अब भोजशाला विवाद

परमार वंश के राजा भोज का एक महल सिर्फ शिक्षा देने के लिए उपयोग किया जाता था। मध्य प्रदेश के धार में राजा भोज का वही महल आज भी भोजशाला के रूप में विख्यात है। यहां पर माता सरस्वती का मंदिर भी हुआ करता था। हिन्दू इस भोजशाला को सरस्वती का मंदिर मानते हैं जबकि मुसलमान इस परिसर को कमाल मौला की मस्जिद बताते हैं। दोनों समुदायों के बीच विवाद अर्से से चल रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर रखा है। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार अज्ञात असामाजिक तत्वों ने भोजशाला के बाहर सुरक्षा के लिए लगाये गये कंटीले तार की बाड़ को काटकर स्मारक में मूर्ति रखने का प्रयास किया था। इसके बाद पुलिस सुरक्षा को बढ़ा दिया गया। मामला न्यायालय तक पहुंचा और एएसआई को सर्वे करने का निर्देश दिया गया। इसी साल 22 मार्च को यह सर्वे शुरू हुआ था जो तीन महीने से ऊपर चला। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में 15 जुलाई को पेशकर दी है। रिपोर्ट में भोजशाला में देवी-देवताओं की मूर्तियां मिलने का उल्लेख है। मामला देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात सुप्रीम कोर्ट के सामने है।
आज से लगभग एक हजार साल पहले धार में परभार वंश का शासन हुआ करता था। यहां पर सन् 1000 से 1055 ईसवी तक राजा भोज ने शासन किया था। माना जाता है कि राजा भोज काव्य के प्रेमी और सरस्वती देवी के अनन्य भक्त। उन्होंने 1034 ईसवी में धार में एक महाविद्यालय की स्थापना करवायी जिसे बाद में भोजशाला के रूप में ख्याति मिली। इस महाविद्यालय को सरस्वती मंदिर भी कहा जाता था। इतिहासकारों के अनुसार आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने कई मंदिरों को ध्वस्त किया। ऐसा माना जाता है कि 1305 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने सरस्वती मंदिर भोजशाला को भी
ध्वस्त कर दिया। इसके बाद 1401 ईसवी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में एक मस्जिद बनवा दी। दूसरे हिस्से में हिन्दू माता सरस्वती की पूजा करते रहे। आक्रांताओं को यह सहन नहीं हुआ और 1514 ईसवी में महमूद शाह खिलजी ने भोजशाला के दूसरे परिसर में भी मस्जिद का निर्माण करवा दिया। इसका विरोध भी चलता रहा लेकिन मस्जिदों को गिराया नहीं जा सका। इस बीच ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन कायम हो गया। अंग्रेजों के सामने यह विवाद लाया गया तो 1875 ई। में यहां पर खुदाई करायी गयी। बताया जाता है कि खुदाई के दौरान सरस्वती देवी की प्रतिमा निकली थी। इस प्रतिमा को मेजर किन केड नामक अंग्रेज लंदन ले गया। लंदन के संग्रहालय में वो प्रतिमा आज भी मौजूद है, ऐसा दावा किया जाता है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में उस प्रतिमा को लंदन से वापस लाये जाने की मांग भी की गयी है।
भोजशाला को हिंदू समुदाय वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष 11वीं सदी के इस स्मारक को कमाल मौला मस्जिद बताता है। यह परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक संगठन की अर्जी पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को एएसआई को भोजशाला- कमाल मौला मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसके बाद एएसआई ने 22 मार्च से इस विवादित परिसर का सर्वेक्षण शुरू किया था। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने दो जुलाई को रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। लेकिन सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश करने के लिए एएसआई ने चार हफ्तों की मोहलत की मांग की थी। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 10 दिन की मोहलत देते हुए सर्वे की रिपोर्ट को 15 जुलाई तक पेश करने का आदेश दिया था। भोजशाला मुक्ति यज्ञ के संयोजक गोपाल शर्मा, जो हिंदुओं के प्रतिनिधि के रूप में सर्वेक्षण के दौरान मौजूद रहे उन्होंने दावा किया था कि एएसआई को भगवान शिव और वासुकी नाग (सात फन वाला सांप) की पौराणिक मूर्तियों सहित कई पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। सर्वेक्षण के दौरान, 1,700 से अधिक कलाकृतियां उजागर हुई हैं, जिनमें कई मूर्तियां, संरचनाएं, स्तंभ, दीवारें और भित्ति चित्र शामिल हैं। एएसआई ने परिसर की खुदाई के दौरान पाए गए पत्थरों, खंभों का कार्बन डेटिंग सर्वेक्षण भी किया। संपूर्ण सर्वेक्षण प्रक्रिया उच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करते हुए और दोनों (हिंदी-मुस्लिम) पक्षों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में की गई थीं। वर्तमान में, विवादास्पद परिसर एएसआई के संरक्षण में है और हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार को परिसर में वाग्देवी (सरस्वती) मंदिर में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को प्रत्येक शुक्रवार को परिसर के एक तरफ स्थित मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति है।
बहरहाल, धार के भोजशाला-कमाल मौला मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण की रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में पेश कर दी है। एएसआई के अधिवक्ता हिमांशु जोशी ने बताया कि 2000 पन्नों की रिपोर्ट पेश की गई है। एएसआई ने सर्वे 22 मार्च से शुरू किया था जो 98 दिनों तक चला था। वहीं हिन्दू पक्ष के याचिकाकर्ता का दावा है कि एएसआई सर्वे में भोजशाला में देवी देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। दूसरी ओर हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की और एमपी हाईकोर्ट की सुनवाई पर रोक के खिलाफ जल्द सुनवाई की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा दिया कि वो इस मामले को देखेंगे। बता दें कि एक अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इंदौर बेंच द्वारा आगे सुनवाई पर रोक लगा दी थी। हालांकि सर्वे को हरी झंडी दिखाई थी। याचिकाकर्ता के वकील विष्णु जैन ने अदालत को बताया कि अब हाईकोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई करे।
इंदौर हाईकोर्ट ने एक याचिका पर धार स्थित भोजशाला के सर्वे के आदेश आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को दिए थे, किंतु देखने वाली बात यह है कि हम बीस साल से एक ही चैराहे पर माथा पकड़े खड़े हैं। सर्वे की रिपोर्ट बिना सर्वे के ही सर्वज्ञात है। भोजशाला में पत्थर खुद बोलते हैं और खंडित हों या साबुत पत्थर झूठ नहीं बोलते। यह अयोध्या, मथुरा, काशी जैसी ही भारत के इतिहास की एक और कहानी है। फरवरी 2003 में जब शुक्रवार के दिन वसंत पंचमी आई तो धार की भोजशाला देशभर में चर्चा का विषय बनी थी, तब तक साल में केवल वसंत पंचमी के ही दिन हिंदुओं को पूजा की अनुमति थी किंतु मुसलमान हर शुक्रवार को नमाज कर सकते थे। एक हिंदू बमुश्किल साल में एक दिन और एक मुसलमान साल में 52 दिन बेधड़क जा सकता था। परमार राजाओं की राजधानी पहले उज्जैन थी। राजा भोज ने धारा नगरी को अपनी राजधानी बनाया, जो आज का धार शहर है। भोजशालाएं मूलतः सरस्वती के मंदिर थे, जहां राज्य पोषित भारत की ज्ञान परंपरा के शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्थाएं व्यापक थीं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)