महाकुंभ के लिए यूपी में नया जिला

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हमारे देश मंे सभी प्रदेश किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण हैं। उत्तर प्रदेश का विशेष रूप से उल्लेख आदिकाल से रहा है। यहां के मथुरा और अयोध्या में भगवान कृष्ण और भगवान राम ने अवतार लिया। गंगा और यमुना का संगम इसी प्रदेश मंे हुआ जहां कभी सरस्वती नदी भी मिलती थी। आज वह नदी बिलुप्त हो चुकी है। महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में ही होता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य नहीं है लेकिन आबादी की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री इसी राज्य ने दिये हैं और कहा जाता है कि दिल्ली मंे सरकार बनाने का रास्ता भी उत्तर प्रदेश से ही होकर गुजरता है। यह भी संयोग है कि गुजरात के नेता नरेन्द्र मोदी भी यूपी के वाराणसी लोकसभा का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए उत्तर प्रदेश मंे जब कोई परिवर्तन होता है तो उसकी चर्चा होना स्वाभाविक है। अगले महीने अर्थात् जनवरी 2025 मंे प्रयागराज मंे महाकुंभ का आयोजन होना है। उससे पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ मेला क्षेत्र का एक नया जिला घोषित कर दिया है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश मंे अब महाकुंभ मेले तक 76 जिले हो जाएंगे। यह परम्परा पहले से चली आ रही है। यह जिला 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक अस्तित्व में रहेगा।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रयागराज के महाकुम्भ मेला क्षेत्र का नया जिला घोषित किया है। अब महाकुंभ तक यूपी में 75 नहीं, बल्कि 76 जिले होंगे। इस बाबत अधिसूचना जारी कर दी गई है। शासन के निर्देश पर जिलाधिकारी प्रयागराज रविंद्र कुमार मांदड़ ने 1 दिसम्बर को देर शाम जारी अधिसूचना जारी कर दी। बता दें कि महाकुंभ को लेकर नए जिले की अधिसूचना जारी किए जाने की परंपरा है। महाकुंभ मेला जिले में पूरा परेड और चार तहसीलों सदर, सोरांव, फूलपुर और करछना के 67 गांव शामिल है। महाकुंभ मेला जिले के अतिरिक्त कलेक्टर मेलाधिकारी विजय किरन आनंद होंगे। सभी श्रेणी के मुकदमों में कलेक्टर के समस्त अधिकारों का उपयोग करेंगे। अधिसूचना में कलेक्टर के सभी कार्य करने के अधिकार भी उन्हें दिए गए हैं। अधिसूचना के मुताबिक तहसील सदर के 25 गांव, तहसील सोरांव के तीन गांव, तहसील फूलपुर के 20 गांव और करछना तहसील के 19 गांव शामिल किए गए हैं। महाकुंभ तक महाकुंभ मेला जिले का अस्तित्व रहेगा। बता दें कि 13 जनवरी से 26 फरवरी के बीच महाकुंभ 2025 आयोजित हो रहा है। मेले के कुछ दिन बाद तक यह जिला अस्तित्व में रहता है। गौरतलब है कि महाकुंभ के दौरान एक पूरा नया शहर बसाया जाता है। लिहाजा इस दौरान एक नया जिला घोषित करने की परंपरा है। प्रयागराज के चार तहसीलों को अलग कर एक नया जिला बनाया जाता है। इससे व्यवस्था अच्छी रहती है।
धर्मपरायण उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है। यह आर्यावर्त का प्रमुख भाग था। रामायण में वर्णित तथा हिन्दुओं के एक मुख्य भगवान ‘भगवान राम’ का प्राचीन राज्य कौशल इसी क्षेत्र में था। अयोध्या इस राज्य की राजधानी थी। हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में हुआ था। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर भी यहीं पर स्थित है। वाराणसी के पास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मौर्य और कुषाण के शासन का अंग रहा। 7वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। सातवीं शताब्दी ई.पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी जिले देवरिया में स्थित है।
पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा। पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके। इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उनके पुत्र सम्राट धनानंद थे, जिसने सिकंदर को युद्धों में हराया था। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य हैं इसके प्रमुख सम्राट हुए।
एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन थे, जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख दक्षिण भारत में जन्मे आदि शंकराचार्य थे, जो वाराणसी पहुँचे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिरकी स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं।
1947 में आजादी मिलने पर संयुक्त प्रान्त नव स्वतंत्र भारतीय गणराज्य की एक प्रशासनिक इकाई बना। दो साल बाद इसकी सीमा के अन्तर्गत स्थित, टिहरी गढ़वाल और रामपुर के स्वायत्त राज्यों को संयुक्त प्रान्त में शामिल कर लिया गया। 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ ही 24 जनवरी सन 1950 को इस संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और यह भारतीय संघ का राज्य बना। स्वतंत्रता के बाद से भारत में इस राज्य की प्रमुख भूमिका रही है। इसने देश को जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी सहित कई प्रधानमंत्री, सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक आचार्य नरेन्द्र देव, जैसे प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी (अल्पसंख्यक) दलों के नेता और भारतीय जनसंघ, बाद में भारतीय जनता पार्टी व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता दिए हैं। राज्य की राजनीति, हालांकि विभाजनकारी रही है और कम ही मुख्यमंत्रियों ने पाँच वर्ष की अवधि पूरी की है। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश एवं भारत की प्रथम महिला मुख्य मन्त्री बनी। सन् 2000 में पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल को मिला कर एक नये राज्य उत्तरांचल का गठन किया गया जिसका नाम बाद में बदल कर उत्तराखण्ड कर दिया गया है। (हिफी)