देशभक्ति को शाश्वत बनाने की जरूरत

(मनोज शुक्ल-हिफी फीचर)
प्रत्येक भारतीय अपनी जन्मभूमि को माँ कहकर सम्बोधित करता हैं, उसके मन के ये भाव देशप्रेम की तीव्र अभिव्यंजना करते हैं। यह प्रेम स्वाभाविक है क्योंकि हम जिस मिट्टी में पले बढ़े, हमने विकास किया तथा जीवन की आवश्यक सुविधाओं को प्राप्त किया, अतः हमारा दिल स्वतः ही इस भूमि से प्रेम करने लगता हैं। प्रत्येक नागरिक का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे अपने देश के प्रति उनके प्रतीक चिन्हों, संकेतों एवं अन्य लोगों से प्रेम करे तथा घुलमिलकर रहे। देशभक्ति का अर्थ हैं अपने देश के विकास, उसकी गरिमा को बढ़ाने में सकारात्मक भूमिका निभाना एवं आवश्यकता पड़े तो अपने देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहना। बहुत से लोग मानते है कि अपने वतन की रक्षा की खातिर मर मिटने वाला ही देश प्रेमी होता हैं, जबकि ऐसा नहीं है। निसंदेह देश की सीमाओं की रखवाली करने वाले हमारे सैनिक देश प्रेम से लबरेज होते ही हैं, मगर देश में बसने वाला आम नागरिक, शिक्षक, छात्र, व्यापारी, राजनेता, अभिनेता भी देश प्रेमी होते है जो अपने देश के विकास एवं सुधार में अपना अधिकतम योगदान देने का प्रयत्न करते हैं।
संसार में यदि कही देश प्रेम की अनूठी मिसाल देखने को मिलती हैं तो वह भारत देश एवं यहाँ के लोगों में ही हैं। जिन्होंने इतिहास की हर सदी में अपने वतन की रक्षा की खातिर जान तक कुर्बान कर देने के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। स्वतंत्रता संग्राम को ही ले लीजिए। न जाने कितने अनाम यौद्धाओं, क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकुमत को उखाड़ने के लिए अपना घर, परिवार और अंत में अपने जीवन का त्याग कर दिया था। देश के प्रति इसी समर्पण के भाव को देश प्रेम की उपमा दी जाती है जिसे हमारे साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान दिया हैं। कवि गुप्त लिखते हैं कि वह दिल नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं हैं।
यदि हम आधुनिक पीढ़ी में देश प्रेम की बात करे तो अफसोस की बात हैं हमारी पीढ़ी राष्ट्र के नाम पर उदासीन प्रतीत होती हैं। मात्र कुछ दिनों पन्द्रह अगस्त या छब्बीस जनवरी को ही उनका देश प्रेम जगता है कुछ कार्यक्रमों की आहुति के बाद वह अगले सीजन तक के लिए सुप्त हो जाता है। धीरे-धीरे खत्म होती जा रही देश प्रेम की यह भावना राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य की अच्छी निशानी नहीं हैं। हमारे युवकों छात्र-छात्राओं में वतन पर मर मिटने का जज्बा हमें उत्पन्न करना होगा तथा इस कार्य में शिक्षण संस्थान एवं हमारे गुरुजन अहम भूमिका निभा सकते हैं। सरल शब्दों में देश प्रेम अपने राष्ट्र, वतन के प्रति सम्मान, सर्वोच्च इज्जत की भावना का होना हैं। आप भी दिल में अपने भारत के प्रति अगाध श्रद्धा व प्रेम रखते है तो आप देशभक्त हैं। किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र में देशभक्तों का बड़ा समूह होता है जो स्व से अधिक अपने वतन को तरजीह देते हैं। अपने स्तर पर वे सब कुछ करने के लिए तत्पर रहते है जिसमें देश का भला निहित हो, आज की आधुनिक जीवन शैली एवं दोहरी नागरिकता ने व्यक्ति में देश प्रेम के भाव को न केवल कम किया बल्कि इन्हें रूढ़ि वादी सोच तक करार दिया हैं।
यह भी सत्य है कि लोगों में राष्ट्र भक्ति के संचार के लिए परिस्थितियाँ भी कुछ हद तक जिम्मेदार होती हैं, फिर भी आम हालातों में भी राष्ट्र सर्वोपरि ही समझा जाता हैं। ब्रिटिश दौर में अंग्रेजी सरकार के दमन चक्र एवं क्रांतिकारियों को कठोर यातनाएं देने की सोच ने जन जन के दिल में देश प्रेम की ज्योति जला दी।
अंग्रेजी सरकार ने अपने दमनचक्र से समूचे भारत को अपने विरोध में खड़ा कर दिया। इस वातावरण में प्रत्येक व्यक्ति चाहे व किसान, मजदूर या कलमकार हो, स्वयं को अपने वतन का प्रतिनिधि के रूप में देखने लगा। भारत के इतिहास में देश प्रेम का ऐसा ज्वर पूर्व में कभी नहीं देखा गया था। आज भले ही हमारा देश स्वतंत्र है मगर लोगों को देश प्रेम छोड़ने की जरुरत नहीं हैं क्योंकि हमारा अस्तित्व हमारे वतन हमारी भूमि से ही हैं। हम जो कुछ है इसकी बदौलत हैं। आज संसार बदल चुका है। हम आए दिन आर्थिक युद्ध में पिछड़ते जा रहे हैं। पूंजीवादी ताकतें हमारे बाजारों पर कब्जा कर रही हैं। हमारे लोग बेगारी पर विवश हैं। हमें नयें युग में अपने राष्ट्र प्रेम को फिर से जागृत करने की जरुरत हैं। स्वदेश में बनी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देकर, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार एवं समाज में शांति व भाईचारे की स्थापना करके अपने राष्ट्र की तरक्की में योगदान दे सकते हैं क्योंकि विकास एवं शान्ति एक दूसरे के पूरक हैं। एक नागरिक के रूप में हमारा देश प्रेम न केवल स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर दिखना चाहिए, हमारे दिल की गहराई में इसे बचाने की जरुरत हैं। मात्र वतन के गुणगान एवं जयकारे से देश का भला नहीं होता हैं।
कर्मशील और अपने परिवार, समाज, राज्य व देश के विकास में भागीदार बनकर हम अपने कर्तव्यों को अदा कर सकते हैं। वह राष्ट्र हमेशा प्रगति के शिखर पर आरूढ़ होता है जिसके रूप अपने सामाजिक व आर्थिक विकास के प्रति सचेत रहते है इसलिए नयें भारत के प्रेमी नागरिक बनकर इसकी तरक्की में हाथ बटाएं। माना जाता है कि जिस देश में जिस श्रेणी के लोग बसते है उस राष्ट्र का चरित्र वैसा ही बन जाता हैं। अतः हम अपने भारत के चरित्र को कैसा बनाना चाहते हैं इसका निर्णय अपने स्वविवेक से करें। इतिहास में जयचंद और मीर जाफर भी हुए है और आज भी हैं भले ही हम सीमाओं पर जाकर अपने वतन के बाहरी दुश्मनों का मुकाबला न कर सके, मगर घर में रहकर भी इन सापों के फन तो कुचले जा सकते हैं। एक आक्रामक कट्टर देशप्रेमी का स्व देश प्रेम कभी सोता नहीं है क्योंकि सोया हुआ प्रेम तो महज एक दिखावा होता हैं।
देश-प्रेम का अर्थ अपने देश, अपनी जन्मभूमि से लगाव रखना है। इन्सान जिस भूमि पर जन्म लेता है अपना पेट उसके अन्न से भरकर शारीरिक व मानसिक विकास करता हैं। उससे प्रेम करना नैसर्गिक है। अपने देश से प्रेम करने वाला राष्ट्र भक्त अपना सर्वोच्च त्याग करने के लिए तैयार रहता हैं। हमें यह विचार करना चाहिए कि हमें देश ने क्या नहीं दिया, जबकि बदलें में हम उसे क्या दे पाए है हमारा योगदान भारत के लिए क्या रहा हैं, अपना पेट भरना और शाम को सोकर अगले दिन कोल्हू के बैल की भांति अपने स्वार्थों में लग जाना तो पशुत्व की निशानी हैं। (हिफी) (सोशल मीडिया से साभार)