स्मृति विशेष

लेखन से प्रेरणा दी मुंशी प्रेमचन्द ने

(एससी मिश्र-हिफी फीचर)
मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी और उर्दू साहित्य के महान लेखक थे। उन्होंने मुख्य रूप से कहानियां लिखीं जिनमें आदर्शोन्मुख यथार्थ दर्शाया गया है।

इस प्रकार इस ‘कलम के सिपाही’ ने उपन्यास सम्राट का दर्जा प्राप्त किया। प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों और उपन्यासों मंे सामाजिक यथार्थ को उभारा। उनका बहुचर्चित कहानी ‘कफन’ के घीसू-माधव आज भी समाज में मौजूद हैं लेकिन जिस तरह गांव वालों के उसने अंतिम संस्कार की व्यवस्था की, वे आदर्श पुरुष भी समाज में मौजूद हैं।

 

मुंशी प्रेमचन्द ने किसानों, मजदूरों और निम्न वर्ग के लोगों के संघर्षों को उभरा लेकिन बड़े घर की बेटी जैसी कहानी में बहू के आदर्श के रूप भी प्रस्तुत किया है। इसलिए मुंशी प्रेमचन्द की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। आज की पीढ़ी जो मोबाइल युग में परिवार को भूल गयी हैं और पुस्तकों के पढ़ने मंे भी उतनी रुचि नहीं दिखाती है, उसे प्रेमचन्द की कहानियां और उपन्यास पढ़ने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा।

 

हिंदी न केवल भारत की राष्ट्रभाषा है बल्कि अंग्रेजी एवं मंदारिन (चीन की भाषा) के बाद दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा भी है। प्रेमचंद जी को दुनिया उपन्यास सम्राट के तौर पर जानती है तथा साहित्य जगत में उनके लेखन से प्रभावित होकर उन्हें कलम के सिपाही का उपनाम देती है। प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था, उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब लाल तथा मां का नाम आनंदी देवी था। प्रेमचंद जब 7 वर्ष के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया, इसके पश्चात उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली।

विमाता की अवहेलना एवं निर्धनता के कारण उनका बचपन अत्यंत कठिनाइयों में बीता।
प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। जब वे पढ़ाई कर रहे थे, तभी 15 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह कर दिया गया। विवाह के बाद घर गृहस्थी का बोझ उनके कंधों पर आ गया था।घर चलाने तथा पढ़ाई का खर्चा जुटाने के उद्देश्य से उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।

किसी तरह से संघर्ष करते हुए उन्होंने बी.ए. तक की शिक्षा पूरी की। इस बीच उनका अपनी पहली पत्नी से अलगाव हो गया, जिसके बाद उन्होंने शिवरानी देवी से दूसरा विवाह कर लिया।

पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एक
अध्यापक के रूप में सरकारी नौकरी करने लगे एवं तरक्की करते हुए स्कूल इंस्पेक्टर के पद पर पहुंच गए। सन् 1920 ईस्वी में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया, तो प्रेमचंद ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया।

सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद वे साहित्य सेवा में लग गए और ब्रिटिश सरकार के विरोध में जनता को जागरूक करने के लिए उन्होंने कार्य करना शुरू कर दिया। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी प्रकाशन संस्था की भी शुरुआत की तथा अपने संपादन में ‘हंस’ नामक पत्रिका निकालना प्रारंभ की।

आर्थिक अभाव एवं अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण मजबूरन उन्हें इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा। ‘हंस’ के अतिरिक्त उन्होंने ‘मर्यादा’, ‘माधुरी’ एवं ‘जागरण’ जैसी पत्रिकाओं का भी संपादन किया।

प्रेमचंद पहले नवाबराय के नाम से लिखते थे। जब उनकी कुछ रचनाओं, जिनमे ‘सोजेवतन’ प्रमुख है, को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया तो उन्होंने प्रेमचंद के छद्म नाम से लिखना शुरू किया। बाद में वे इसी नाम से दुनिया में प्रसिद्ध हो गए। प्रेमचंद ने सबसे पहले जिस कहानी की रचना की थी उसका नाम है ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’। उन्होंने 18 उपन्यासों की रचना की, जिनमे सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, गोदान, गबन, प्रतिज्ञा, रंगभूमि उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा रचित 300 से अधिक कहानियों में कफन, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, ईदगाह, बड़े घर की बेटी, पंच परमेश्वर उल्लेखनीय हैं।

उनकी कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित हुआ है। उनके द्वारा रचित नाटकों में संग्राम, कर्बला, रूठी रानी तथा प्रेम की बेदी प्रमुख है। उन्होंने इन सबके अतिरिक्त कई निबंध तथा जीवन-चरित्र भी लिखे।

उनके निबंधों का संग्रह प्रेमचंद के श्रेष्ठ निबंध नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं। उन्होंने कुछ भाषाओं में पुस्तकों का अनुवाद भी किया, जिसमें सृष्टि का प्रारंभ, आजाद, अहंकार, हड़ताल तथा चांदी की डिबिया का नाम उल्लेखनीय है।

प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से भारत के दलित एवं उपेक्षित वर्गों का नेतृत्व करते हुए उनकी पीड़ा एवं विरोध को वाणी प्रदान की। उनकी रचनाएं उद्देश्य परक होती थीं। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने न केवल सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणामों की व्याख्या की, बल्कि उनके निवारण के उपाय भी बताए। उन्होंने बाल विवाह, बेमेल विवाह, विधवा विवाह, सामाजिक शोषण, अंधविश्वास इत्यादि सामाजिक समस्याओं को अपनी कृतियों का विषय बनाया एवं उनमें यथासंभव इनके समाधान भी प्रस्तुत किए। ‘कर्म भूमि’ नामक उपन्यास के माध्यम से उन्होंने छुआछूत की गलत भावना एवं अछूत समझे जाने वाले लोगों के उधर उद्धार का मार्ग बताया है।

उन्होंने लगभग अपनी सभी रचनाओं में धर्म के ठेकेदारों की पूरी आलोचना की है एवं समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए उन्हें जिम्मेदार मानते हुए जनता को उनसे सावधान रहने का संदेश दिया है। ‘सेवासदन’ नामक उपन्यास के माध्यम से उन्होंने नारी शोषण के खिलाफ आवाज उठाई है।

अपनी कई रचनाओं में उन्होंने हिंदू- मुस्लिम सांप्रदायिकता पर गहरा आघात किया एवं ‘कर्बला’ नामक नाटक के माध्यम से उनमें एकता व भाईचारा बढ़ाने का सार्थक प्रयास किया। वह समाज में साहित्यकार के साथ ही समाज सुधारक के रूप में भी पूजे गए। उन्होंने किसानों के ऊपर हो रहे अत्याचारों के ऊपर भी अपनी लेखनी को चलाया।

उनकी रचनाओं में यथार्थ के दर्शन होते हैं। उन्हें लगता था कि सामाजिक शोषण एवं अत्याचार का उपाय गांधीवादी दर्शन में है, इसलिए उनकी रचनाओं में गांधीवादी दर्शन की भी प्रधानता है।

प्रेमचंद ने गांव के किसान एवं मोची से लेकर शहर के अमीर वर्ग एवं सरकारी मुलाजिमों तक को अपनी रचनाओं का पात्र बनाया है। प्रेमचंद को उनके महान उपन्यासों में उत्कृष्ट कथाशिल्प एवं प्रस्तुतीकरण के कारण उपन्यास सम्राट की उपाधि से भी विभूषित किया गया। 8 अक्टूबर 1936 को उन्होंने इस संसार से विदा ले ली। यह समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा। (हिफी)

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