लेखक की कलम

अमरावती को दिव्य और भव्य रूप

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश मंे कभी भूतों का शहर कहे जाने वाले अमरावती को आज दिव्य और भव्य रूप में विकसित की गयी है। इसे आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया गया है। लगभग 20 किलोमीटर लम्बी हरीतिमा से भरी आंध्र की नयी राजधानी का शिलान्यास इसी महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। इसके निर्माण पर 25 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं। पीएम मोदी की मौजूदगी मंे ही 22 अक्टूबर 2015 मंे अमरावती को राजधानी के रूप मंे विकसित करने की योजना बनी थी। इसके विकास पर ग्रहण लगता तब दिखा था जब जगन मोहन रेड्डी की सरकार बनी थी। जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने प्रदेश की तीन राजधानियां बनाने का निश्चय किया था। इसके तहत विशाखा पट्टनम को कार्यपालिका राजधानी और अमरावती व कुर्नूल को क्रमशः विधायिका और न्यायपालिका राजधानी के रूप में विकसित किया जाना था। इस बार भाजपा के गठबंधन मंे चन्द्रबाबू नायडू ने सरकार बनायी और वह अमरावती को ही राजधानी बनाने के पक्ष में थे। ध्यान रहे कि आंध्र प्रदेश का विभाजन होने के बाद तेलंगाना राज्य बना। इसने हैदराबाद को अपनी राजधानी बनाया। आंध्र प्रदेश की भी हैदराबाद ही अस्थायी राजधानी चल रही है। अब अमरावती के रूप में नयी राजधानी मिलेगी। यह सातवाहन राजवंश के तेलुग राजाओं की राजधानी थी।
आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित अमरावती में जश्न का माहौल है। विजयवाड़ा से आंध्र प्रदेश की इस प्रस्तावित नई राजधानी तक 20 किलोमीटर लंबी राह हरे-भरे पेड़ एवं खेतों में लहलहाती फसलों से लेकर दोबारा निर्माण कार्यों का स्वागत करने के लिए खड़ी इमारतें सभी एक ही बात की तरफ इशारा कर रहे हैं और वह है नयी अमरावती का आगाज। लगभग 2,300 वर्ष पुराने इस शहर के लिए यह पुनर्जन्म से कम नहीं है। एक वह समय भी था जब युवाजन श्रमिक रैयतु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के कार्यकाल में अमरावती को ‘भूतों का शहर’ कहा जाता था। इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नई राजधानी शहर के शिलान्यास के लिए आमंत्रित किया गया है। स्थानीय लोगों एवं कारोबारियों के लिए उनकी उम्मीदों में एक नई जान आने वाली है। जब पिछली वाई एस जगनमोहन रेड्डी सरकार ने तीन राजधानी सिद्धांत दिया था तो इन लोगों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया था। पिछली सरकार ने तीन राजधानियों के सिद्धांत के तहत विशाखापत्तनम को कार्यपालिका राजधानी जबकि अमरावती और कुर्नूल को क्रमशः विधायिका और न्यायपालिका राजधानी बनाए जाने का प्रस्ताव दिया था। पिछले साल राज्य विधानसभा चुनाव तक सड़कों और आधी-अधूरी लंबी इमारतों पर उग आए जंगल और घास साफ हो चुके हैं। बेतरतीब दिख रही सड़कें अब दुरुस्त हो गई हैं और करीब 10 महीने पहले तक दिखने वाली सहायक सड़कें अब एक बार जीवंत हो उठी हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अमरावती के विकास कार्यों के लिए अनुबंध पहले ही दिए जा चुके हैं। वर्ष 2024 में इन कार्यों पर 64,910 करोड़ रुपये लागत आने का अनुमान था। अधिकारी ने कहा, ‘प्रमुख बुनियादी ढांचा, बाढ़ नियंत्रण, आस-पड़ोस के क्षेत्र का बुनियादी ढांचा, सरकार कार्यालय, आवास एवं इमारत आदि के निर्माण के लिए 37,702 करोड़ रुपये के अनुबंध दिए जा चुके हैं और अब कार्य शुरू होने की तैयारी चल रही है।‘इन चाक-चौबंद तैयारियों के बीच स्थानीय लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई हैं। ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि उनके सपने जो पूरे होने वाले हैं। अमरावती परीक्षण समिति संयुक्त कार्य समिति (जेएसी) के पी सुधाकर राव ने कहा, ‘पिछले चार वर्षों में 50,000 एकड़ का पूरा इलाका लगभग जंगल में तब्दील हो चुका था। मगर अब उम्मीदें दोबारा जग गई हैं और हम प्रधानमंत्री का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। हमारे लिए यह हर्ष-उल्लास का समय है। अमरावती आंध्र प्रदेश की तकदीर बदल देगा। काम शुरू करने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है और ठेकेदार इसके लिए कमर कस चुके हैं। हम नई राजधानी का काम दोबारा शुरू होने के दौरान बड़े निवेश की घोषणाएं होने की भी उम्मीद कर रहे हैं।‘इस क्षेत्र में रियल एस्टेट क्षेत्र में गतिविधियां खूब बढ़ गई है और कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं। राव ने कहा कि वाईएसआरसीपी के शासनकाल में कीमतें 8,000-80,000 प्रति वर्ग गज थीं मगर अब वे बढ़कर 35,000-65,000 रुपये प्रति वर्ग गज तक पहुंच गई हैं।
पिछले सप्ताह सिंगापुर सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल इस शहर के दौरे पर आया था और उसने वाईएसआरसीपी सरकार के दौरान रुक गई इस कार्य में अपनी भागीदारी फिर सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया। वर्ष 2014 से 2019 के बीच सिंगापुर अमरावती नई राजधानी विकास परियोजना में प्रमुख साझेदार था। अमरावती में 130 सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यालयों का परिचालन शुरू करने के लिए जमीन पहले ही आवंटित कर दी गई थी।
इसके अलावा, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) से विकसित होने वाली परियोजनाएं भी आमंत्रित की गई हैं। समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए इन परियोजनाओं की समीक्षा भी हो रही है। एंकर निवेशक एवं अन्य संभावित निवेशकों के चयन पर सलाह देने के लिए मंत्रियों का समूह भी गठित किया गया है। पीपीपी सहित निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से एक सलाहकार कंपनी की भी मदद ली जा रही है। सरकार ने पहले ही कह रखा है कि अमरावती परियोजना तीन साल की अवधि में पूरी होनी है। राजनीतिक कारणों से अमरावती परियोजना के विकास में काफी देरी हुई है। चंद्रबाबू नायडू निवेशकों को आकर्षित करने के लिए खास तौर पर जाने जाते हैं और राजधानी शहर के इर्द-गिर्द भी कई निवेश हो रहे हैं। किसान भी लैंड पूलिंग मॉडल से खुश नजर आ रहे हैं। नायडू जब अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो माइक्रोसॉफ्ट सहित कई बड़ी वैश्विक कंपनियां आई थीं। अमरावती में भी यही ढांचा लागू करने की प्रक्रिया चल रही है। अब नायडू समय जाया नहीं करेंगे।‘
पूरे अमरावती में गतिविधियां तेज हो गई हैं और एक नया जोश दिख रहा है। नए सिरे से तैयार सड़कें, सुंदर उद्यान, प्रधानमंत्री मोदी, नायडू, उप-मुख्यमंत्री पवन कल्याण और मंत्री नारा लोकेश के बड़े कट-आउट सभी दर्शा रहे हैं कि बौद्ध संस्कृति से लेकर इक्ष्वाकु, पल्लव और चोल राजवंशों के गौरवशाली अतीत का गवाह रहा यह शहर एक और नई गाथा लिखने की तैयारी कर रहा है।अमरावती का इतिहास 2200 से अधिक वर्षों का है। अमरावती का इतिहास दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है जब यह सातवाहन राजवंश की राजधानी के रूप में कार्य करता था। सातवाहनों को पुराणों में आंध्र के रूप में भी जाना जाता है और वे दक्कन क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन भारतीय राजवंश थे। अमरावती को पहले आंध्र नगेरी, उदुम्बरावती और धान्यकटकम जैसे कई नामों से जाना जाता था।
शब्द अमरावती एक पाली शब्द है और ‘अमर के लिए जगह’ के रूप में अनुवाद करता है। इसका प्राचीन नाम धान्यकाटकम धान्यकाटक स्थान से जुड़ा हुआ है, वह स्थान जहां शाक्यमुनि बुद्ध ने कालचक्र धर्म के ह्रदय सार रूप को शंभला राजाओं को सिखाया था। यह प्राचीन भारत के दक्कन क्षेत्र में सातवाहन राजवंश की राजधानी सीट थी। सातवाहन के उदय से पहले भी, यह महायान बौद्ध धर्म का एक पवित्र स्थल था। इस क्षेत्र पर सातवाहन, इक्ष्वाकु, विष्णुकुंडिना, पल्लव, चोल, काकतीय, दिल्ली सल्तनत, मुसुनुरी नायक, बहमनी सल्तनत, विजयनगर साम्राज्य, गोलकोंडा की सल्तनत और मुगल साम्राज्य जैसे कई राजवंशों का शासन रहा है। इस पर प्राचीन भारत के मैसूर के सुल्तान हैदर अली का भी संक्षिप्त कब्जा था। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भाषाई राज्यों की मांग थी। इस प्रकार, 1953 में मद्रास राज्य से तेलुगु भाषियों को अलग करके भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश बनाया गया और इस प्रकार यह स्वतंत्र भारत के आंध्र प्रदेश का हिस्सा बन गया। (हिफी)

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