शिव समान प्रिय मोहि न दूजा-4

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)
देवताओं की प्रार्थना से शिवजी का क्रोध शांत हो जाता है। इसके बाद दम्भ असुर के पुत्रा शंखचूड़ का प्रसंग आता है। शंखचूड़ ने देवताओं का राज्य छीन लिया। देवता ब्रह्मा जी के पास गये तब ब्रह्माजी ने सभी देवताओं को शिवजी के पास भेजा। शिवजी उस असुर को पराजित नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उसकी पत्नी वृन्दा (तुलसी) पतिव्रता स्त्री थी। भगवान विष्णु ने छल करके तुलसी का व्रत भंग किया। तुलसी ने विष्णु को श्राप दिया। उधर, शिव जी ने शंखचूड़ का वध किया। इसी प्रकार अंधकारासुर, हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप का प्रसंग बताया गया है। शिवपुराण मंे इस प्रकार की कई कहानियां हैं।
देवों के स्तवन से शिवजी का कोप शान्त होना और शिवजी का उन्हें वर देना, मय दानव का शिवजी के समीप आना और उनसे वर-याचना करना, शिवजी से वर पाकर मय का वितललोक में जाने का प्रसंग बताया गया है। तत्पश्चात् दम्भ की तपस्या और विष्णु द्वारा उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान, शंखचूड का जन्म, तप और उसे वर प्राप्ति, ब्रह्माजी की आज्ञा से उसका पुष्कर में तुलसी के पास आना और उसके साथ वार्तालाप, ब्रह्माजी का पुनः वहाँ प्रकट होकर दोनों को आशीर्वाद देना और शंखचूड का गान्धर्व विवाह की विधि से तुलसी का पाणिग्रहण करने का प्रसंग है। शंखचूड का असुर राज्य पर अभिषेक और उसके द्वारा देवों का अधिकार छीना जाना, देवों का ब्रह्मा की शरण में जाना, ब्रह्मा का उन्हें साथ लेकर विष्णु के पास जाना, विष्णु द्वारा शंखचूड के जन्म का रहस्योद्घाटन और फिर सबका शिव के पास जाना और शिवसभा में उनकी तारीफ करना तथा अपना अभिप्राय प्रकट करना। रुद्र द्वारा उन्हें आश्वासन और चित्ररथ को शंखचूड के पास भेजना, चित्ररथ के लौटने पर रुद्र का गणों, पुत्रों और भद्रकाली सहित युद्ध के लिये प्रस्थान, उधर शंखचूड का सेना सहित पुष्पभद्रा के तट पर पड़ाव डालना तथा दानवराज के दूत और शिव की बातचीत का रोचक प्रसंग है।
देवताओं और दानवों का युद्ध, शंखचूड के साथ वीरभद्र का संग्राम, पुनः उसके साथ भद्रकाली का भयंकर युद्ध करना और आकाशवाणी सुनकर निवृत्त होना, शिवजी का शंखचूड के साथ युद्ध और आकाशवाणी सुनकर युद्ध से निवृत्त हो विष्णु को प्रेरित करना, विष्णु द्वारा शंखचूड के कवच और तुलसी के शीलका अपहरण, फिर रुद्र के हाथों त्रिशूल द्वारा शंखचूड का वध की कथा बताई गयी है।
विष्णु द्वारा तुलसी के शील-हरणका वर्णन, कुपित हुई तुलसी द्वारा विष्णु को शाप देना, उमा द्वारा शम्भु के नेत्र मूँद लिये जाने पर अन्धकार में शम्भु के पसीनेसे अन्धकासुर की उत्पत्ति, हिरण्याक्ष की पुत्रार्थ तपस्या और शिव का उसे पुत्ररूपमें अन्धकको देना, हिरण्याक्षका त्रिलोकी को जीतकर पृथ्वीको रसातलमें ले जाना और वराह रूपधारी विष्णुद्वारा उसका वध कर पृथ्वी के उद्धार की कथा बतायी गयी है। तत्पश्चात् हिरण्यकशिपु की तपस्या और ब्रह्मासे वरदान पाकर उसका अत्याचार, नृसिंह द्वारा उसका वध और प्रह्लाद को राज्य प्राप्ति, भाइयों के उपालम्भ से अन्धक का तप करना और वर पाकर त्रिलोकी को जीतकर स्वेच्छाचार में प्रवृत्त होना, उसके मंत्रियों द्वारा शिव-परिवार का वर्णन, पार्वती के सौन्दर्य पर मोहित होकर अन्धक का वहाँ जाना और नन्दीश्वर के साथ युद्ध, अन्धक के प्रहार से नन्दीश्वर की मूच्र्छा, पार्वती के आवाहन से देवियों का प्रकट होकर युद्ध करना, शिवका आगमन और युद्ध, शिवद्वारा शुक्राचार्य का निगला जाना, शिवकी प्रेरणा से विष्णु का काली रूप धारण करके दानवों के रक्त का पान करना, शिवका अन्धक को अपने त्रिशूल में पिरोने के साथ युद्ध की समाप्ति होती है।
इसके बाद शुक्राचार्य का प्रसंग आता है। शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या शिव जी से ही प्राप्त हुई थी। नन्दीश्वर द्वारा शुक्राचार्य का अपहरण और शिवद्वारा उनका निगला जाना, सौ वर्ष के बाद शुक्र का शिवलिंग के रास्ते बाहर निकलना, शिवद्वारा उनका ‘शुक्र’ नाम रखा जाना, शुक्र द्वारा जपे गये मृत्युंजय- मन्त्र और शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का वर्णन, शिवद्वारा अन्धकको वर-प्रदान, शुक्राचार्य की घोर तपस्या और इनका शिवजीको चित्तरल्न अर्पण करना तथा अष्टमूत्त्यष्टक-स्तोत्र द्वारा उनका स्तवन करना, शिवजी का प्रसन्न होकर उन्हें मृतसंजीवनी विद्या तथा अन्यान्य वर प्रदान करना, श्रीकृष्ण द्वारा बाणकी भुजाओंका काटा जाना, सिर काटनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्ण को शिवका रोकना और उन्हें समझाना, श्रीकृष्ण का परिवार समेत द्वारका को लौट जाना, बाणका ताण्डव नृत्य द्वारा शिव को प्रसन्न करना, शिवद्वारा उसे अन्यान्य वरदानोंके साथ महाकालत्व की प्राप्ति, गजासुर की तपस्या, वर-प्राप्ति और उसका अत्याचार, शिव द्वारा उसका वध,उसकी प्रार्थनासे शिव का उसका चर्म धारण करना और ‘कृत्तिवासा’ नाम से विख्यात होना तथा कृत्तिवासेश्वरलिंग की स्थापना करना दुन्दुभिनिह्हाद नामक दैत्यका व्याघ्ररूप से शिवभक्त पर आक्रमण करने का विचार और शिव द्वारा उसका वध करने का प्रसंग है।
शिव पुराण की कहानियों में सापेक्षता के सिद्धांत, क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धांत के साथ पूरी आधुनिक भौतिकी को बहुत खूबसूरती से कहानियों के जरिये अभिव्यक्त किया गया है। यह एक तार्किक संस्कृति है, इसमें विज्ञान को कहानियों के जरिये व्यक्त किया गया था। हर चीज को साकार रूप दिया गया था। मगर बाद में जाकर लोगों ने विज्ञान को छोड़ दिया और बस कहानियों को ढोते रहे। उन कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता रहा, कि वे कुछ मूर्खतापूर्ण लगने लगीं। अगर आप उन कहानियों में फिर से विज्ञान को ले आएं, तो यह विज्ञान को अभिव्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका है।
शिव पुराण मानव प्रकृति को चेतना के चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसे बहुत सुंदर कहानियों द्वारा वर्णित किया गया है। योग को एक विज्ञान के रूप में व्यक्त किया गया है, जिसमें कहानियां नहीं हैं, लेकिन अगर आप गहन अर्थों में उस पर
ध्यान दें, तो योग और शिव पुराण को अलग नहीं किया जा सकता। एक उनके लिए है, जो कहानियां पसंद करते हैं तो दूसरा उनके लिए है, जो हर चीज को विज्ञान की नजर से देखना चाहते हैं, मगर दोनों के लिए मूलभूत तत्व एक ही हैं। आजकल, वैज्ञानिक आधुनिक शिक्षा की प्रकृति पर बहुत शोध कर रहे हैं। एक चीज यह कही जा रही है कि अगर कोई बच्चा 20 साल की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यावहारिक दुनिया में प्रवेश करता है, तो उसकी बुद्धि का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है, जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि वह बहुत ज्ञानी मूर्ख में बदल जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शिक्षा देने का एक बेहतर तरीका है, उसे कहानियों या नाटक के रूप में प्रदान करना। इस दिशा में थोड़ी-बहुत कोशिश की गई है, मगर दुनिया में ज्यादातर शिक्षा काफी हद तक निषेधात्मक रही है। जानकारी का विशाल भंडार आपकी बुद्धि को दबा देता है, जब तक कि वह एक खास रूप में आपको न दिया जाए। कहानी के रूप में शिक्षा प्रदान करना बेहतरीन तरीका होगा। इस संस्कृति में यही किया गया था। विज्ञान के सर्वोच्च आयामों को बहुत बढ़िया कहानियों के रूप में दूसरे लोगों को सौंपा गया। शुक्राचार्य की मृतसंजीवनी विद्या वैज्ञानिक है। (हिफी)