मोदी सरकार के नये श्रम कानून

मेहनत करने वाले को उसका वाजिब हक मिलना चाहिए, इसमंे कोई दो राय नहीं है लेकिन मजदूर और मालिक के बीच संघर्ष की कहानी भी कभी खत्म होने वाली नहीं लगती। मजदूरों और गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले कार्ल माक्र्स भी इसका ठोस समाधान नहीं निकाल पाये थे। कल्याणकारी राष्ट्र-राज्य इस बात का हमेशा प्रयास करते हैं कि विकाय कार्य में पूंजी लगाने वाले मालिक और अपने श्रम से उस पूंजी का विस्तार करने वाले श्रमिक दोनों का हित होता रहे। हमारे देश मंे पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली इस तीसी सरकार ने श्रमिकों को लेकर चार कानूनों मंे संशोधन किया है। इनमंे वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबधा संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता-2020 और व्यावसायिक सुरक्षा स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति संहिता मंे 29 पुराने कानूनों को एकीकृत किया गया है। ट्रेड यूनियनों और विपक्षी दलों का कहना है कि इससे श्रमिकों का अहित होने की संभावना ज्यादा है क्योंकि ये संहिताएं स्पष्ट नहीं है। गत 3 दिसम्बर को विपक्षी दलों ने संसद भवन परिसर मंे इसके खिलाफ प्रदर्शन भी किया था। उनका आरोप है केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों को सरल बनाने के नाम पर जो 4 नए लेबर कोड लागू किए हैं, उन्होंने मजदूरों के अधिकारों और सुरक्षा पर गहरी चोट की है।
विपक्ष का मानना है इन कानूनों से श्रमिकों के हक कमजोर होंगे और शोषण के नए रास्ते खुलेंगे। जो सरकार की पूंजीपति-समर्थक सोच को फिर उजागर करते हैं।
संसद भवन परिसर में 3 दिसंबर को विपक्षी दलों के सांसदों ने नए श्रम संहिताओं के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, नेता विपक्ष राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में धरना संसद के मकर द्वार के सामने आयोजित किया गया। प्रदर्शनकारियों ने श्रम न्याय के पक्ष में का बैनर पकड़ रखा था। विपक्ष ने चारों नई श्रम संहिताओं को वापस लेने की मांग की और केंद्र की मोदी सरकार पर बड़े कॉर्पोरेट्स के हित में पर्यावरण को तबाह करने का गंभीर आरोप लगाया।
यह प्रदर्शन संसद के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन हुआ, जब लोकसभा में पहली बार बिना किसी व्यवधान के प्रश्नकाल चला। इंडिया गठबंधन के सांसदों ने प्लेकार्ड और बैनर के साथ नारे लगाए, जिसमें श्रम संहिताएं वापस लो प्रमुख था। प्रदर्शन में प्रियंका गांधी वाड्रा, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन, डीएमके की कनीमोझी और ए. राजा, सीपीआई(एम) के जॉन ब्रिटास, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के सुदामा प्रसाद समेत कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी और वाम दलों के सांसद शामिल हुए।
एसआईआर प्रदर्शन इंडिया गठबंधन की रणनीति का हिस्सा था, जो सुबह 9.45 बजे हुई बैठक में तय हुआ। इस बैठक में खड़गे और राहुल गांधी मौजूद थे। विशेष गहन संशोधन पर बहस की मांग पूरी होने के बाद विपक्ष ने श्रम संहिताओं पर फोकस किया है। संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि 8 दिसंबर को वंदे मातरम के 150 वर्ष पर बहस और 9 दिसंबर को चुनाव सुधारों पर चर्चा होगी। हालांकि चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान विपक्ष एसआईआर और बीएलओ की मौत का मुद्दा उठाएगा।चार संहिताएं- वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति संहिता 2020 से लंबित थीं, जो पिछले महीने नोटिफाई की गईं। इनमें 29 पुराने श्रम कानूनों को एकीकृत किया गया है। ट्रेड यूनियनों और विपक्ष का कहना है कि ये संहिताएं अस्पष्ट हैं, जिसमें छंटनी के प्रावधान अस्पष्ट हैं, मालिकों को असाधारण शक्तियां मिलती हैं। कंपनियां जिनमें 100 से 300 तक श्रमिक काम करते हैं, बिना सरकारी मंजूरी छंटनी कर सकते हैं। इसके अलावा, फैक्ट्री में काम के घंटे 9 से बढ़ाकर 12 और दुकानों में 10 घंटे कर दिए गए हैं।
हालांकि, संहिताओं में गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, कॉन्ट्रैक्ट और प्रवासी मजदूरों के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी, न्यूनतम मजदूरी, महिलाओं को रात्रि शिफ्ट की अनुमति, शिकायत समितियां और 40 वर्ष से अधिक उम्र के श्रमिकों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य जांच जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं। विपक्ष का दावा है कि ये प्रावधान कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचाने वाले हैं और मजदूरों के हितों की अनदेखी करते हैं।
श्रम कानून ऐसे नियम और कानून हैं जो श्रमिकों, नियोक्ताओं, ट्रेड यूनियनों और सरकार के बीच के संबंधों को नियंत्रित करते हैं। इनका उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना, काम करने की उचित परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना और कर्मचारियों तथा नियोक्ताओं के हितों में संतुलन बनाना है। श्रम कानूनों में वेतन, कार्य के घंटे, सुरक्षा, छुट्टी और सामाजिक सुरक्षा जैसे कई विषय शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारा दिया है सत्यमेव जयते से श्रमेव जयते श्रमिकों को लेकर मौजूदा सरकार की दूरगामी सोच अक्टूबर 2014 में ही स्पष्ट हो गई थी। सत्ता की कमान संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने श्रमेव जयते योजना की शुरुआत कर दी थी। श्रमिकों को प्राथमिकता देते हुए प्रधानमंत्री ने 16 अक्टूबर 2014 को जब ‘श्रमेव जयते’ की शुरुआत की, तब श्रमिकों को ‘राष्ट्र निर्माता’ की संज्ञा देते हुए कहा था कि जितनी ताकत ‘सत्यमेव जयते’ की है, उतनी ही ताकत राष्ट्र के विकास के लिए ‘श्रमेव जयते’ की भी है। उस वक्त ही सरकार ने साफ कर दिया था कि, नजरिया अगर सम्मानजनक हो तो श्रमिक ‘श्रम योगी, राष्ट्र योगी और राष्ट्रनिर्माता’ बन जाते हैं।
मोदी ने कहा था सशक्त, खुशहाल और आत्मनिर्भर भारत के सपने में श्रमिकों के सशक्तीकरण की जरुरत है, आजादी के 73 साल बाद भी लगभग 90 फीसदी मजदूर असंगठित कृषि क्षेत्र में काम करते, जिनको सभी सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं।
देश में श्रमिक वर्ग की संख्या संगठित व असंगठित क्षेत्र में 50 करोड़ से ज्यादा है। पहली बार किसी सरकार ने इन संगठित व असंगठित दोनों क्षेत्रों के श्रमिकों और उनके परिवारों की सुध ली है। पहले श्रमिक वर्ग जो कई कानूनों के जाल में उलझे हुए थे, उन्हें सही मायने में आजादी दिलाने की दिशा में कें द्र सरकार ने क्रांतिकारी कदम उठाया है। इसके लिए कें द्र सरकार ने 29 कानूनों को अब सिर्फ चार कोड में समाहित कर सरल करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है ताकि अब श्रमिकों को सम्मान के साथ सुरक्षा, सेहत और सहूलियत सहजता से मिले।
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)



