शक्तिपीठों में मिलती मां की विशेष कृपा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हिंदू धर्म में मां आदिशक्ति की उपासना का पावन पर्व नवरात्र बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि नवरात्र में मां दुर्गा की सच्चे मन से आराधना की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा की साधना विशेष रूप से फलदायी होती है। इन दिनों मां भगवती की प्रसन्नता के लिए जो भी पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं, उनमें दुर्गा सप्तशती का पाठ बेहद ही महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि नवरात्र में यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान से किया जाए, तो मां जगदंबे शीघ्र ही प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। शारदीय नवरात्र इस बार 3 अक्टूबर से प्रारंभ हुईं। उसी दिन से कलश स्थापना के साथ श्रद्धालु अपने घरों और मंदिरों में आदिशक्ति मां दुर्गा की साधना कर रहे हैं । आदिशक्ति मां का संदर्भ माता सती से माना जाता है। उनकी स्मृति में ही शक्तिपीठ स्थापित हुए। देवी के प्रसिद्ध और पावन मंदिरों में 52 शक्तिपीठ शामिल हैं। वैसे तो 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं लेकिन तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। इन शक्तिपीठ के अस्तित्व में आने के पीछे एक खास वजह है।
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष की मर्जी के बिना भोलेनाथ से विवाह किया था। इसी के दौरान एक बार राजा दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन अपनी बेटी सती और दामाद शिव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। माता सती बिना पिता के निमंत्रण के यज्ञ में पहुंच गईं, जबकि भोलेनाथ ने उन्हें वहां जाने से मना किया था। राजा दक्ष ने माता सती के सामने उनके पति भगवान शिव को अपशब्द कहे और उनका अपमान किया। पिता के मुंह से पति का अपमान माता सती से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ की पवित्र अग्नि कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिये।
भोलेनाथ पत्नी के वियोग को सह न सके। वह माता सती का शव लेकर तांडव करने लगे। इससे ब्रह्मांड पर प्रलय आने लगी, जिस पर विष्णु भगवान ने इसे रोकने के लिए सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिये। माता के शरीर के अंग और आभूषण 52 टुकड़ों में धरती पर अलग अलग जगहों पर गिरे, जो शक्तिपीठ बन गए। नवरात्र पर माता सती के इन्हीं शक्तिपीठ के दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।
देवी के 52 शक्तिपीठों के बारे में हम यहां संछेप में बता रहे हैं। ये शक्तिपीठ देश भर में हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर एक शक्तिपीठ है। यहां माता सती की मणिकर्णिका गिरी थी। यहां माता के विशालाक्षी और मणिकर्णी स्वरूप की पूजा होती है। इसी प्रकार माता ललिता देवी शक्तिपीठ, प्रयागराज में स्थित है। इस जगह पर माता सती के हाथ की अंगुली गिरी थी। यहां माता ललिता के नाम से जानी जाती हैं। रामगिरी, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश में माता सती का दायां स्तन गिरा था। इस स्थान पर माता शिवानी के रूप में पूज्यनीय हैं। वृंदावन में उमा शक्तिपीठ स्थित है। इसे कात्यायनी शक्तिपीठ के नाम से भी जानते हैं। यहां माता के बाल के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। देवी पाटन मंदिर, यूपी के बलरामपुर में स्थित है। यहां माता का बायां स्कंध गिरा था। इस शक्तिपीठ में माता पाटेश्वरी के रूप में विराजमान हैं। यूपी में ही नैमिसारण्य में ललिता देवी शक्तिपीठ हैं। राजधानी लखनऊ से सटे बख्शी का तालाब में मां चंद्रिका देवी का सिद्ध मंदिर है जिसकी महत्ता भी शक्तिपीठ से कम नहीं है ।
मध्य प्रदेश में देवी के दो शक्तिपीठ हैं। इनमें से एक हरसिद्धी देवी शक्तिपीठ है, जहां माता सती की कोहनी गिरी थी। यह रूद्र सागर तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित है। दूसरा शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ है। मध्यप्रदेश के अमरकंटक में माता का दांया नितंब गिरा था। यहां पर नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण यहां माता को नर्मता स्वरूप में पूजा जाता है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में शिवालिक पर्वत पर नैना देवी मंदिर है। यहां देवी सती की आंख गिरी थी। यहां माता देवी महिष मर्दिनी कही जाती हैं। यहां पर ज्वाला जी शक्तिपीठों है। हिमाचल के कांगड़ा में देवी की जीभ गिरी थी, इस कारण इसका नाम सिधिदा या अंबिका पड़ा। त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ- पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के पास त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ है। यहां माता का बायां स्तन गिरा था। ऐसी मान्यता है कि अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर में माता सती का गला गिरा था। यहां महामाया की पूजा होती है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता के पैर की एड़ी गिरी थी। यहां माता सावित्री का शक्तिपीठ स्थित है। अजमेर के पुष्कर में गायत्री पर्वत पर मणिबंध मंदिर है । यहां पर माता सती की दो पहुंचियां गिरी थीं। यहां माता के गायत्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
बिरात- राजस्थान में माता अंबिका का मंदिर है। यहां माता सती के बाएं पैर की उंगलियां गिरी थीं। गुजरात में माता अम्बाजी का मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता का हृदय गिरा था।गुजरात के ही जूनागढ़ में देवी सती का आमाशय गिरा था। यहां माता को चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि महाराष्ट्र के जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। उसके बाद यहां देवी के भ्रामरी स्वरूप की पूजा होने लगी। माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ त्रिपुरा में उदरपुर के राधाकिशोरपुर गांव में है। इस स्थान पर माता का दायां पैर गिरा था। यहां माता देवी त्रिपुर सुंदरी कहलाती हैं।
उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल में माता के सबसे अधिक शक्तिपीठ हैं। यहां पूर्व मेदिनीपुर जिले के तामलुक स्थित विभाष में देवी कपालिनी का मंदिर है। यहां माता की बायीं एड़ी गिरी थी। बंगाल के हुगली में रत्नावली में माता सती का दायां कंधा गिरा था। इस मंदिर में माता को देवी कुमारी नाम से पुकारा जाता है। इसी प्रकार मुर्शीदाबाद के किरीटकोण ग्राम में देवी सती का मुकुट गिरा था। यहां माता का शक्तिपीठ है और माता के विमला स्वरूप की पूजा की जाती है।
जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल में सालबाढ़ी गांव में माता का बायां पैर गिरा था। इस स्थान पर माता के भ्रामरी देवी के रूप की पूजा की जाती है।
बहुला देवी शक्तिपीठ- वर्धमान जिले के केतुग्राम इलाके में हम। यहां माता सती का बायां हाथ गिरा था। मंगल चंद्रिका माता शक्तिपीठ वर्धमान जिले के उज्जनि में है। यहां माता की दायीं कलाई गिरी थी। पश्चिम बंगाल के वक्रेश्वर में देवी सती का भ्रूमध्य गिरा था। इस स्थान पर माता को महिष मर्दिनी कहा जाता है। नलहाटी शक्तिपीठ बीरभूम के नलहाटी में हम। यहां माता के पैर की हड्डी गिरी थी। (हिफी)