नेपाल ने देखी चीन की धोखेबाजी

नेपाल हमारा एक ऐसा पड़ोसी है जहां आने-जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़ती। भारत ने हमेशा उसे छोटे भाई की तरह स्नेह दिया और पूर्व की सरकारों से बदले मंे सम्मान भी मिला। बीते कुछ सालों से वहां राजनीति में जबर्दस्त बदलाव आया और वामपंथियों के हाथ मंे सत्ता चली गयी। इस समय भी वामपंथी झुकाव वाले केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री हैं। हालांकि वह भारत के प्रति झुकाव रखने वाली नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर ही सरकार बनाने मंे सफल हो पाये लेकिन चीन के प्रति उनका लगाव बना हुआ है। इस लगाव को अब जबर्दस्त झटका लगा। पीएम ओली को महसूस हुआ कि चीन की सरकार नेपाल के साथ धोखेबाजी कर रही है। चीन के नेता दोस्ती के दावे तो करते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से मदद नहीं पहुंचाते। चीन की सरकार पिछले 9 साल से नेपाल मंे अरानिको हाईवे पूरा करने के लिए वित्तीय और तकनीकी मदद नहीं दे रही हैं। इसके अलावा अन्य कई अवसर आए जब चीन ने नेपाल को जुबानी मदद पहुंचाई। केपी शर्मा ओली की सरकार ने चीन की धोखेबाजी को पहचान लिया और अरानिको हाईवे को खुद ही पूरा करने का फैसला किया है। चीन की हकीकत को अभी मुइज्जू जरूर नहीं समझ पाये हैं और चीन मालदीव को कर्ज के जाल मंे फंसा रहा है।
नेपाल ने अब महसूस किया है कि चीन की सरकार नेपाल से दोस्ती के तमाम दावे करती है लेकिन जब बात पैसा खर्च करने की होती है तो वह टाल मटोल करने लगती है। चीन की सरकार पिछले 9 साल से वादा करने के बाद भी अरानिको हाइवे पूरा करने के लिए वित्तीय और तकनीकी मदद नहीं दे रही थी। अब नेपाल की केपी ओली सरकार ने चीन को कड़ा संदेश देते हुए खुद ही इस हाइवे प्रॉजेक्ट को पूरा करने का फैसला किया है। नेपाल के एक सांसद और कई अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी है। चीन यह भी चाहता है कि नेपाल बीआरआई प्रॉजेक्ट को मंजूरी दे लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई फैसला नहीं हो सका है। इससे भी चीन नेपाल की सरकार से खुश नहीं है।
साल 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति राम बरन यादव की यात्रा के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 16 अरब नेपाली रुपये देने का वादा किया था ताकि 115 किमी लंबे अरानिको हाइवे को अपग्रेड किया जा सके और ट्रांसपोर्ट ढांचा बनाया जा सके। यही वह हाइवे है जो नेपाल को चीन से जोड़ता है। काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाली सांसद माधव सापकोटा ने कहा कि चीन हर साल यह वादा करता है कि वह यह मदद देगा लेकिन कई बार फोन पर और बैठकों में अनुरोध करने के बाद भी बीजिंग की ओर से कोई मदद नहीं आ रही है।
सापकोटा ने कहा कि चूंकि चीन की सरकार पैसा नहीं दे रही है, ऐसे में हमने अपने बजट से 3.6 अरब रुपये का आवंटन किया है ताकि इस 26 किमी लंबे हाइवे की मरम्मत की जा सके। साथ भूस्खलन से बचाया जा सके। अरानिको को कोदारी हाइवे के नाम से भी जाना जाता है। इस हाइवे को 1960 के दशक में चीन की सरकार ने ही बनाया था। इस हाइवे के कई हिस्से साल 2015 में आए भूकंप में खराब हो गए हैं। उन्होंने बताया कि मैंने पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड से बात की तो उन्होंने चीन के राष्ट्रपति से फोन पर दो बार बात की। इसके अलावा चीन के वित्त मंत्रालय और दूतावास से भी कहा गया लेकिन को फायदा नहीं हुआ। जाहिर है चीन झूठे वादे करता है।
नेपाल में एक अहम घटनाक्रम में पिछले दिनों केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त कर दिया गया है। 72 साल के ओली तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। उन्हें देश में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच नई गठबंधन सरकार का नेतृत्व करना है। ओली और उनके नए मंत्रिमंडल ने पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की जगह ली है। प्रचंड विश्वास मत हार गए थे। इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार नई सरकार गठित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। राष्ट्रपति राम चंद्र ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनिस्ट के नेता केपी शर्मा ओली को नेपाल का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया। केपी शर्मा ओली को चीन समर्थक माना जाता है। उनके पहले कार्यकाल में भारत के साथ उनके रिश्ते तल्ख रहे थे। नेपाली कांग्रेस ने एक समय अपने मित्र रहे प्रचंड को झटका दे दिया, जब उन्होंने राजनीतिक शत्रु समझे जाने वाले नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा से हाथ मिला लिया। देउबा की नेपाली कांग्रेस नेपाल की प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़ी पार्टी है। महज चार महीने पहले ही ओली के समर्थन से मार्च में प्रचंड ने सरकार का गठन किया था। वर्ष 2008 में जब पूर्ववर्ती राजशाही को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया और नेपाल ने अंतरिम संविधान को अपनाया, तब से यहां 13 अलग-अलग सरकारें बनीं। इनमें प्रचंड, देउबा और ओली ने प्रधानमंत्री के रूप में कई बार पद संभाला।
ओली को तो समझ आ गयी लेकिन मालदीव के राष्ट्रपति बनने के बाद से मोहम्मद मुइज्जू भारत विरोधी रुख बनाए हुए हैं। अब भारत को लेकर उनका रुख नरम नजर आने लगा है। मोहम्मद मुइज्जू ने अब सुलह का रुख अपनाते हुए कहा कि भारत उनके देश का करीबी सहयोगी बना रहेगा। इतना ही नहीं उन्होंने भारत से कर्ज में रियायत की मांग भी की है। दरअसल, पिछले साल के अंत तक मालदीव पर भारत का लगभग 40 करोड़ 9 लाख अमेरिकी डॉलर का बकाया था। पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद से चीन समर्थक मालदीव के नेता मुइज्जू ने भारत के प्रति सख्त रुख अपनाया था और मांग की थी कि तीन विमानन प्लेटफॉर्म का संचालन करने वाले भारतीय सैन्यकर्मियों को 10 मई तक उनके देश से वापस भेजा जाए। पद संभालने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में मुइज्जू ने कहा कि भारत ने मालदीव को सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सबसे बड़ी संख्या में परियोजनाओं को लागू किया। मालदीव के समाचार पोर्टल ‘एडिशन डॉट एमवी’ की खबर के अनुसार, मुइज्जू ने कहा कि भारत मालदीव का करीबी सहयोगी बना रहेगा और इसमें कोई संशय नहीं है। भारत पिछले कुछ वर्षों से दो हेलीकॉप्टर और एक डोर्नियर विमान के जरिए मालदीव के लोगों को मानवीय और चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रहा है। मुइज्जू ने भारत से अपील कि वह मालदीव के लिए सरकारों द्वारा लिये गए भारी ऋणों के पुनर्भुगतान में ऋण राहत उपायों को शामिल करे। उन्होंने कहा, वह वर्तमान में मालदीव की आर्थिक क्षमताओं के अनुसार ऋण चुकाने के विकल्प तलाशने के लिए भारत सरकार के साथ चर्चा कर रहे हैं। मुइज्जू ने दिसंबर 2023 में दुबई में सीओपी28 शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दुबई में अपनी चर्चा का जिक्र करते हुए कहा, मैंने अपनी बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को यह भी बताया कि मेरा इरादा किसी भी परियोजना को रोकने का नहीं है। इसके बजाय, मैंने इनमें तेजी लाने की इच्छा व्यक्त की थी।
बहरहाल, मालदीव ने चीन से भी डेढ़ अरब डालर का कर्ज ले रखा है जो इसके कुल कर्ज का 20 फीसदी है। मुइज्जू चीन से और कर्ज मांग रहे हैं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)