स्मृति विशेष

आज ज्यादा प्रासंगिक हैं नेहरू

 

हां, आज ही का वह मनहूस दिन था, जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया था। कुलदीप नैयर की एक स्मरण पुस्तक के अनुसार नेहरू जी उन दिनो बीमार थे और डाक्टरों ने अकेले न छोड़ने का सख्त निर्देश दे रखा था लेकिन 27 मई को वह वाशरूम मंे मृत पाये गये थे। हालांकि उनकी मौत तो चीन के विश्वासघात से हुई क्योंकि चाऊ एन लाईको नेहरू अपना और भारत का घनिष्ठ मित्र मानते थे लेकिन उन्हांेने भारत पर 1962 मंे हमला कर दिया। आजादी के बाद भारत जब विकास के आधार बना रहा था, तभी चीन ने विश्वासघात किया और नेहरू जी बीमार पड़ गये थे। नेहरू जी सिर्फ धनी लोगों के बच्चों को ही प्यार नहीं करते थे बल्कि गरीब परिवारों के बच्चों से भी उनको उतनी ही मोहब्बत थी। बताते हैं कि एक दिन जब आफिस से घर लौट रहे थे तो उन्हांेने देखा कि लाॅन मंे बहुत सी औरतें काम कर रही हैं। उन्हीं में से किसी का बच्चा पेड़ के नीचे लेटा हुआ रो रहा था। नेहरू जी ने उसे झट से गोद में उठाया और चुप कराते हुए कहा कि इसकी मां कहां है, उसे बुलाओ। ऐसी ही सद्भावना से भरी उनकी राजनीति थी। आज सत्ता पाने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के नेता एक दूसरे पर व्यक्तिगत लांछन तक लगा रहे हैं तब नेहरू जी ने अपने पहले मंत्रिमंडल मंे विपक्ष (जनसंघ) के नेता श्यामा प्रसाद मुखजी को अपने मंत्रिमंडल मंे शामिल किया था। राजनीति के लिए तो नेहरू जी आज ज्यादा प्रासंगिक हैं।

27 मई 1964 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया था। इनके निधन की सूचना दोपहर दो बजे संसद में दी गई बाद में सार्वजनिक की गई। उनके निधन को लेकर आधिकारिक सूचना अलग है लेकिन तब भारत सरकार में बड़े पद पर आसीन और बाद में जाने माने पत्रकार बने कुलदीप नैयर की किताब कुछ अलग ही कहती है। किताब के अनुसार 26 मई को नेहरू शाम को देहरादून से लौटे थे। वह खराब स्वास्थ्य के कारण चार दिनों के स्वास्थ्य अवकाश पर वहां गए थे लेकिन उनकी तबीयत अब भी अच्छी नहीं थी, 26 मई को वह थके हुए थे। वो आमदिनों की तुलना में जल्दी सोने चले गए थे। वो रात को कई बार उठे। हर बार उनका विश्वस्त सेवक नाथूराम उन्हें दर्द निवारक दवाएं देता रहा। देहरादून के एक पुराने पत्रकार राज कंवर के हवाले एक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी जिसमें बताया गया कि उस शाम नेहरू जब देहरादून से विदा हुए तो कैसे लग रहे थे। उनकी सेहत जनवरी में भुवनेश्वर के हार्ट अटैक के बाद सुधर नहीं पाई थी। उनका रूटीन प्रभावित हो चुका था। उनका ज्यादातर काम बिना विभाग के मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को दे दिया गया था। नेहरू जब चलते थे तो उनको बाएं पैर में दिक्कत होती थी। देहरादून की 26 मई को वो शाम आखिरी शाम थी, जब नेहरू को सार्वजनिक तौर पर देखा गया था। वो बेटी इंदिरा गांधी के साथ हेलिकॉप्टर में चढ़े। हेलिकॉप्टर के दरवाजे पर खड़े होकर जब उन्होंने हाथ हिलाया। तब राज कंवर ने महसूस किया कि बायां हाथ ऊपर उठाते समय नेहरू के चेहरे पर कुछ दर्द सा उभर आया था। उनकी बेटी इंदिरा उन्हें सहारा देने के लिए खड़ी थी। बाएं पैर के मूवमेंट में भी दिक्कत महसूस हो रही थी। उन्होंने चेहरे पर भरपूर मुस्कुराहट लाने की कोशिश की लेकिन पूरे तौर पर ऐसा कर नहीं पाए।

कुलदीप नैयर की आत्मकथा किताब बियांड द लाइंस: एन ऑटोबॉयोग्राफी में लिखा है, दरअसल नेहरू का निधन 27 मई 1964 की रात उनके स्नान गृह यानि बाथरूम में ही हो गया था। उनके डॉक्टर के एल विग ने खास निर्देश दे रखा था कि उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाए। फिर जब वह बाथरूम में पाए गए तो उनके पास कोई नहीं था। नैयर लिखते हैं कि डॉक्टर विग ने उन्हें बताया था बाथरूम में गिरने के बाद नेहरू एक घंटे तक उसी अवस्था में पड़े रहे थे। ये सरासर लापरवाही थी। लोगों को पता था कि वो बीमार हैं लेकिन उनके इतनी जल्दी निधन की उम्मीद नहीं थी हालांकि नेहरू के निधन को जो आधिकारिक बात कही गई, वो इससे अलग थी।

द गार्जियन की 27 मई 1964 की रिपोर्ट कहती है कि सुबह 06.30 बजे उन्हें पहले पैरालिटिक अटैक हुआ और फिर हार्ट अटैक। इसके बाद वो अचेत हुो गए। इंदिरा गांधी ने तुरंत उनके डॉक्टरों को फोन किया। तीन डॉक्टर तुरंत पीएम हाउस पहुंच गए। उन्होंने अपनी ओर से भरपूर कोशिश की लेकिन नेहरू का शरीर कोमा में पहुंच चुका था। शरीर से कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा था, जिससे पता लगे कि इलाज कुछ असर कर भी रहा है या नहीं। कई घंटे की कोशिश के बाद डॉक्टरों ने जवाब दे दिया।
27 मई से लोकसभा का सात दिनों का विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू खासतौर पर कश्मीर और शेख अब्दुल्ला के बारे में कुछ सवालों का जवाब देने वाले थे। जब वो संसद में नहीं पहुंचे तो बताया गया कि अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई है। दोपहर 2 बजे स्टील मंत्री कोयम्बटूर सुब्रह्मणियम राज्यसभा में दाखिल हुए। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुईं थीं। उन्होंने बुझे हुए स्वर में केवल इतना कहा, रोशनी खत्म हो गई है। लोकसभा तुरंत स्थगित कर दी गई। कुछ घंटों बाद गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा की गई। दोपहर 02.05 बजे तक हर सांसद के पास ये खबर पहुंच चुकी थी। द न्यूयार्क टाइम्स ने तुरंत नेहरू के निधन पर एक अतिरिक्त संस्करण प्रकाशित किया, देश में भी समाचार पत्रों में दिन में विशेष संस्करण प्रकाशित हुए। द न्यूयार्क टाइम्स ने नेहरू आठ घंटे तक कोमा में रहे, उन्हें बचाया नहीं जा सका। अगले दिन उनका पार्थिव शरीर जनता के आखिरी दर्शन के लिए रखा गया और 29 मई को उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीतिरिवाजों से हुआ।

निधन के मुश्किल से एक सप्ताह पहले नेहरू ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, चिंता ना करें, मैं अभी लंबे समय तक जिंदा रहूंगा। बताते हैं 27 मई को देशभर में शादियों की बड़ी लगन थी। जैसे ही नेहरू के निधन की खबर फैली तुरंत सदमे की शोक की स्थिति हो गई। शादियां तो हुईं लेकिन कहीं कोई बाजा-गाजा नहीं बजा।

देश के पहले प्रधानमंत्री होने के साथ ही पंडित नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता भी कहे जाते हैं। देश की आजादी से लेकर आजाद भारत को समृद्ध बनाने तक में पंडित नेहरू का अहम योगदान रहा है। आजादी से पहले पंडित नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। आजादी की लड़ाई के चलते उन्हें 9 बार जेल जाना पड़ा था। वहीं, भारत के आजाद होने के बाद पंडित नेहरू ने शिक्षा, सामाजिक सुधार, आर्थिक क्षेत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और औद्योगीकरण सहित कई क्षेत्रों में किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने विचारों और अपने उल्लेखनीय कार्यों की वजह से ही महान बने। आजादी के बाद नेहरू ने देश की तस्वीर बदलने के लिए कई कड़े फैसले लिये। उस दौरान उनके फैसलों की निंदा की गई और मजाक भी बनाया गया लेकिन उनके उन फैसलों ने ही देश को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत बनाया। उन्होंने शिक्षा से लेकर उद्योग जगत को बेहतर बनाने के लिए कई काम किए। उन्होंने आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की। साथ ही उद्योग धंधों की भी शुरूआत की। उन्होंने भाखड़ा नांगल बांध, रिहंद बांध और बोकारो इस्पात कारखाना की स्थापना की थी। वह इन उद्योगों को देश के आधुनिक मंदिर मानते थे। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

 

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