लेखक की कलम

मुस्लिम वोटबैंक की सियासत

सचमुच में यह हमारे देश की राजनीति के लिए गंभीर चिंता की बात है कि मुस्लिम वोटबैंक को लेकर चुनाव में जीत-हार के समीकरण बनाए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर गौर करें। वह वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) को लेकर चुनाव आयोग पर आक्रामक हैं क्योंकि उन्होंने बिहार के चुनाव में महागठबंधन की हार का कारण एसआईआर को माना है। एसआईआर पूरे देश में हो रही है लेकिन सबसे ज्यादा विरोध पश्चिम बंगाल में है। यहां पर मुस्लिम आबादी लगभग 35 फीसदी अनुमानित है। भाजपा की नजर में इनमें बांगला देशी मुस्लिम ज्यादा हैं और ममता बनर्जी के मुख्य वोट बैंक हैं। अब एक नजारा महाराष्ट्र के वार्सिलोना का देखें। यह भी मुस्लिमबहुल क्षेत्र है। इसके अन्तर्गत पांच पार्षद सीट आती हैं । बृहनमुंबई कारपोरेशन अर्थात बीएमसी के चुनाव होने वाले हैं। भाजपा को दो सीटों पर यहां जीत मिली थी। यहां बीजेपी को मुसलमानों का समर्थन मिलता है।
ममता बनर्जी ने अपने राज्य में एन्टी एसआईआर रैली की और अपने कथित वोटबैंक को यकीन दिलाया कि उनकी सरकार उनके लिए लड़ेगी । यहां ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के महागठबंधन इंडिया की करारी हार हुई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसके पीछे चुनाव आयोग का हाथ बताया है। उन्होंने कहा है कि बिहार में विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार की वजह यह थी कि वे चुनाव से ठीक पहले स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन
(एसआईआर) के जरिए चुनाव आयोग द्वारा खेले गए खेल को समय पर नहीं समझ पाए। उन्होंने कहा कि जब तक उन्हें खेल का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए वे ठीक से मुकाबला भी नहीं कर पाए।ममता बनर्जी ने यह बात पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के बंगन में एक बड़ी एंटी-एसआईआर रैली को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने दावा किया कि उन्हें चुनाव आयोग की चाल का समय रहते पता चल गया था, इसलिए वे अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में इस चाल को पूरी तरह से कामयाब नहीं होने देंगी। ममता बनर्जी ने कहा, पश्चिम बंगाल, बिहार नहीं है। बीजेपी पश्चिम बंगाल पर कब्जा करने के लिए बेताब है और अपने लक्ष्य को पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है लेकिन यह उनका सपना ही रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो तृणमूल कांग्रेस देश भर में लोगों को एसआईआर के खिलाफ एकजुट करके एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करेगी।ममता बनर्जी ने चेतावनी देते हुए कहा, अगर आप मुझे चोट पहुंचाएंगे, तो मैं पूरे देश को हिला दूंगी। चुनाव खत्म होने के बाद मैं पूरे देश में घूमूंगी। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पैतृक संबंध पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से होने के कारण, बीजेपी उन्हें बांग्लादेशी तक करार दे सकती थी, अगर उनका जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में न हुआ होता। उन्होंने कहा कि, लोगों को सिर्फ इसलिए बांग्लादेशी कहा जाता है क्योंकि वे बंगाली बोलते हैं।
उधर, महाराष्ट्र में बीएमसी चुनाव में इस बार दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। पिछले बीएमसी चुनाव 2017 में हुए थे। अब 7 साल के बाद फिर चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में यहां समीकरण बदल गए हैं। एनसीपी में दो हिस्से हो गए हैं, वहीं शिवसेना भी दो हिस्सों में बंट चुकी है। वर्सोवा फिल्मी हस्तियों और मछुआरों के लिए जाना जाता है। मुंबई में चुनावी दृष्टि से वर्सोवा विधानसभा काफी महत्वपूर्ण है। मुस्लिम बाहुल्य वर्सोवा विधानसभा सीट के अंतर्गत आने वाले पांच बीएमसी प्रभागों में 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना-बीजेपी ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी, वहीं एमआईएम प्रभाग नंबर 63 में
तीसरे नंबर पर थी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीएमसी चुनाव में जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि जीत-हार का अंतर काफी कम होगा।
विधानसभा चुनाव 2024 में आघाड़ी का बीजेपी विरोधी वोट एकमुश्त उद्धव गुट को मिला लेकिन बीएमसी चुनाव में कांग्रेस के अलग होने और उद्धव गुट यदि मनसे के साथ जाता है, तो वोटों का बंटवारा होगा। 2009 में बनी वर्सोवा विधानसभा के हुए अब तक चार चुनाव में दो बार बीजेपी, एक बार कांग्रेस और एक बार उद्धव गुट ने विजय पाई है। वर्सोवा विधानसभा क्षेत्र में बीएमसी के पांच प्रभाग 59, 60, 61, 62 एवं 63 आते हैं। जबकि प्रभाग 64 एवं 68 का कुछ हिस्सा भी इस विधानसभा में आता है। 2009 में कांग्रेस के बलदेव खोसा विजयी हुए थे। उन्होंने शिवसेना के यशोधर फडसे को हराया था। 2014 और 2019 में बीजेपी की भारती लवेकर ने कांग्रेस के बलदेव खोसा को हराया था।
बीएमसी चुनाव के दौरान मुंबई की राजनीति बदली हुई है। कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा करके महाविकास आघाडी को झटका दिया है। वर्सोवा में जातीय समीकरण को देखते हुए कांग्रेस के अकेले लड़ने से उद्धव गुट को झटका लग सकता है। वहीं समाजवादी पार्टी, एमआईएम और कांग्रेस भी मुस्लिम वोटरों पर नजर गड़ाए हुए हैं। इसलिए बीएमसी चुनाव में मुस्लिम वोटों के बटंवारे के आसार बन रहे हैं जबकि बीजेपी की जीत-हार का फैसला उत्तर भारतीय, हिंदी भाषा और मराठी मतदाताओं के वोट पर टिका है। वहीं कांग्रेस को उम्मीद है कि मनसे के साथ गठबंधन का विरोध करने की वजह से उसे उत्तर भारतीय, मुस्लिम सहित अन्य जातियों के वोट मिलेंगे।
वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव के अनुसार वर्सोवा विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है। कुल 2 लाख 80 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की कुल संख्या लगभग 1 लाख 5 हजार है। इसमें उत्तर भारतीय मुस्लिम लगभग 44 हजार (16 फीसद) और अन्य मुस्लिम आबादी लगभग 61 हजार (22 फीसद) है। उत्तर भारतीय मतदाताओं की संख्या 61500 (22 फीसद), मराठी 57500 (21 फीसद), गुजराती, मारवाड़ी 22600
(8 फीसद) है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वर्सोवा में जातीय समीकरण को देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस के अलावा एमआईएम और सपा के लिए भी मौका है जबकि बीजेपी और उद्धव गुट ज्यादातर मराठी और हिंदी भाषा वोटरों पर निर्भर है। 2024 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस के लिए अनुकूल माहौल था, लेकिन गठबंधन के कारण यह सीट उद्धव गुट के पास चली गई। अब बात बिहार की करें तो यहां सीमांचल में मुसलमानों की आबादी ज्यादा है। विधानसभा चुनाव मंे जद(यू) के नेतृत्व वाले गठबंधन और राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन में ही मुकाबला था लेकिन सीमांचल मंे एआईएमआई के ओवैसी को पांच विधायक मिले हैं। हारून खान को मैदान में उतारा और वह विजयी हुए। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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