शिव समान प्रिय मोहि न दूजा-6

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)
भगवान शिव की महिमा के साथ शिवजी के विशेष मंदिर, जिनको ज्योतिर्लिंग कहा जाता है और जहां रुद्राभिषेक और दर्शन का विशेषस महत्व बताया जाता है, उनका भी उल्लेख शिव पुराण मंे है। शिवपुराण के श्रवण से अभीष्ट फल मिलता है। माना जाता है कि शिवपुराण का श्रवण मात्र करने से देवराज, नामक ब्राह्मण को शिवलोक की प्राप्ति हुई थी। उत्तर प्रदेश मंे वाराणसी मंे स्थित बाबा विश्वनाथ का मंदिर और काशी का इतिहास भी शिवपुराण मंे बताया गया है।
शिव पुराण के अनुसार शिव पुराण के सुनने मात्र से एक व्यक्ति को शिवलोक की प्राप्ति हो गयी थी।
शिवपुराण सुनाते हुए शौनक जी ने कहा, हे सूतजी! आपको परमार्थ तत्व का संपूर्ण ज्ञान है। आपकी कृपा से आपकी बताई हुई दिव्य कथा से आज हमने यह जान लिया की इस भूतलपर कल्याण के लिए इस कथा से उत्तम दूसरा कोई साधन नई है। अब आप हमे कृपा करके यह बताइए की इस पृथ्वी पर इस कथा को सुनकर किस प्रकार के पापी शुद्ध हो सकते है? सूतजी बोले, हे मुनि! इस पुराण के पठन अथवा ज्ञान से अवश्य ही पापी, दुराचारी, और काम, क्रोध में डूबे रहने वाले लोग भी शुद्ध हो सकते है। प्राचीन इतिहास का वर्णन मुनियों ने कुछ इस प्रकार से किया है, जिसके श्रवण या पठन से पापो का संपूर्ण नाष हो जाता है। सूत जी ने कहा प्राचीनकाल की बात है। एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम देवराज था। वह ज्ञान के विषय में बहुत ही दुर्बल, दरिद्र, और वैदिक धर्म से विमुख था। वह अपनी दिशा से भ्रष्ट हो गया था और वैश्य वृत्ति के कामों में लगा रहता था। उसे स्नान संध्या आदि कामों का ज्ञान नहीं था। वो हमेशा उस पर भरोसा करने वाले लोगों को ठगता था। उसने सभी लोगो के धन को हड़प लिया था और वह धन को धर्म के काम में नही लगाता था। एक समय पर वह घूमता हुआ प्रतिष्ठान पर पहुंच गया था। वहां बहुत सारे साधु महात्मा इकट्ठे हुए थे। वहां पर एक शिवालय था। उसकी नजर उस शिवालय पर पड़ी। उसको यह सब देख ज्वर आ गया, उसे पीड़ा होने लगी। शिवालय में एक ब्राह्मण शिव पुराण कथा कह रहा था। तब वो ज्वर में पड़ा हुआ ब्राह्मण भी उसे निरंतर सुन रहा था। एक महीने के बाद वह ज्वर से अत्यंत पीड़ित होने लगा और फिर चल बसा। यमराज के दूत आकर उसे बलपूर्वक पाशांे से बांध कर ले गए, तभी वहां पर भगवान शिव के पार्षद गण शिवलोक से आ पहुंचे। उनके स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है। वह उज्जवल दिख रहे थे। उनके हाथो में त्रिशूल थे। उनके अंग भस्म से उद्धसित थे। उनके गले में रुद्राक्ष की मालाएं थीं। वो लोग अत्यंत क्रोध के साथ यमपुरी में गए और यमराज के दूतों को खूब मारा और धमकाया और उस देवराज को उनके चंगुल से छुड़वाकर अपने अद्भुत विमान में बिठाकर कैलाश पर जाने लगे।
यमपुरी में तब बहुत कोलाहल मच गया था। उसे सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर निकले। तब भगवान शिव के उन दूत को देखकर धर्म राज ने अपने ज्ञान दृष्टि से सब कुछ जान लिया और उनकी पूजा की। उन्होंने भय के कारण उन दूत से कोई भी प्रश्न नहीं किया और फिर वह दूत कैलाश को निकल गए और वहां पहुंचकर उन्होंने देवराज को भगवान शिव के हाथो में सौंपा। इस प्रकार शिव पुराण के केवल श्रवण मात्र से देवराज को शिवलोक प्राप्त हुआ।
सूतजी ने इसके बाद काशी नगरी का इतिहास बताते हुए कहा, हे ऋषियों, जब भगवान ने दो में से एक होने की इच्छा जगाई, तो वे स्वयं शिव नामक सगुण रूप बन गए और दूसरे रूप में शक्ति बन गए। इस प्रकार उन दोनों ने आकाशवाणी को सुना कि तुम दोनों को ऐसी तपस्या करनी चाहिए जिससे एक उत्तम सृष्टि की रचना हो। तब उस पुरुष ने भगवान से पूछा कि किस स्थान पर तपस्या करनी है, इसलिए शिवजी ने आकाश में एक उत्कृष्ट नगर बनाया जो सभी आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित था। वहां विष्णु जी ने सृष्टि की रचना की और श्रद्धाभाव से शिव जी का तप किया। तब अति परिश्रम के कारण बहुत सारी जलधारा बहने लगी और पूरा आकाश व्याप्त हो गया। वहां कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। इससे प्रभावित होकर, विष्णु जी को अद्भुत लगा! और जब उन्होंने आश्चर्य से सिर हिलाया, तो उनके कान से एक मनका गिर गया। वह स्थान जहाँ यह मनका गिरा, वह मणिकर्णिका नामक एक प्रसिद्ध तीर्थ बन गया। जब जलराशि में पूरी नगरी डूबने लगी तब शिवजी ने अपने त्रिशूल पर पृथ्वी को धारण कर लिया। उस समय विष्णु अपनी पत्नी के साथ उसी स्थान पर सोए थे। तब विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ और इस कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए ब्रह्माजी की उत्पत्ति में भी भगवान शिवाजी की ही इच्छा थी। फिर उन्होंने शिव की आज्ञा से ब्रह्मांड की रचना शुरू की। उन्होंने ब्रह्मांड में चैदह भुवनों की रचना की। इस ब्रह्मांड के क्षेत्रफल को ऋषि-मुनियों ने पचास करोड़ योजन के रूप में दिखाया है। फिर शिवजी ने सोचा की इस ब्रह्माण्ड में कर्मो के बंधन से वह जीव मुझे कैसे प्राप्त करेंगे। इसलिए शिवजी ने मुक्तिदाईनी पंचक्रोशी को इस जगत में छोड़ दिया। इसे ही काशी नगरी कहा जाता है। वहां शिव ने मुक्त नाम से एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। हे मुनिओ! ब्रह्माजी के एक दिन के अंत होने पर प्रलय होता है। उस समय भी पूरे जगत के नष्ट होने पर काशी क्षेत्र नष्ट नहीं होता है। माना जाता है प्रलय के समय काशी क्षेत्र नष्ट नहीं होगा क्योंकि शिवजी काशी विश्वनाथ क्षेत्र को उस समय अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और जब ब्रह्माजी द्वारा पुनः निर्माण किया जाता है, तब शिवजी उसके स्थान पर काशी क्षेत्र को फिर से स्थापित कर देते है।
काशी विश्वनाथ नगरी मनुष्य के पाप कर्मो का नाश करने वाली पवित्र नगरी है। काशी मुक्तेश्वर लिंग हमेशा इस काशी क्षेत्र में मौजूद है। यह मुक्तेश्वर लिंग मुक्ति का दाता है जिनकी सद्गति नही होती उनकी सदगति इस काशी विश्वनाथ क्षेत्र में होती है, क्योंकि यह सदाशिव को अति प्रिय है।-क्रमशः (हिफी)