एक देश एक चुनाव का फैसला बेहतर

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश में एक साथ चुनाव कराने का मोदी सरकार का फैसला देशहित में है। चुनाव में काफी पैसा खर्च होता है और समय भी लगता है। इससे विकास के काम रुक जाते हैं। आजादी के बाद एक साथ चुनाव होते भी थे लेकिन अब उन बातों को भूल जाना ही बेहतर होगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक साथ चुनाव करवाने की व्यावहारिकता को भी अपनी रिपोर्ट में समझाने का प्रयास किया है। एक देश एक चुनाव पर रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट को कैबिनेट की ओर से मंजूरी दी गई है। इसके बाद एक देश में एक चुनाव कराने की राह आसान हो गई है। देश के इस बड़े चुनाव सुधार ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की प्रक्रिया दो चरणों में होगी। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ में कराए जाएंगे। उसके दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव 100 दिन के भीतर करवा लिए जाएंगे। अच्छी बात यह है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के कैबिनेट के फैसले कर स्वागत किया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कुछ सवाल जरूर उठाए हैं। उधर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और बिहार में मुख्य विपक्षी दल राजद ने एकसाथ चुनाव कराने का विरोध किया है। इनके विरोध कर भी सुना जाना चाहिए।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट के अनुसार पहले चरण में लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव हों और दूसरे चरण में लोकसभा-विधानसभा के साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराये जाएं। रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश मे सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए। सभी के लिए वोटर आई कार्ड भी एक ही जैसा होना चाहिए। इस दौरान केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि इसी कार्यकाल में एक देश, एक चुनाव लागू करेंगे। बता दें कि बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में भी इसका वादा किया था। हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी पीएम मोदी ने अपने भाषण में भी एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई गई थी जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है। इस कार्यकाल में एक देश एक चुनाव होगा। इस प्रकार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ बात कराने की प्रक्रिया अब संवैधानिक रूप से शुरू हो चुकी है।
हालांकि कई राजनैतिक एक देश एक चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। इसलिए वो नहीं चाहते कि एक देश एक चुनाव का फैसला लागू हो। वहीं मौजूदा सरकार के एजेंडे में एक देश एक चुनाव शामिल है और इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार की तरफ से कमेटी बनाई गई। कमेटी ने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी है, उसी को 18 सितंबर 2024 को कैबिनेट की तरफ से मंजूरी मिल गई है। हालांकि इसके लागू होने की लंबी प्रक्रिया है। यह 2030 के आम चुनाव के दौरान लागू कर जा सकती है
वन नेशन वन इलेक्शन पर विपक्षी दलों में तभेद नजर आ रहे हैं कांग्रेस और राजद इसके विरोध में हैं समाजवादी पार्टी की प्रतिक्रिया सामने आई है। पार्टी ने मोदी कैबिनेट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि हम भी इसके पक्ष में हैं। हम भी चाहते हैं देश में वन नेशन, वन इलेक्शन हो। पार्टी के नेता रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि समाजवादी पार्टी भी इसके पक्ष में है। बीजेपी इसके लिए सभी दलों के नेताओं की एक सर्वदलीय बैठक बुलाने का काम करे। उन्होंने कहा कि 10 साल से बीजेपी केवल इसकी बात कह रही है, प्रचार कर रही है लेकिन 10 साल से वन नेशन वन इलेक्शन क्यों नहीं हो पाया? सपा नेता ने इस प्रकार भाजपा की नीयत पर सवाल उठाया है।
बहरहाल एक देश, एक चुनाव पर मोदी सरकार ने मुहर लगा दी है। मोदी सरकार की कैबिनेट ने देश में सभी चुनाव एक साथ करवाने के लिए बनी रामनाथ कोविंद कमिटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है। इसके बाद देश में ‘एक देश, एक चुनाव’ की राह से सस्पेंस दूर हो गया है। पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने भी साफ किया था कि मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में देश का यह सबसे बड़ा चुनाव सुधार लागू हो जाएगा। मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। रामनाथ कोविंद कमिटी को जिम्मेदारी दी गई थी कि वह देश मे एक साथ चुनाव करवाने की संभावनाओं पर रिपोर्ट दे। समिति ने अपनी रिपोर्ट इस साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी। ब अब 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट की बैठक में रिपोर्ट पर चर्चा की गई और कैबिनेट ने सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि कमिटी की सिफारिशों पर देश की सभी मंचों पर चर्चा की जाएगी। सभी नौजवानों, कारोबारियों, पत्रकारों समेत सभी संगठनों से इस पर बात होगी। इसके बाद इसे लागू करने के लिए ग्रुप बनाया जाएगा फिर कानूनी प्रक्रिया पूरी कर इसे लागू किया जाएगा।
सरकार के सहयोगी दल जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से बदलते भारत की तस्वीर और बेहतर होगी। चुनाव खर्च के विशाल आकार को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा। मतदान केंद्रों पर बड़ी संख्या में लोग कतार में लगेंगे। सुरक्षा बलों की तैनाती समय पर और बेहतर तरीके से की जाएगी। कैबिनेट के इस फैसले से यह रास्ता साफ हो गया है कि भविष्य में जब भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे तो उन्हें एक साथ कराने का रास्ता तय हो गया है। विपक्षी दलों की तरफ से भी इस फैसले कर समर्थन मिला है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने वन नेशन, वन इलेक्शन पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। मायावती ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘एक देश, एक चुनाव’ की व्यवस्था के तहत देश में लोकसभा, विधानसभा-स्थानीय निकाय का चुनाव एक साथ कराने वाले प्रस्ताव को केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा आज दी गई मंजूरी पर हमारी पार्टी का स्टैंड सकारात्मक है, लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित में होना जरूरी है।’
लालू यादव की पार्टी ने इसका विरोध किया है। आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा ने कहा कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का पार्टी की तरफ से सैद्धांतिक विरोध है। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के बारे में ऐसे बताया जा रहा है जैसे कि इसी सरकार में इसका आविष्कार हुआ हो। यह 1962 तक था लेकिन उसके बाद क्या हुआ? 1962 के बाद माला क्यों टूटी? और फिर क्या गारंटी है कि ये माला नहीं टूटेगी। लोकतंत्र में स्थिरता अब जाकर आई है लेकिन ये व्यावहारिक नहीं होगा। मान लीजिए यूपी, महाराष्ट्र या मध्यप्रदेश में सरकार नहीं बनी या फिर सरकार छह महीने में गिर गई तो क्या करेंगे। कैसे इसे लागू कर पाएंगे। देश में बहुत सारे मुद्दे हैं। उन पर सरकार को काम करने की जरूरत है।’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी इसका विरोध किया और कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शन की व्यवस्था व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने कहा कि बीजेपी चुनाव के समय इसके जरिये असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश करती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह व्यवस्था चलने वाली नहीं है। खरगे ने कहा, ‘यह व्यावहारिक नहीं है, चलने वाला नहीं है। चुनाव के समय जब मुद्दे नहीं मिल रहे तो असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की बातें करते हैं।’ इस प्रकार वन नेशन वन इलेक्शन पर मिल बैठकर विचार विमर्श की जरूरत तो है। व्यावहारिक कठिनाई का समाधान पुख्ता और सर्व सहमति से होना चाहिए। (हिफी)