नायडू का परिवार कल्याण फार्मूला

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आंध्रप्रदेश के मुख्य मंत्री चंद्रबाबू नायडू का कहना है कि राज्य में हम नया कानून लेकर आ रहे हैं, जिसमें दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ पाएंगे। उन्होंने लोगों से अधिक बच्चे पैदा करने को कहा है।इसे राजनीतिक चश्मे न देखा जाए तो एक गंभीर बहस कर झलक दिखाई देती है । नायडू केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए का हिस्सा हैं लेकिन कांग्रेस के साथी और तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एम के स्टालिन भी नायडू का हब समर्थन करते हैं । दरअसल केंद्र की यूथ इन इंडिया-2022 रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 25 करोड़ युवा 15 से 25 साल के बीच के हैं। अगले 15 साल में यह संख्या और तेजी से गिरेगी।उन्होंने कहा कि, हालांकि अतीत में, मैंने जनसंख्या नियंत्रण की वकालत की, लेकिन अब हमें भविष्य के लिए जन्म दर बढ़ाने की जरूरत है। सीएम नायडू ने बताया कि, राज्य सरकार एक कानून लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत केवल दो या उससे अधिक बच्चों वाले लोग ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ सकेंगे। बता दें कि देश में औसत प्रजनन दर जहां 2.1 है (ये चिंता का विषय नहीं है), वहीं दक्षिणी राज्यों में यह आंकड़ा गिरकर 1.6 तक (ये चिंता का विषय है) पहुंच गया है।वर्ष 2000 की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित एक नीतिगत ढाँचा है। इसका उद्देश्य देश में जनसंख्या वृद्धि और परिवार नियोजन से संबंधित चुनौतियों और मुद्दों का समाधान करना है। इसका उद्देश्य जिम्मेदार और नियोजित जनसंख्या को बढ़ावा देकर सतत विकास हासिल करना है। अब इससे इतर भी विचार करना जरूरी हो गया है ।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने लोगों से श्भविष्य के लिए जन्म दरश् बढ़ाने के लिए कम से कम दो या उससे अधिक बच्चे पैदा करने का आग्रह किया। एएनआई ने उनके हवाले से यह भी कहा कि आध्र प्रदेश सरकार एक ऐसा कानून लाने की योजना बना रही है जिसमें केवल दो या उससे अधिक बच्चे वाले लोगों को ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने की अनुमति होगी। नायडू के इस बयान पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की भी समर्थन में प्रतिक्रिया आई है। भाजपा सहयोगी दल तेलुगू देशम पार्टी प्रमुख और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने बयान दिया कि राज्य की विकास दर बढ़नी चाहिए और परिवारों को कम से कम दो या अधिक बच्चे पैदा करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी 19 अक्टूबर को एक कार्यक्रम में नायडू ने कहा, राज्य में विकास दर बढ़नी चाहिए। सभी को इस बारे में सोचना चाहिए और परिवारों को कम से कम दो या उससे अधिक बच्चे पैदा करने का लक्ष्य रखना चाहिए। पहले कभी मैंने जनसंख्या नियंत्रण की वकालत की थी, लेकिन अब हमें भविष्य के लिए जन्म दर बढ़ाने की जरूरत है। राज्य सरकार ऐसा कानून लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत केवल दो या उससे अधिक बच्चों वाले लोग ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ सकेंगे। नायडू के दो से अधिक बच्चों वाले बयान का स्वागत करते हुए भाजपा नेता और मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि देश को बहुत बदलाव की जरूरत है और अगर चंद्रबाबू नायडू ऐसा कुछ करते हैं तो मेरा मानना घ्घ्है कि यह सुधार की दिशा में एक अच्छा कदम है। यह पहली दफा नहीं है जब चंद्रबाबू नायडू ने परिवार नियोजन नीतियों में बदलाव की बात की है। अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने अधिक बच्चे पैदा करने की इच्छा रखने वाले दंपतियों को प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी।
नायडू ने दक्षिण भारतीय राज्यों विशेषकर आंध्र प्रदेश में वृद्धावस्था संकट के बढ़ते संकेतों के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहा कि हालांकि भारत 2047 तक जनसांख्यिकीय बढ़त बनाए रखेगा, लेकिन देश के दक्षिणी भागों में युवाओं के बजाय वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। नायडू ने कहा, जापान, चीन और कई यूरोपीय राष्ट्रों को बढ़ती उम्र की आबादी के दुष्परिणामों का सामना करना पड़ रहा है, वहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्गों का है। इसे दूसरे अर्थों में न लिया जाए लेकिन बच्चों की संख्या बुजुर्गों की अपेच्छा कम होगी तब यह चिंता का विषय जरूर होगा। आजादी के 77 साल बाद भी भारत जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए एक व्यवहार्य नीति की तलाश में है।
हालाँकि यह 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाने वाला पहला देश था, लेकिन देश में अभी भी हर साल 15.5 मिलियन लोगों की वृद्धि हो रही है और अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो भारत 2045 में 1.5 बिलियन की आबादी तक पहुँचकर चीन से आगे निकल सकता है। 15 फरवरी को जारी की गई राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 का लक्ष्य 2010 तक कुल प्रजनन दर (टीएफआर) को प्रतिस्थापन स्तर पर लाना और 2045 तक एक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करना है, जो कि सतत आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के अनुरूप हो।
बुनियादी प्रजनन और बाल स्वास्थ्य सेवाओं, आपूर्तियों और बुनियादी ढांचे की अधूरी जरूरतों को संबोधित करना नीति के लक्ष्यों में सबसे प्रमुख है। अन्य लक्ष्य हैं लड़कियों को लंबे समय तक स्कूल में रखना, लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाकर 18 या 20 करना, शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करना और बच्चों को टीके से रोके जा सकने वाली बीमारियों से बचाना। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 का एक बहुचर्चित पहलू भारतीय संसद में सीटों के आवंटन से संबंधित था। नीति में सीटों की मौजूदा संख्या को अगले 25 वर्षों के लिए स्थिर रखने की सिफारिश की गई है, ताकि पिछली जनसंख्या नीतियों का अनुपालन करने वाले राज्यों को दंडित न किया जा सके। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सीटों का अंतिम आवंटन 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था और 2001 की जनगणना के बाद इसे संशोधित किया जाना था लेकिन अगर इसे संशोधित किया जाता, तो एक अनुमान के अनुसार, तमिलनाडु राज्य को आवंटित सीटों की संख्या, जिसने प्रजनन दर को कम कर दिया है, 39 से घटकर 33 हो जाती। इस बीच, अविभाजित उत्तर प्रदेश राज्य को आवंटित सीटों की संख्या, जो अपनी विकास दर को रोकने में विफल रहा है, 85 से बढ़कर 120 हो जाती।
भारत में बढ़ती जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए सुझाव और उपाय विकसित करने के प्रयास स्वतंत्रता से पहले भी किए गए थे और बाद में भी हुए। आपातकाल के समय तो जबरन नसबंदी ने सरकार के प्रति लोगों में रोष पैदा कर दिया था लेकिन चंद्रबाबू नायडू और दूसरे नेता जो सवाल जनसंख्या नीति को लेकर उठा रहे हैं उसको भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है ।
नीतियां समय और परिस्थिति के अनुसार बनायी जाती हैं । समाजशास्त्री राधा कमल मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1940 में एक आयोग की स्थापना की। इस समूह ने 1921 के बाद जनसंख्या की तीव्र वृद्धि को धीमा करने की सिफारिश की थी। जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने के लिए, आयोग ने आत्म-नियंत्रण, सरल, सुरक्षित जन्म नियंत्रण तकनीकों के बारे में जागरूकता फैलाने और अन्य बातों के अलावा बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की। इसीप्रकार सर जोसेफ भोरे के नेतृत्व वाले स्वास्थ्य सर्वेक्षण और विकास आयोग द्वारा जनसंख्या नियंत्रण रणनीति के रूप में परिवार पर जानबूझकर प्रतिबध लगाने का सुझाव दिया गया था। इस समूह की स्थापना 1943 में हुई थी और इसने 1946 में अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की थी। 1950 के दशक में, भारत राज्य प्रायोजित परिवार नियंत्रण योजना शुरू करने वाले पहले विकासशील देशों में से एक था। (हिफी)