राजनीतिलेखक की कलम

सरकार और संगठन का विवाद

 

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन को लेकर विवाद दिल्ली की बैठक के बाद समाप्त हो जाना चाहिए था लेकिन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ओबीसी की बैठक मंे ताजा बयान देकर जाहिर कर दिया कि अभी यह आग बुझी नहीं है। बीती 15 जुलाई को भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। इससे लगभग डेढ़ महीने पहले 8 जून को लोकसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ ने समीक्षा बैठक बुलाई थी। इस बैठक मंे दोनों डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य शामिल नहीं रहे थे। सीएम ने मंडलस्तरीय समीक्षा बैठकें कीं, उनमंे भी दोनों डिप्टी सीएम गैर हाजिर रहे। योगी ने भी 18 जुलाई को प्रदेश मंे होने जा रहे 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 30 मंत्रियों की टीम बनायी, उसमंे दोनों डिप्टी सीएम को शामिल नहीं किया। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 22 जुलाई को सीएम योगी के विभाग को पत्र लिखकर कार्मिक विभाग के अपर मुख्य सचिव से आरक्षण का ब्यौरा मांगा। जाहिर है, यह बात सीएम को पसंद नहीं आयी। नीति आयोग की बैठक मंे भाग लेने सीएम योगी दिल्ली गये। दोनों डिप्टी सीएम भी मौजूद थे। बड़े नेताओं से वार्ता भी हुई। पीएम मोदी ने कहा कि सरकार और संगठन में समन्वय होना चाहिए। इसके बाद भी विवाद समाप्त नहीं हुआ है। भाजपा-ओबीसी मोर्चा की बैठक मंे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य बोले कि सरकार नहीं पार्टी जीतती है चुनाव। उन्हांेने 2014 और 2017 के चुनावों का जिक्र भी किया।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जी, इसमें राजनीति न देखें तो कहंे कि चुनाव तो सरकार ही जीतती है। महत्व संगठन का भी है लेकिन उन्हांेने जिन दो चुनावों का जिक्र किया है, उनके संदर्भ में ही बात करना बेहतर होगा। सबसे पहले 2014 के लेाकसभा चुनाव की बात करते हैं। भाजपा का संगठन उस समय भी मजबूत था। जैसा 2009 में लेकिन तब भाजपा चुनाव हार गयी थी। इसके बाद भाजपा ने 2014 में गुजरात माॅडल को सामने रखा। गुजरात माॅडल का मतलब था गुजरात मंे नरेन्द्र मोदी की सरकार। उस सरकार को ही आदर्श बनाया गया था। भाजपा के नेता संगठन का जिक्र तक नहीं करते थे। सभी यही कहते थे कि गुजरात माॅडल पर देश का विकास करना है। केशव प्रसाद मौर्य ने भी यह बात कई बार कही होगी। गुजरात मंे उद्योग-धंधों का विकास और कानून-व्यवस्था की स्थिति का उल्लेख किया गया। उस समय भी संगठन पीछे था और नरेन्द्र मोदी की गुजरात में सरकार की छवि आगे थी।
अब बातंे करते हैं 2017 मंे विधानसभा चुनाव की। उस समय उत्तर प्रदेश मंे अखिलेश यादव की सरकार थी। समाजवादी पार्टी की लोहिया ब्रिगेड अर्थात् सपा का संगठन बहुत मजबूत माना जाता था। कथित मजबूत संगठन अखिलेश यादव की सरकार को दुबारा स्थापित नहीं करवा पाया जबकि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार को बड़ा मुद्दा बनाया गया। उसी समय डबल इंजन की सरकार का नारा लगाया जाता था। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों मंे नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा की सरकार बनी थी। नरेन्द्र मोदी संगठन नहीं सरकार के प्रतीक थे। उस समय भी संगठन ने नहीं सरकार ने भाजपा को जीत दिलवाई थी। इसके बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। उनके कड़क मिजाज और सख्त कानून-व्यवस्था ने भाजपा सरकार की एक अलग छवि बनायी थी। गुण्डों और माफियाओं के घरों पर योगी का बुलडोजर चला तो योगी बुलडोजर बाबा के नाम से मशहूर हो गये। योगी के बुलडोजर वाली छवि ने ही 2022 मंे भाजपा की फिर से प्रदेश मंे सरकार बनवाई थी। इस प्रकार स्पष्ट है कि भाजपा को सत्ता दिलाने मंे सरकार की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण रही है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का ओबीसी की बैठक में नजरिया कुछ भी रहा हो लेकिन इस सच्चाई को भी वे नजरंदाज नहीं कर सकते हैं।
‘सरकार नहीं संगठन बड़ा’ वाले बयान से यूपी की राजनीति में हलचल पैदा करने के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर सरकार को भाव नहीं दिया। इसके बाद बीजेपी में जारी सियासी उठा-पटक थमने की चर्चाओं पर विराम लगता नहीं दिख रहा है। सोमवार को बीजेपी ओबीसी मोर्चा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का बड़ा बयान आया। उन्होंने कहा कि बीजेपी ही हम सभी का वर्तमान है और बीजेपी ही भविष्य है। सरकार के बल पर चुनाव नहीं जीता जाता है, पार्टी ही लड़ती और पार्टी ही जीतती है। 2014 और 2017 में बिना सरकार के हम जीते।
विधानमंडल के मॉनसून सत्र से पहले दोनों डिप्टी सीएम मुख्यमंत्री के साथ दिखे तो लगा कि बीजेपी के भीतर चल रही उठा-पटक थम गई है लेकिन कुछ ही घंटों बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर सरकार नहीं संगठन बड़ा वाले बयान को दोहरा दिया और कहा कि कौन जानता था कि मैं डिप्टी सीएम बनूंगा। सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि बीजेपी ओबीसी मोर्चा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी शामिल होना था लेकिन इससे पहले ही बैठक को संबोधित कर केशव प्रसाद मौर्य वहां से निकल गए। हालांकि कहा जा रहा है कि विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेना था, इसलिए वे निकल गए। इससे पहले बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भी केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि संगठन बड़ा होता है सरकार नहीं। पार्टी में छोटा बड़ा सभी कार्यकर्ता बराबर है जिसके बाद मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के बीच तनातनी की खबरें मीडिया में उड़ने लगी थीं। विपक्ष भी इस बात को लेकर कटाक्ष करता दिखा। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने तो मॉनसून ऑफर दे दिया और कहा कि 100 विधायक लाइए और मुख्यमंत्री बन जाइए। हालांकि दिल्ली में शीर्ष नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद लगा था कि मामला शांत हो गया है। मगर एक बार फिर केशव प्रसाद मौर्य फ्रंटफुट पर खेलते हुए दिख रहे हैं।
देखा जाए तो, 16 जुलाई को बैठकों का ये सिलसिला दिल्ली में शुरू हुआ। दिल्ली में केशव प्रसाद मौर्य ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी। उसके बाद यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेन्द्र चैधरी ने भी नड्डा से मुलाकात की थी। योगी आदित्यनाथ प्रयागराज मंडल के हर विधायक के साथ वन टू वन मीटिंग करने वाले थे और उन्होंने बाकी विधायकों के साथ बैठक की भी, लेकिन केशव मौर्य इस बैठक में नहीं आए। इस बैठक से एक दिन पहले योगी आदित्यनाथ ने पल्लवी पटेल से मुलाकात की थी। पल्लवी पटेल वो नेता हैं, जिन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट से केशव मौर्य को हराया था। यहां भी एक मीटिंग का कनेक्शन दूसरी मीटिंग से जोड़कर देखा जा रहा है। पलल्वी पटेल अनुप्रिया पटेल की बहन हैं। अनुप्रिया पटेल केन्द्र में मंत्री हैं और उनकी पार्टी अपना दल एनडीए की सहयोगी दल है और उनकी बहन की अलग पार्टी है अपना दल कमेरावादी और दोनों बहनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। अनुप्रिया पटेल का जिक्र इसलिए हो रहा है, क्योंकि अनुप्रिया पटेल की लिखी हुई चिट्ठियां अचानक सुर्खियों में आ गई थीं। अनुप्रिया पटेल ने सीएम योगी को कई चिट्ठियां लिखी थी, जिनमें यूपी में ओबीसी की नियुक्तियों को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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