लेखक की कलमसम-सामयिक

प्रकृति की अनुकम्पा बन गयी कोप

 

देश के कई हिस्सों-हिमाचल के शिमला कुल्लू किन्नौर, उत्तराखंड के हरिद्वार देहरादून चमोली केदारनाथ में बादल फटने की  घटनाओं में करीब 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई है जबकि सैकड़ों लोग लापता हैं वहीं केरल के वायनाड जिले में मंगलवार को मेप्पाडी के पास विभिन्न पहाड़ी इलाकों में प्रकृति ने अपना सबसे भयावह रूप दिखाया है। वहां आए भूस्खलन ने भारी तबाही मचा दी है। इस प्राकृतिक आपदा के कारण चार गांवों का नामोनिशान खत्म हो गया है। अब तक 356 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 200 लोग लापता हैं। यह आंकड़ा अभी और भी बढ़ सकता है। वहीं भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में सेना का राहत व बचाव कार्य जारी है।देश के सबसे समृद्ध प्राकृतिक विरासत में मिली जैव विविधता वाले केरल को ईश्वर का अपना घर कहा जाता है जो प्रकृति के उपहार साल भर हरे रहने वाले पत्तों और विविधता से भरपूर जंगल और साफ समुद्र तटों और पश्चिमी घाट के शानदार परिदृश्यों से धन्य है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार ऋषि परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से केरल का निर्माण किया था। केरल एक समय पानी से भर गया था तो ऋषि परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी को पानी में फेंक दिया था जिससे पानी कम हो गया और जो भूमि बनी उसी पर आधुनिक केरल स्थापित है। राज्य में पद्मनाभन मंदिर से लेकर सबरीमाला मंदिर तक अनेक आस्था के केन्द्र हैं जिससे केरल भगवान के अपने देश के रूप में लोकप्रिय है। दुर्भाग्य से भगवान के घर में कुदरत के कहर की आपदा टूट पड़ी है। अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के लिए मशहूर वायनाड पर ऐसी प्राकृतिक आपदा आई जिसमें चार गांव का अस्तित्व खत्म हो गया है। मौत का आंकड़ा तीन सौ के पास पहुंच रहा है जबकि सैकड़ों लोगों का अभी अता-पता नहीं है। वायनाड में पहाड़ से बहकर आए सैलाब ने हाहाकार मचा दिया। इस आपदा ने 11 साल पहले उत्तराखंड के केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा की दुखद यादें ताजा कर दी हैं जो रात में सोया था उसे उठने तक का मौका नहीं मिला और सुबह मलबे में मिली उनकी लाशें। चारों तरफ बर्बादी को देखकर हर किसी का दिल दहल उठा।

एनडीआरएफ, सेना और अन्य एजेंसियों द्वारा समन्वित और व्यापक बचाव अभियान ने सुनिश्चित किया कि वायनाड जिले के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों से 1,500 से अधिक लोगों को बचाया गया है। सीएम विजयन ने मीडिया से बात करते हुए कहा, दो दिवसीय बचाव अभियान में 1,592 लोगों को बचाया गया। इतने कम समय में इतने लोगों को बचाने के लिए समन्वित और व्यापक अभियान की यह उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि पहले चरण में आपदा के आसपास के इलाकों के 68 परिवारों के 206 लोगों को तीन शिविरों में शिफ्ट किया गया, इसमें 75 पुरुष, 88 महिलाएं और 43 बच्चे शामिल हैं।भूस्खलन के बाद चल रहे बचाव अभियान में फंसे हुए 1,386 लोगों को बचाया गया। उन्होंने कहा, इसमें 528 पुरुष, 559 महिलाएं और 299 बच्चे शामिल हैं, जिन्हें सात शिविरों में भेजा गया है। दो सौ एक लोगों को बचाकर अस्पताल ले जाया गया, जिनमें से 90 का अभी इलाज चल रहा है। विजयन ने कहा कि वायनाड जिले में 82 राहत शिविरों में फिलहाल 8,017 लोग रह रहे हैं इनमें 19 गर्भवती महिलाएं शामिल हैं। मेप्पाडी में आठ शिविर हैं, जहां 421 परिवारों के 1,486 लोग रह रहे हैं। ये आंकड़े अब बदल चुके हैं।

भारतीय सेना ने वायनाड में भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में बचाव अभियान चलाया। मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान के तहत भारतीय सेना ने वायनाड में विनाशकारी भूस्खलनों के बाद फंसे लोगों को बचाने के लिए अपने प्रयासों को तेज कर दिया है।  चिकित्सा कर्मचारियों सहित लगभग 500 कर्मियों को तैनात किया गया है।

मिली रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक 3 हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया है। भारी बारिश के बीच कीचड़, चट्टानों और पेड़ों के बड़े-बड़े टुकड़ों की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।  चूरलमाला से मुंडक्कई के बीच जो पुल ढह गया था, उसे सेना के जवान फिर से बनाने में जुटे हैं जिससे रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी आ सके। उम्मीद है कि जल्द ही चूरलमाला को मुंडक्कई से जोड़ने वाला 190 फीट का यह पुल बनकर तैयार हो जाएगा।

वायनाड से जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वह उस तबाही की कहानी बयां कर रही हैं जिसने केरल ही नहीं बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। दरअसल, 29 और 30 जुलाई की रात वायनाड में जबरदस्त बारिश आई। रात एक बजे से 5 बजे के बीच तीन बार लैंडस्लाइड हुई और इससे पहाड़ के नीचे चेलियार नदी के कैचमेंट में बसे चार खूबसूरत गांव चूरलमाला, अट्टामाला, नूलपुझा और मुंडक्कई में तबाही आ गई।बड़े-बड़े पत्थर और मलबे में गांव के गांव चपेट में आ गए। कुछ ही देर में सैकड़ों घर मलबे का ढेर बन गए। सैलाब के रास्ते में जो आया बहता चला गया। पेड़ तक जड़ से उखड़ते चले गये। बड़े-बड़े पत्थर और मलबे में गांव के गांव चपेट में आ गए। कुछ ही देर में सैकड़ों घर मलबे का ढेर बन गए। आधी रात के बाद तबाही का वो मंजर कितना खतरनाक रहा होगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस जगह मंदिर हुआ करते थे वो जगह सपाट हो चुकी है। मलबे से अब तक 291 लोगों के शव निकाले जा चुके हैं, अभी भी लैंडस्लाइड वाले इलाकों में लोगों के फंसे होने की खबर है। इन चारों गांव में ज्यादातर चाय बागान के मजदूर रहते हैं। करीब 22 हजार की आबादी है। रात एक बजे जब पहली बार लैंडस्लाइड हुई तब लोग अपने घरों में सो रहे थे। किसी को बचने या भागने तक का मौका नहीं मिला।

आपको बता दें कि इस आपदा से पहले केरल में अगस्त 2018 में आई प्राकृतिक आपदा में 483 लोगों की मौत हो गई थी। इस आपदा को राज्य की सदी की बाढ़ कहा गया था। त्रासदी में सिर्फ सैकड़ों लोगों की जान गईं, बल्कि संपत्ति और आजीविका भी नष्ट हो गई थी। केंद्र सरकार ने 2018 की बाढ़ को डिजास्टर ऑफ सीरियस नेचर घोषित किया था। इस हादसे के बाद 4 लाख परिवारों के 15 लाख से ज्यादा लोगों को राहत शिविरों में पुनर्वासित किया गया था। कुल 57,000 हेक्टेयर कृषि फसलें नष्ट हो गईं थीं।

वायनाड में आई प्राकृतिक आपदा को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि वायनाड की भौगोलिक पारिस्थितिकी को तो पहले ही बेहद संवेदनशील माना जाता है। पश्चिमी घाट के नजदीक होने की वजह से वहां भूस्खलन का खतरा बना रहता है। पश्चिमी घाट में तीव्र ढलान है और मानसून में भारी बारिश से मिट्टी ढीली और गीली हो जाती है। यह स्थिति प्राकृतिक रूप से पैदा होती है। इसे तत्काल रोका जाना तो मुश्किल है। इसके लिए एहतियाती उपाय ही किए जा सकते हैं। विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि मानवीय हस्तक्षेप ने बारिश के प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। घटते हुए जंगल, लगातार हो रहे निर्माण और कम पौधारोपण होने की वजह से आपदाएं बढ़ रही हैं। रबर के पेड़ की जड़ें मिट्टी को एक साथ नहीं रख सकतीं, जबकि अन्य पेड़ मिट्टी के खिसकने की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं या पकड़ सकते हैं। पर्यावरणविदों का यह भी कहना है कि केरल से खाड़ी देशों और अन्य देशों में काम करने गए लोगों ने जब धन अपने परिवारों को भेजना शुरू किया तो धीरे-धीरे खेती कम होने लगी। पेड़-पौधे कटने लगे। प्रकृति का अंधाधुंध मनमाना दोहन किया गया है हरे भरे जंगल की जगह बड़े आलीशान बंगले कोठी फार्म हाउस खड़े हो गए और खेत खलिहान की भूमि में कॉटेज और रिजोर्ट्स बन गए। इस सबका नतीजा है कि मानसून का पैटर्न भी तेजी से अनियमित हुआ है। हमें प्रकृति के नैसर्गिक स्वरूप को अक्षुण्ण रखने का संकल्प लेना होगा अन्यथा तबाही के मंजर आते रहेंगे। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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