नीतीश के जादू ने किया कमाल

बढ़ती उम्र में भी नीतीश कुमार के फौलादी फैसलों ने बिहार विधानसभा चुनाव में समीकरण बदल दिये। इससे विपक्ष ही हतप्रभ नहीं है बल्कि सत्तापक्ष भी जोड़-घटाना करने में लग गया है। पिछले विधानसभा चुनाव अर्थात 2020 में नीतीश कुुमार की पार्टी को सिर्फ 43 विधायक मिल पाये थे। भाजपा और राजद आगे निकल गये थे। उसी आकलन पर इस बार कहा जा रहा था कि नीतीश को क्या फिर से सीएम की कुर्सी सौंपी जाएगी? मतदान से पहले भाजपा ने भी नीतीश कुमार को मुख्य चेहरा बताया था लेकिन सीएम घोषित नहीं किया था। अब 243 में 85 सीटें जीतकर नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि आखिर किंगमेकर वही हैं और रहेंगे। भाजपा इस बार सबसे बड़ी पार्टी जरूर बन गयी लेकिन 89 सीटें पाकर जद(यू) से सिर्फ 4 सीटें ज्यादा ला पायी है। समीकरण ऐसा बना था कि भाजपा और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) 122 विधायक जुटा सकती है। ऐसा नहीं हो पाया। चिराग पासवान की पार्टी को 19 विधायक मिले हैं। जीतनराम मांझी भी 5 सीटें जीतने में सफल रहे जबकि उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 4 विधायक मिले हैं। इस प्रकार नीतीश कुमार ने अपना पलड़ा इतना मजबूत कर दिया है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके अलावा अन्य किसी को नहीं मिलेगी। विधानसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद नीतीश कुमार के आवास की सुरक्षा बढ़ी दी गयी है। यह भी संकेत देता है कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनने वाले हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू ने इस बार के चुनाव में शानदार वापसी की है। विपक्ष के सत्ता विरोधी लहर का शोर, उम्र और राजनीतिक थकान के साथ ही अपने ही गठबंधन के भीतर कमजोर प्रदर्शन की बातों को झुठलाते हुए नीतीश ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है और भाजपा को इस बात के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर किंगमेकर वही हैं और रहेंगे। भाजपा के साथ कदमताल करती हुई जेडीयू 85 सीटों पर आगे बढ़कर एक निर्णायक स्थिति में पहुंच गई है। नीतीश की पार्टी ने जहां 2020 के चुनाव में मात्र 43 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसने बड़ा उलटफेर करते हुए चुनाव में पूरी बाजी ही पलट दी है। इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नीतीश कुमार अपनी सबसे कठिन राजनीतिक परीक्षा से गुजर रहे थे। गठबंधन के सहयोगियों की बातें कि कम सीटें रहते हुए हमने बड़ा दिल दिखाया और नीतीश जी को सीएम बनाया। सीएम का फेस घोषित नहीं करने के बावजूद नीतीश गठबंधन में बने रहे। अपनी नाराजगी भी जताई और साथ चुनाव प्रचार भी नहीं किया। अकेले ही जनता के बीच
जाते रहे और अपनी बात रखते रहे। बारिश के कारण जहां तेजस्वी चुनाव प्रचार में नहीं गए, नीतीश बारिश की परवाह किए बिना चुनाव प्रचार करने निकले।
नीतीश कुमार की उम्र को लेकर कई तरह की बातें कही गईं। उनके स्वास्थ्य को लेकर तंज कसे गए, उनकी दिमागी हालत को खराब बताया गया। कई तरह की बातें की गईं लेकिन नीतीश अपना काम वैसे ही करते रहे जैसा वे करते आ रहे थे। जनता के बीच सुशासन बाबू के रूप में जाने जाने वाले नीतीश पर लगातार गठबंधन बदलने का आरोप लगाते हुए संशय जताया जाता रहा कि वे फिर से पलट जाएंगे, लेकिन जनता ने साबित कर दिया कि वो उनपर कितना भरोसा करती है। इस बार सीट शेयरिंग में भाजपा ने जदयू के साथ 101-101 सीटों पर बराबर सीटों का समझौता किया और ये भी जता दिया कि पीएम मोदी का ब्रांड से काम चल जाएगा और इसे लेकर नीतीश को कम तवज्जो देने की कोशिश की गई लेकिन नीतीश ने इन सबको झुठलाते हुए अपना जादू बिखेरा और पूरा गेम पलट दिया।
नीतीश कुमार सभी जातियों और धर्मों को साथ लेकर चलते हैं और इसके साथ ही बिहार की महिला मतदाताओं के बीच काफी मजबूत पकड़ रखते हैं। सत्ता में लगभग दो दशक बाद भी नीतीश की एक मजबूत नेता की छवि बरकरार है और उनकी उम्र, स्वास्थ्य और कथित राजनीतिक थकान को लेकर उठाए गए सवालों के बावजूद बिहार की जनता आज भी उन्हें पसंद करती है। नीतीश का शासन मॉडल उनकी राजनीतिक संगति से ज्यादा मायने रखता है।
इसीलिए नीतीश कुमार पर जनता ने एक बार फिर ऐतबार जता दिया। राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक बिहार की बात करें, तो इस बार यहां चुनाव इसलिए खास रहे क्योंकि यहां नीतीश कुमार लंबे समय से सत्ता में हैं। वे 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। बाद के वर्षों में उन्होंने गठबंधन बदले, लेकिन सत्ता उनके इर्द-गिर्द ही रही। अब तक वे कुल नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं।
इस बार बड़ा सवाल यह था कि क्या नीतीश कुमार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर पाएंगे? इस बार उनकी पार्टी जनता दल-यूनाइटेड 101 सीटों पर चुनाव में उतरी थी। महागठबंधन शुरुआत में यह दबाव बनाने में कामयाब रहा कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जा रहा है। नतीजतन, भाजपा के बड़े नेताओं ने बार-बार यह कहकर नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगा दी कि जीत के बाद तो वे ही विधायक दल के नेता चुने जाएंगे।बिहार में इस बार दो चरण में मतदान हुआ। पहले चरण में 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान हुआ। कुल 65.08 फीसदी वोट पड़े। दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटें पर मतदान हुआ। कुल 69.20 फीसदी वोट पड़े। इस तरह दोनों चरणों को मिलाकर देखा जाए, तो इस बार कुल मतदान 67.13 फीसदी मतदान हुआ। यह सिर्फ एक सामान्य आंकड़ा नहीं है क्योंकि बिहार के अब तक के चुनाव इतिहास में इतना ज्यादा मतदान कभी नहीं हुआ।
बिहार में नीतीश कुमार की जीत का बड़ा कारण महिलाएं मानी जाती रही हैं। लड़कियों को साइकिल देने से लेकर महिलाओं के खाते में सीधे 10 हजार रुपये भेजने तक की योजनाओं का नीतीश को फायदा होता रहा। इस बार चुनाव से ऐन पहले नीतीश कुमार ने करीब डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये भेज दिए। इसे चुनाव का बड़ा गेमचेंजर माना गया। मतदान के दौरान इसका असर भी तब दिखाई दिया, जब दोनों ही चरणों में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले बढ़-चढ़कर वोट डाला। पुरुषों की तुलना में पहले चरण में 7.48 फीसदी और दूसरे चरण में 10.15 फीसदी अधिक महिलाओं ने वोट किया। बिहार के 38 जिलों में से 37 जिलों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा रहा। सिर्फ पटना में पुरुषों ने महिलाओं से ज्यादा वोटिंग की। पहले चरण के लिए नामांकन की आखिरी तारीख तक महागठबंधन में सीटों के बंटवारे की स्थिति साफ नहीं थी। कई सीटों पर गठबंधन में शामिल दो-दो दलों के उम्मीदवार आमने-सामने थे। इस देरी का फायदा एनडीए को मिला। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)



