया था। राजा शंकरशाह की पत्नी गोंड रानी फूलकुंवर ने पति व पुत्र के अवशेषों को एकत्र कर दाह संस्कार किया और 52वीं इंफ्रेट्री के क्रांतिकारी सिपाहियों को लेकर अपने क्षेत्र से सन् 1857 के युद्ध का नेतृत्व किया। अंत में रणभूमि में शत्रु से घिर जाने पर रानी फूलकुंवर ने स्वयं को कटार घोंप ली। गोंडवाना राज्य की पीढ़ियोंने भारत माता की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए रानी दुर्गावती की बलिदानी परंपरा को आगे बढ़ाया।
मोहन यादव दक्षिणी उज्जैन विधानसभा से विधायक हैं और मध्य प्रदेश के 19 वें मुख्यमंत्री के रूप में सेवारत हैं। वह 2013 से मध्य प्रदेश की विधानसभा के सदस्य के रूप में उज्जैन दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। मोहन यादव मध्य प्रदेश में बीजेपी का बड़ा ओबीसी चेहरा हैं। मोहन यादव की शैक्षणिक योग्यता पीएचडी है। सन् 2020 में उन्हें शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी और 2023 तक वह इस पद पर रहे। मोहन यादव का राजनीतिक करियर एक तरह से 1984 में शुरू हुआ जब उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को ज्वाइन किया। वह आरएसएस के भी सदस्य हैं। उन्होंने 2013 में उज्जैन दक्षिण से चुनाव लड़ा था और लगातार तीसरे चुनाव में यहां से विधायक निर्वाचित हुए हैं। इस बार उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी चेतन प्रेमनारायण यादव को 12941 वोटों से हराया था। मोहन यादव को 95699 वोट मिले थे।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने वही चुनौतियां थीं, जो किसी भी अचर्चित मुख्यमंत्री के सामने होती है। उन्हें तय करना था कि वो राजनीति की नई पिच पर कैसी बैटिंग करते हैं। जनता देख रही है कि उनकी अपनी सोच, संघ से तालमेल, भाजपा के एजेंडे को क्रियान्वित करने का संकल्प, नौकरशाही में धमक कायम करने का जज्बा और प्रशासनिक तंत्र को नए नई और सही दिशा में हांकने की क्षमता कितनी है। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद उनका पहला आदेश प्रदेश में धार्मिक स्थानों पर जोर से लाउड स्पीकर बजाने और खुले में मांस और अंडे की बिक्री पर सख्ती से रोक का रहा। इस फैसले को यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल की नकल के रूप में भी देखा गया। चूंकि मामला धार्मिक था, इसलिए इसके खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था। विपक्षी कांग्रेस ने इस आदेश में भाजपा और आरएसएस का साम्प्रदायिक एजेंडा देखा और इस आदेश को परोक्ष रूप से मुसलमानों के खिलाफ बताने की कोशिश भी की, लेकिन मोटे तौर पर जनता ने इसका स्वागत किया। यह नियम किसी धर्म विशेष के स्थलों के लिए न होकर सभी धार्मिक स्थलों के लिए था। इसी तरह खुले में मांस व अंडों की बिक्री पर रोक से उन छोटे दुकानदारों और ठेले वालों को जरूर परेशानी हुई है, जो सरेआम सड़क किनारे दुकान लगा कर ये सामग्री बेचकर अपना पेट भरते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों ने इसे इसलिए सही माना, क्योंकि खुले में मांस बिक्री स्वास्थ्य के लिए हानिकर है।
यादव सरकार का दूसरा अहम फैसला राज्य में विस चुनाव नतीजों के बाद भोपाल में एक भाजपा कार्यकर्ता पर हमला कर उसकी कलाई काटने के आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने का था। अल्पसंख्यक समुदाय के आरोपियों के घर बुलडोजर चलवाकर यादव ने यह संदेश दिया कि अपराध नियंत्रण और आरोपी तो सबक सिखाने के मामले में वो योगी सरकार की नीति पर चलेंगे।
एक और निर्णायक फैसला प्रदेश की राजधानी भोपाल में विवादित बीआरटीएस ( बस रैपिड ट्रासंपोर्ट सिस्टम) के खात्मे का था। देश के कुछ दूसरे शहरों की नकल पर भोपाल में िनर्मित बीआरटीएस शुरू से विवादों में रहा। करीब 13 पहले शिवराज सरकार के कार्यकाल में बना यह बीआरटीएस 360 करोड़ रुपये खर्चने के बाद भी न तो पूरी तरह बन सका और न ही राजधानी के यातायात को सुगम बनाने का इसका मूल उद्देश्य पूरा हो सका। सबसे बड़ी बात यह कि इससे मोहन यादव का स्वतंत्र फैसला नजर आया। (हिफी)
(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)