उलझन में नीतीश कुमार

एक फिल्म का गाना है कुछ कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए। बिहार में नीतीश कुमार के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है । वहां की राजनीति में अब नीतीश कुमार बड़े भाई के रोल में नहीं हैं। बिहार विधानसभा और विधान परिषद में बड़ा भाई बनने के साथ ही बीजेपी की हनक बढ़ गई है। विधानसभा में भाजपा के पास सर्वाधिक 78 विधायक हैं। वहीं दूसरे नंबर पर राजद है। तेजस्वी के नेतृत्व में 77 विधायकों के साथ राजद दूसरी एवं जदयू 44 विधायकों के साथ तीसरी बड़ी पार्टी है। कांग्रेस के 19 विधायकों को भी राजद के साथ जोड़ दिया जाए तो इंडिया गठबंधन भारी पड़ जाएगा। भाजपा इसीलिए इस बार विधानसभा चुनाव में भी अपना चेहरा आगे रखना चाहती है। बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे- जैसे नजदीक आ रहे हैं राजनीति में नये-नये दांव पेंच दिखाई पड़ने लगते हैं। नीतीश कुमार ने गुस्सा निगलते हुए चिराग पासवान को गले लगाया, उनके पक्ष में रोड शो किया। अब भाजपा नेता संजय पासवान ने कुछ तसल्ली देते हुए अपने बयान में कहा कि अगर नीतीश कुमार साथ नहीं होते तो भाजपा जीरो पर आउट हो जाती लेकिन गत 27 जून को भाजपा नेता अश्विनी कुमार चैबे ने कहा कि बिहार में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बननी चाहिए। अब यह बयान चर्चा में है। क्या आपरेशन लोटश फिर चलेगा जैसे इसी साल फरवरी में चला था। बिहार के 16 कांग्रेस विधायक हैदराबाद पहुंचे थे। सभी विधायक दिल्ली में थे। बाद में तीन और कांग्रेस विधायक हैदराबाद गये। कांग्रेस ने 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में शक्ति परीक्षण से पहले किसी भी खरीद-फरोख्त के प्रयास से बचने के लिए अपने विधायकों को हैदराबाद स्थानांतरित करने का फैसला किया था।
बिहार विधानसभा मंडल में सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण भाजपा की हनक बढ़ने लगी है। विधानसभा में 78 विधायक और विधान परिषद में 24 सदस्यों की संख्या होने के साथ ही दोनों सदन के शीर्ष पद पर भाजपा का कब्जा हो गया है। विधानसभा अध्यक्ष एवं विधान परिषद के सभापति पद पर भाजपा राजद के आधार वोट बैंक वाले नेताओं को बैठाकर 2025 के विधानसभा चुनाव को साधने की जुगत में जुट गई है। सीधे तौर पर 14 प्रतिशत आबादी वाले यादव समुदाय के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव को विधानसभा अध्यक्ष बनाकर दूरगामी संदेश दिया था। लोकसभा चुनाव में राजद के तीन विधायकों के सांसद बनने और विधानसभा से त्यागपत्र देने के बाद राजद ने बड़ी पार्टी की हैसियत खो दी है। अब दोनों सदनों में भाजपा ही सिरमौर है। दोनों सदनों के आसन पर भी भाजपा विराजमान है और बड़ी पार्टी के रूप में सदन में अधिक समय की हकदार बन गई है। अब शाहाबाद एवं मगध की हार के बाद विधान परिषद में राजपूत समुदाय के अवधेश नारायण सिंह को सभापति बनाकर पार्टी के रणनीतिकारों ने दूरगामी संदेश देने की पहल की है।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा में भाजपा शाहाबाद एवं मगध मिलाकर पांच सीटें हार गई है। सदन प्रमुख की बात करें तो विधान सभा में नंद किशोर यादव अध्यक्ष हैं तो विधान परिषद में अवधेश नारायण सिंह कार्यकारी सभापति हैं। लोकसभा चुनाव में विधान मंडल के पांच सदस्य सांसद बन गए हैं। इसमें विधानसभा के चार एवं विधान परिषद के एक सदस्य सम्मिलित हैं। सुरेंद्र प्रसाद यादव (गया), सुधाकर सिंह (बक्सर), सुदामा प्रसाद (आरा), जीतनराम मांझी (गया) और देवेश चंद्र ठाकुर (सीतामढ़ी) से लोकसभा के लिए चुने गए हैं। इन सदस्यों के इस्तीफे के कारण दोनों सदन में दलगत संख्या में फेरबदल हुआ है। आने वाले दिनों में राजद सदस्यों की संख्या और घट सकती है। विधानसभा के संदर्भ में बता दें कि कुछ सदस्यों के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई विचाराधीन है। इसलिए उन्हें अभी मूल पार्टी के सदस्य के रूप में ही गिन रहे हैं। बजट सत्र के दौरान सदन में पाला बदलने वालों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।आगे कार्रवाई की उम्मीद भी नहीं दिख रही है। वैसे विधानसभा की रुपौली और विधान परिषद की विधानसभा कोटे की एक सीट के लिए चुनाव प्रक्रियाधीन है।
विधानसभा में भाजपा सदस्यों की संख्या 78 है। जबकि 77 विधायकों के साथ राजद दूसरी एवं जदयू 44 विधायकों के साथ तीसरी बड़ी पार्टी है। विधानसभा में कांग्रेस के 19, माले के 11, हम के तीन, सीपीआई के दो, सीपीएम के दो, एआइएमआइएम के एक और निर्दलीय एक सदस्य हैं। विधान परिषद में 21 सदस्यों के साथ जदयू दूसरी बड़ी पार्टी बन गई है। राजद के 15, कांग्रेस के तीन, सीपीआई, हम, लोजपा और माले के एक-एक सदस्य हैं। वहीं, निर्दलीय छह हैं। परिषद की दो सीट रिक्त है। विधान परिषद में 24 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है ।
यही वजह है कि भागलपुर में भाजपा नेता अश्विनी कुमार चैबे ने साफ कर दिया कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चेहरा भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बननी चाहिए। पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा अकेले अपने दम पर सत्ता में आए और अपने सहयोगियों को भी आगे ले जाए, यही मेरी मंशा है। इसके लिए हर कार्यकर्ता को अभी से काम पर लग जाना चाहिए। मैं बिना किसी अपेक्षा के इसे बखूबी निभाऊंगा…मुझे लगता है कि हम नीतीश कुमार को साथ लेकर आगे बढ़ रहे थे, आज भी आगे बढ़ रहे हैं और आगे भी आगे बढ़ेंगे…चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चेहरा तय होगा। पार्टी और
केंद्रीय नेतृत्व यह तय करेगा लेकिन पार्टी के संगठन को पार्टी में आयातित माल हमें कभी बर्दाश्त नहीं… इसलिए अध्यक्ष के पद पर निश्चित रूप से संगठन के मूल का व्यक्ति होना चाहिए।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चैधरी कई बार यह बात कह चुके हैं कि बिहार विधान सभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही आगे भी लड़ेगी। लोकसभा सीट बंटवारे के समय सीट घटाए जाते समय ही भारतीय जनता पार्टी की ओर से जनता दल यूनाइटेड को इस बात का आश्वासन दिया गया था और बाकी घटक दलों ने भी उसी को देखते हुए कम सीटों पर समझौता किया था। लोग लगातार सवाल कर रहे थे कि क्या 2025 के विधानसभा में भाजपा सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी? इस सवाल का जवाब देते हुए प्रदेश अध्यक्ष सह उपमुख्यमंत्री सम्राट चैधरी ने कहा था कि इसमें दिक्कत क्या है? बिहार में 1996 से नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ रही है और आगे भी लड़ती रहेगी।
यह असमंजस भाजपा नेतृत्व को दूर करना चाहिए। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)