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शिव समान प्रिय मोहि न दूजा-8

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)

ऋषियों की भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा देखते हुए सूतजी ने त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा का आगे का प्रसंग सुनाया। गौतम ऋषि को वहां रहने वाले अन्य ऋषियों की द्वैष भावना के चलते गौहत्या का पाप लगा। इससे गौतम ऋषि को अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वरुण देव के वरदान वाला कुंड छोड़कर जाना पड़ा। गौतम ऋषि ने शिवजी की तपस्या की और शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें ऋषियों के षड़यंत्र के बारे में बताया। यह भी कहा कि गौतम ऋषि आपने कोई पाप नहीं किया है। आप वरदान मांगे। गौतम ऋषि ने गंगा जी की मांग की। शंकर जी ने उन्हें गंगा जी प्रदान कर दीं तो गौतम ऋषि ने गौहत्या पाप से मुक्ति की प्रार्थना की। गंगा जी ने भगवान शंकर से भी वहीं रहने की प्रार्थना की। इस पर शंकर जी मान गये और गंगाजी गौतमी के नाम से वहीं प्रवाहित होने लगीं। शिव जी त्र्यंबकेश्वर के नाम से वहां निवास करते हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के बाद सूतजी ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कथा सुनाई। एक समय जब गौतम के शिष्य जल कुंड से पानी लेने गए, तो अन्य ऋषियों की पत्नियों ने शिष्यों को पानी लेने से रोक दिया और कहा, पहले हम यह पानी लेंगे, फिर जब आपको पानी लेना होगा, तो शिष्यों ने अहिल्याजी को बुलाया। अहिल्याजी ने शिष्यों को पहले पानी लेने की व्यवस्था की तो ऋषि की पत्नियां क्रोधित हो गईं और उन्होंने अपने पतियों को बात को ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर कहा, इसलिए ऋषियों ने ऋषि गौतम से बदला लेने के लिए गणपतिजी की पूजा की, तो गणपति प्रकट हुए और ऋषियों से आशीर्वाद मांगने के लिए कहा। ऋषिओ ने कहा हमें गौतम को अपमानित करने और उन्हें निकाल देने की शक्ति दो।
ऋषियों की मांग सुनकर गणपति कहने लगे हैं, ऋषियों! ऐसे साधु से घृणा करना ठीक नहीं है। याद रहे कि ऋषि ने आपके सुख-शांति के लिए जल की व्यवस्था करके आप सभी को प्रसन्न किया, लेकिन जब वे लोग हठ करने लगे तो गणपति कहने लगे, अभी भी मान जाओ नहीं तो इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा, पर वह नहीं माने।
कुछ समय बीतने के बाद गौतम ऋषि उस स्थान पर आए, जहां एक दुबली गाय के रूप में एक ऋषि रूप बदल के आये, जो मृत्यु के कगार पर थी। गाय ऋषि का रास्ता रोक रही थी, इसलिए गौतम ऋषि ने एक पतली छड़ी ली और गाय को रास्ते से हटाने के लिए उसे मारा, लाठी लगते ही गाय की मौत हो गई। तब उन दुष्ट ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गोहत्या का आरोप लगाया और उनका अपमान किया और उन्हें आश्रम छोड़ने के लिए कहा। इसलिए ऋषि और अहल्याजी दुखी हुए और आश्रम को छोड़कर एक जंगल में चले गए। उन्होंने गौहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए गंगा स्नान किया और तप किया। तप के प्रभाव से शिवजी प्रसन्न हुए और कहने लगे, गौतम ऋषि! आप एक पवित्र आत्मा हैं, आपने कोई पाप नहीं किया है। आप वरदान मांगें। तब ऋषि ने शिवजी से गंगा की मांग की, जब शिवजी ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि का अनुरोध स्वीकार किया और गंगाजल ऋषि को दिया।
गौतम ऋषि ने गंगा को गोहत्या के पाप से मुक्त करने के लिए कहा, तो गंगाजी सोचने लगीं कि ऋषि को गोहत्या के पाप से मुक्त करके मैं वापस चली जाऊंगी स्वर्ग के लिए, लेकिन भगवान शिव ने गंगा को आज्ञा दी कि जब तक यह कलियुग है, तब तक तुम्हें इस धरती पर ही रहना है।
तब गंगाजी ने शिवजी से कहा, हे प्रभु! तो आपको भी यहां पार्वती के साथ निवास करना पड़ेगा, शिवजी ने गंगाजी की बात मान ली और वहीं बस गए।
उस समय गंगा ने भगवान से पूछा! संसार के सभी प्राणी मेरी महता को कैसे जानेंगे? उसी समय, ऋषि बोले जिस समय बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करेगा और वहीं रहेगा, उस समय हम आपके जल में स्नान करेंगे और भगवान भोला नाथ के दर्शन करेंगे, तो हमारे पाप नष्ट हो जाएंगे। यह सुनकर गंगा गोमती नाम से वहीं बस गई और शिवलिंग त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
यहां गंगा नदी में पहले ऋषि गौतम ने स्नान संध्या की थी, इसलिए इसे गंगाजी-गंगा-द्वारका कहा गया, फिर दूसरे ऋषि स्नान करने आए, इसलिए गंगाजी अदृश्य हो गयीं।
तब गौतम ऋषि ने गंगा जी से प्रार्थना की कि आप दृश्यमान हो और ऋषियों को स्नान करने दो। तब गंगाजी ने कहा कृतघ्न मुनियों को मैं नहीं दिखूंगी, तब गौतम ऋषि अधिक प्रार्थना करने लगे। गंगाजी कहने लगीं, हे गौतम ऋषि, यदि यह कृतघ्न ऋषि पार्वतीजी की सौ बार परिक्रमा करें, तो मैं उन ऋषियों को दर्शन दूँगी। तब उन ऋषियो को पछतावा हुआ और गौतम ऋषि से अपनी भूल कबूल की तब गंगा जी ने उन्हें दर्शन दिए।
शिवपुराण में सूतजी ने फिर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कथा सुनाई। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग चार धामों मे से एक धाम भी है। इसलिए इसका महत्व और अधिक बताया गया है। शिव पुराण में वर्णित रामेश्वरम् की कथा इस प्रकार है- पृथ्वी के बोझ को हल्का करने के लिए, ऋषियों और देवों को राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए, अन्य राक्षसों के साथ राक्षस राज रावण को नष्ट करने के लिए, भगवान राम ने अयोध्या में कौशल्याजी के पुत्र के रूप में दशरथ महाराज के यहां अवतार लिया। जब श्री राम अपने पिता के वचन के लिए वन में आए, तो उन्होंने पंचवटी में निवास किया। उस समय राक्षस राज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण करके लंका ले गया। तब राम लक्ष्मण सीता की खोज के लिए निकले। किष्किंधा नगर आये। हनुमानजी के कहने पर प्रभु श्रीराम ने सुग्रीव से मित्रता की और सुग्रीव की वाली के अत्याचारों से रक्षा की। हनुमानजी और सुग्रीव की सहायता से सीता की खोज की गई। राम ने लंका पर चढाई की, समुद्र तट पर शिवजी का पार्थिवलिंग बनाकर तीन दिन तक शिवपूजन किया फिर समुद्र में सेतु बांधकर लंका के राजा रावण को हराकर उसका नाश किया और सीता जी को वापस ले आये। इस प्रकार श्रीराम ने समुद्र तट पर शिवजी के पार्थिवलिंग की स्थापना कर पूजा की और शिवजी से यहां सदा के लिए लिंग रूप से बसने की प्राथना की।
श्री राम की प्रार्थना से शिव प्रसन्न हुए और वहां लिंग के रूप में बस गए। तब से यह शिवलिंग रामेश्वरम् के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव के इस लिंग की पूजा, यज्ञ, और जो कोई भोग लगाता है, तो उसके सभी मनोरथ परिपूर्ण होते है, सिद्ध होते हैं और अंत में मोक्षगति को प्राप्त होते
हैं। श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की तीर्थयात्रा तीर्थयात्रियों के लिए फलदायी
होती है।
सूत जी ने ऋषियों से कहा अब हम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा की महिमा आपको सुनाते है। पार्वतीजी के वरदान से दारुका नाम की एक राक्षसी समुद्र तट पर जंगल की रक्षा और देखभाल कर रही थी। दारुका बहुत क्रोधित और अभिमानी थी, उसके पति का नाम दारुक था। वरदान प्राप्त करने के बाद उसने हत्याएं करना शुरू कर दिया। देवताओं ऋषियों को सताना शुरू कर दिया। साथ ही, धर्म को नष्ट करना शुरू कर दिया, इसलिए ऋषियों ने इन दोनों के अत्याचारों से परेशान होकर और्व ऋषि के पास जाकर दोनों राक्षसों की पीड़ा देने के बारे में बात की तब और्व ऋषि ने शाप दिया के यदि वह यज्ञों को नष्ट कर देते है, ऋषिओ को परेशान करते है, जानवरों को मारते है, तो वे दोनों अपने आप नष्ट हो जाएंगे। और्व ऋषि का श्राप लेकर देवता गण ने उन दोनों पर आक्रमण कर दिया। उन दोनों को और्व ऋषि के श्राप का पता चल गया था। इसलिए वे देवताओं से युद्ध नहीं कर सकते थे।-क्रमशः (हिफी)

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