नेतन्याहू की दोहरी रणनीति है लेबनान में बमबारी

दक्षिण लेबनान की सीमाओं पर इस्राइल की ओर से हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर की गई बमबारी को अंतरराष्ट्रीय रक्षा विशेषज्ञ नेतन्याहू सरकार के डबल गेम के रूप में देख रहे हैं। एक ओर नेतन्याहू खाड़ी देशों के साथ कूटनीतिक मेलजोल का विस्तार करना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ गाजा और लेबनान में सैन्य कार्रवाई तेज कर पश्चिम एशिया में तनाव को नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं। इसके जरिए नेतन्याहू अब्राहम समझौते को नए सिरे से स्थापित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। 26-27 जून को इस्राइल ने लेबनान के दक्षिणी हिस्से में हिज्बुल्ला के ठिकानों पर भारी बमबारी की थी। बीबीसी, अल जजीरा और द टाइम्स ऑफ इस्राइल की रिपोर्टों के अनुसार इस्राइली डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) ने दावा किया है कि उसने दक्षिणी लेबनान के कई गांवों में हिज्बुल्लाह के ड्रोन लॉन्चिंग पॉइंट, रडार सिस्टम और हथियार भंडारण केंद्रों पर सटीक बमबारी की है। अब्राहम समझौता अमेरिका की मध्यस्थता में इस्राइल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच हुआ था। बाद में मोरक्को और सूडान भी इसमें शामिल हुए। इसका उद्देश्य इस्राइल और कुछ प्रमुख अरब देशों के बीच दशकों पुरानी शत्रुता को समाप्त कर राजनयिक संबंध स्थापित करना था। अब्राहम नाम इसलिए चुना गया क्योंकि यह नाम यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों धर्मों में समान रूप से सम्मानित पैगंबर से जुड़ा है।
रक्षा मामलों के विश्लेषक रिचर्ड हेस मानते हैं कि इस्राइल की सैन्य कार्रवाई और अब्राहम समझौते का विस्तार एक साथ नहीं चल सकते। नेतन्याहू की यह रणनीति खतरनाक संतुलन बनाती है। भारतीय कूटनीतिज्ञ विवेक काटजू के अनुसार इस्राइल-ईरान-लेबनान त्रिकोण में बढ़ता तनाव भारत सहित तमाम वैश्विक शक्तियों को नई रणनीति तैयार करने के लिए बाध्य करेगा।अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ ब्रायन कैट्ज कहते हैं, हिजबुल्ला के ठिकानों पर हमला सिर्फ सीमाओं की सुरक्षा नहीं बल्कि नेतन्याहू की राजनीतिक और कूटनीतिक स्क्रिप्ट का हिस्सा है, जिससे वे ईरान के खिलाफ युद्ध में अपेक्षित सफलता न मिल पाने के कारण हो रही घरेलू आलोचनाओं और अंतरराष्ट्रीय दबाव से ध्यान भटका रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ अहम खुफिया रिपोर्टों के अनुसार इसराइली और अमेरिकी हमलों में ईरानी परमाणु कार्यक्रम को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा है।