त्याग नहीं अब भोग की राजनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राजनीति मंे प्रवचन देने वाले भले ही यह कहते हैं कि यह जनसेवा हैं इसमंे त्याग करना पड़ता है लेकिन व्यवहार मंे सभी राजनीति की मलाई खाना चाहते हैं। राजस्थान मंे इन दिनों यही देखने को मिल रहा है। एक तरफ कांग्रेस छोड़कर भाजपा मंे मलाई खाने की इच्छा लेकर आये नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है जो दूसरी तरफ कई नेता इसलिए दुबले हो रहे हैं कि राजनीतिक नियुक्ति नहीं की जा रही है। किसी आयोग का अध्यक्ष बन जाने पर गाड़ी-घोड़ा तो मिल ही जाता है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ ने इस संदर्भ मंे जो प्रवचन दिया है, उससे नेताओं की निराशा और बढ़ गयी है। उधर, भाजपा की सहयोगी पार्टी-भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के सांसद राजकुमार रोत ने भील प्रदेश की मांग उठाकर सरकार की चिंता बढ़ा दी है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी सियासी तीर चला रही हैं। वह कहती हैं मौसम और इंसान कब बदल जाए कुछ नहीं जा सकता। हालांकि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राजस्थान लोकसेवा आयोग मंे 3 सदस्य बढ़ाए हैं। यह प्रदेश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित भर्ती एजेंसी है। इसलिए अन्य आयोगों मंे नियुक्ति की उम्मीद भी बढ़ी है।
राजस्थान में बदनाम हो चुकी प्रदेश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित भर्ती एजेंसी राजस्थान लोक सेवा आयोग को सुधारने के लिए भजनलाल सरकार ने एक और कदम आगे बढ़ाया है। राजस्थान के टॉप सर्विसेज आरएएस और आरपीएस जैसे अधिकारियों की भर्ती करने वाली आरपीएससी बीते कई बरसों से पक्षपात, नकल और धांधलेबाजी का दंश झेल रही है। भजनलाल सरकार ने सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं में धांधली को सवालों के घेरे में आई आरपीएससी में अब सदस्यों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया है।
भजनलाल कैबिनेट की बैठक में राजस्थान लोक सेवा आयोग में सदस्यों की संख्या सात से बढ़ाकर 10 किए जाने का फैसला किया गया है। सरकार का तर्क है कि इससे युवाओं को राहत मिलेगी। युवाओं को राहत मिले या न मिले लेकिन नेताओं को राहत मिली है।
राजस्थान की भजनलाल सरकार में राजनीतिक नियुक्तियों के इंतजार में बैठे बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने साफ संदेश दिया है। राठौड़ ने कहा कि ‘हमें गाड़ी नहीं चाहिए, हमें सेवा का मौका चाहिए। हम राजनीति करने आए हैं, लेकिन लाभ लेने के लिए नहीं बल्कि देने के लिए आए हैं।’ राठौड़ के इस जवाब से उन नेताओं को मुश्किल हो सकती है जो बिना चुनाव लड़े और सक्रिय रहे रसूखों के बूते ‘कुर्सी’ की चाह किए बैठे हैं। ऐसे कार्यकर्ताओं को राठौड़ का यह जवाब चिंता में डाल रहा है।
राजनीतिक नियुक्ति पाने वाले नेताओं को मंत्री का दर्जा नहीं मिलने के सवाल पर मदन राठौड़ ने कहा कि हम राजनीति करने आए हैं अपनी चमड़ी और दमड़ी से। राठौड़ ने कहा कि सभी को दर्जा ही दर्जा है। यदि कोई गाड़ी की बात करता है तो बता दूं कि हम गाड़ी के पीछे नहीं भागते। हमें तो अपनी मर्जी से राजनीति करनी है। हम त्याग और सेवा की बात करें लाभ की नहीं। सूबे में भजनलाल सरकार को बने करीब पौने दो साल होने आए हैं लेकिन अभी राजनीतिक नियुक्तियों ने रफ्तार नहीं पकड़ी है। हालांकि राठौड़ ने कहा कि जैसे-जैसे पद खाली हो रहे हैं, वैसे-वैसे भरे जा रहे हैं। कोई यह नहीं कह सकता कि नियुक्तियां नहीं हो रही है। इसके लिए उन्होंने आरपीएससी और किसान आयोग का उदाहरण देते हुए कहा कि नियुक्तियां हो रही हैं। प्रदेश भर में राज्य और जिला स्तर पर अभी बहुत सी राजनीतिक निुयक्तियां होनी बाकी है। इनमें विभिन्न आयोग, बोर्ड और बीस सूत्री कार्यक्रम के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के रूप में कई तरह नियुक्तियां होनी है। इनमें कई नियुक्तियों में स्टेट और कैबिनेट मंत्री तक का दर्जा भी मिलता है। इसके साथ वो तमाम सुविधाएं मिलती है जो राज्य या कैबिनेट मंत्री को मिलती हैं।
पूर्ववर्ती गहलोत सरकार में भी कार्यकर्ता तीन साल से ज्यादा समय तक राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार करते रहे थे लेकिन उनको ये नियुक्तियां गहलोत सरकार कार्यकाल खत्म होने से कुछ समय पहले ही मिल पाईं। नियुक्तियां नहीं होने के पीछे गहलोत सरकार और कांग्रेस संगठन कई तरह के तर्क देते रहे थे। उस समय सबसे बड़ा झमेला गहलोत और पायलट के खेमों का संतुलन बनाने का था। राजनीतिक नियुक्तियों में भी पार्टियां योग्यता की बजाय वोट बैंक और सोशल इंजनीनियरिंग को ज्यादा तवज्जो देती है। इसके साथ ही ये राजनीतिक नियुक्तियां चुनाव से पहले रूठे नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए की जाती है।
राजस्थान में भाजपा की नई टीम बनने को तैयार है। इस नई टीम में पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को छोड़कर बीजेपी में एंट्री करने वाले नेताओं को जगह मिलेगी या नहीं यह बड़ा सवाल है। बीजेपी ने बाहरी नेताओं के लिए कुछ मापदंड तय किए हैं। पार्टी के मुताबिक ये नेता अगर पार्टी के प्रति निष्ठा साबित कर पाए तो उन्हें टीम में जगह मिलेगी। हालांकि अन्य पार्टी से भाजपा में शामिल हुए कई बड़े नेताओं को फिलहाल वो तवज्जो नहीं मिल रही है ना ही वो नेता भाजपा के प्रमुख कार्यक्रमों में देखे जा रहे हैं। अब भाजपा ने तय किया है कि जो भी नेता अन्य दलों से आए हैं उन्हें पहले एक समय अवधि में पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित करनी होगी। उसके बाद ही उन्हें कोई दायित्व को दिया जाएगा। बकौल मदन राठौड़ भारतीय जनता पार्टी सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी है। ऐसे में जो भी नेता किसी भी दल को छोड़कर आए हैं तो उन्हें पहले भारतीय जनता पार्टी की रीति और नीति को अपनाना होगा। देश के विकास में किस तरह से योगदान दें वह उन्हें साबित करना होगा।
दूसरी पार्टियों से आने वाले नेताओं में से पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा और प्रोफेसर गौरव वल्लभ को छोड़ दिया जाए तो किसी नेता को भाजपा संगठन में बड़ा पद नहीं मिला है। गिनती के कुछ नेताओं का चुनाव में उपयोग जरूर किया गया था। पहले विधानसभा और फिर लोकसभा दोनों ही चुनाव में बड़ी संख्या में कांग्रेस और अन्य पार्टियों के कई बड़े नामचीन नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था। भाजपा में आए ऐसे नेताओं की ज्वानिंग जोर शोर से की गई थी लेकिन दोनों प्रमुख चुनावों के होते ही ऐसे नेता भी दरकिनार से हो गए। चुनावों के बाद यह बड़े नेता ज्यादा संगठन में सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। पार्टी कार्यालय पर भी उनकी उपस्थित न के बराबर है। राजस्थान में कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं में पूर्व मंत्री लालचंद कटारिया, महेंद्रजीत सिंह मालवीय, राजेंद्र यादव, पूर्व सांसद खिलाड़ीलाल बैरवा, ज्योति मिर्धा, पूर्व विधायक रिछपाल मिर्धा, विजयपाल मिर्धा, दर्शन सिंह गुर्जर, दीपचंद खेरिया, रामनारायण किसान, रमेश खींची, आलोक बेनीवाल और गिर्राज सिंह मलिंगा शामिल हैं। (हिफी)