श्रावण महीने में व्रत-त्योहार

(आचार्य मनोज शुक्ल-हिफी फीचर)
वन्दे देव उमापतिं सुरगुरूं वन्दे जगत्कारणम
वन्दे पन्नग भूषणम मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम
वन्दे सूर्य शशांक वन्हिनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियम
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम।।
श्रावण माह में 2023 व्रत-त्योहारों की सूची
शुद्ध श्रावण कृष्ण पक्ष
4 जुलाई, मंगलवार-सावन मास आरंभ, पहला मंगला गौरी व्रत
6 जुलाई, गुरुवार-संकष्टी चतुर्थी
10 जुलाई प्रथम सोमवार ब्रत
11 जुलाई, मंगलवार-दूसरा मंगला गौरी व्रत
13 जुलाई, गुरुवार-कामदा एकादशी
15 जुलाई, शनिवार-प्रदोष व्रत
15 जुलाई, शनिवार-मासिक शिवरात्रि
16 जुलाई, रविवार-कर्क संक्रांति
17 जुलाई दूसरा सोमवार-सावन मास अमावस्या
पुरूषोत्तम मास
18 जुलाई, मंगलवार-तीसरा मंगला गौरी व्रत (अधिकमास)
24 जुलाई तीसरा सोमवार ब्रत (अधिकमास)
25 जुलाई, मंगलवार, चैथा मंगला गौरी व्रत (अधिकमास)
29 जुलाई, शनिवार-पद्मिनी (पुरूषोत्तमी) एकादशी ब्रत
30 जुलाई, रविवार-प्रदोष व्रत (अधिकमास)
31 जुलाई चैथा सोमवार ब्रत (अधिकमास)
1 अगस्त, मंगलवार-पूर्णिमा व्रत,पांचवा मंगला गौरी व्रत (अधिकमास)
4 अगस्त, शुक्रवार-संकष्टी चतुर्थी
7 अगस्त पांचवा सोमवार ब्रत (अधिकमास)
8 अगस्त, मंगलवार-छठा मंगला गौरी व्रत (अधिकमास)
12 अगस्त, शनिवार-पुरूषोत्तमी एकादशी
13 अगस्त, रविवार- प्रदोष व्रत
14 अगस्त छठा सोमवार मासिक शिवरात्रि
15 अगस्त, मंगलवार-सातवां मंगला गौरी व्रत (अधिकमास), स्वतंत्रता दिवस
16 अगस्त, बुधवार-पुरूषोत्तमी (अमावस्या अधिकमास) समाप्ति
शुद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष
17 शुद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष आरंभ प्रतिपदा
19 अगस्त हरियाली तीज
21 अगस्त, सातवां सोमवार-ब्रत नाग पंचमी ब्रत ( गुडिया)
22 अगस्त, मंगलवार- आठवां मंगला गौरी व्रत
27 अगस्त, रविवार-श्रावण पुत्रदा एकादशी ( शुद्ध श्रावण)
28 अगस्त, आठवां सोमवार ब्रत-प्रदोष व्रत
29 अगस्त, मंगलवार-ओणम/थिरुवोणम
30 अगस्त, बुधवार- नौवां मंगला गौरी व्रत
31 अगस्त, गुरुवार-श्रावण पूर्णिमा रक्षा बंधन
रुद्राभिषेक का विशेष महत्व
शिवपुराण के रुद्र संहिता में सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव हर मनोकमना पूरी करते हैं। साथ ही इससे ग्रह जनित दोष और रोगों से भी मुक्ति मिलती है। सनातन धर्म में यह सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली पूजा मानी जाती है, जिसका फल भगवान शिव प्रसन्न होकर तत्काल फल देते हैं।
रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान शिव के रुद्र रूप का अभिषेक करना। सावन में शिवलिंग पर रुद्र मंत्रों के द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रूप में ही विश्रुत है। भगवान शिव के कई अभिषेक होते हैं लेकिन रुद्राभिषेक का अपना अलग स्थान है। यह श्रेष्ठ ब्रह्मणों द्वारा करवाया जाता है। अपनी जटाओं में पतित पावनी मां गंगा को धारण करने वाले शिव को रुद्राभिषेक की जलधारा विशेष प्रिय है।
रुद्राभिषेक के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा अपने जन्म का कारण का जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे थे। तब भगवान विष्णु ने कहा कि आपकी उत्पत्ति मेरी नाभि से हुई है लेकिन ब्रह्माजी यह मानने को तैयार ही नहीं थे। इसलिए दोनो में भयंकर युद्ध हुआ। विष्णु और ब्रह्माजी के युद्ध से नाराज होकर भगवान रुद्र ने ज्योतिर्लिंग रूप में अवतार लिया। तब बिष्णुजी और ब्रहमाजी ने निश्चय किया कि जो कोई भी इसके अंतिम भाग को स्पर्श कर लेगा, वही परमेश्वर साबित होगा। तब ब्रह्माजी हंस बनकर लिंग के आगे के भाग को ढूंढने लगे और विष्णुजी वराह बनकर लिंग के नीचे की ओर ढूंढने लगे। हजारों सालों तक कोई भी उस लिंग का अंत ना पा सका। लिंग का आदि और अंत भगवान ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तब दोनो ने हार मान ली। भगवान ब्रह्मा और विष्णु मिलकर लिंग का अभिषेक किया, तब भगवान शिव प्रसन्न हुए। तब से रुद्राभिषेक का आरंभ हुआ था। शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा कि आप दोनो हमारी देह से उत्पन्न हुए हैं। सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा हमारे दक्षिण अंग से और विष्णु वाम अंग से उत्पन्न हुए हैं।
पुराणों के अनुसार, सर्वदेवात्मको रुद्रः सर्वे देवाः शिवात्मकाः अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा में हैं। जैसा की मंत्र से साफ है कि रूद्र ही सर्वशक्तिमान हैं।
त्रयंम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
अर्थ – हम त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
इस मंत्र के प्रभाव से मनुष्य का अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। इसका का जप करने वाले को लंबी उम्र मिलती है। महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतानबाधा कई दोषों का नाश होता है।
लंबी बीमारी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो इस मंत्र का प्रतिदिन जाप करें। इस मंत्र के जप से रोगों का नाश होता है और मनुष्य निरोगी बनता है।शारीरिक के साथ मानसिक शांति भी मिलेगी।
धन हानि से बचने,जमीन जायदाद से संबंधित विवादों में सफलता के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ होता है।इससे मनुष्य को मनुष्य को धन-धान्य की कमी नहीं होती है। ईष्र्या, लालच, नुकसान का डर, इस प्रकार की नकारात्मकताएं भी इस मंत्र
के जाप से खत्म हो जाती है। इससे मनुष्य को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है।
महामृत्युंजय मंत्र जाप का सही उच्चारण करना बेहद आवश्यक है। इसमें की गई गलती दुष्प्रभाव डाल सकती है। मंत्र का जाप करते समय
ध्यान रखें कि आप जिस आसन पर बैठे हों वो एकदम शुद्ध हो। कुशा के आसन पर बैठकर जप करना सबसे अच्छा होता है। इस मंत्र का जाप केवल रुद्राक्ष माला से ही करें। विधि विधान से महामृत्युमंजय मंत्र का जाप करते वक्त शिवलिंग पर दूध मिले जल से अभिषक करते रहे। इस मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या निर्धारण कर करे। अगले दिन इनकी संख्या बढ़ा लें, लेकिन कम न करें।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिेए। पवित्र श्रावण मास में अपने घर में शिवार्चन रूद्राभिषेक महामृत्युंञ्जय मन्त्र जप लघु मृत्युन्ञ्जय मन्त्र जप मृत संजीवनी शिवपञ्चाक्षरी मन्त्र जप अनुष्ठान तथा अधिक मास में शुद्ध भागवत मूल पारायण (पाठ) के
लिए वैदिक आचार्यों की सहायता प्राप्त करें। (हिफी)