कश्मीर में खुल रहे इतिहास के झरोखे

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
एक किताब के पन्ने अचानक झरोखे की तरह खुल गये। इस झरोखे से ऐसी हवा का झोंका आया जिसे जम्मू-कश्मीर में सियासी हंगामा खड़ा हो गया । स्वतंत्र राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू कश्मीर में पहली बार सत्ता संभालने के बाद से ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पहले आरक्षण, फिर राज्य का दर्जा, वक्फ संशोधन कानून और अब पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुल्ला की किताब ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ से सियासत गर्म है। पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुल्लत की किताब द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई ने बाजार में उतरने से पहले ही जम्मू कश्मीर की सियासत में तहलका मचा दिया है। उन्होंने अपनी किताब में नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां ) के अध्यक्ष डॉ फारूक अब्दुल्ला पर अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण का समर्थन करने और भाजपा के साथ सरकार बनाने पर सहमत होने का आरोप लगाया है। हालांकि डॉ फारूक अब्दुल्ला ने दुल्लत के दावों का खंडन करते हुए कहा कि किताब में बहुत कुछ बेबुनियाद लिखा है,लेकिन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की इल्तिजा मुफ्ती ने कहा कि दुल्लत के खुलासों से उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई है। जम्मू कश्मीर के साथ नेकां के विश्वासघात का एक और सुबूत सामने आया है।
पीसी के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन ने कहा कि मुझे इस खुलासे पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। डॉ फारूक अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री के बीच चार अगस्त 2019 की मुलाकात मेरे लिए कभी रहस्य नहीं रही।उन्होंने कहा कि दुल्लत साहब के दावों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, क्योंकि उनकी और डॉ फारूक अब्दुल्ला की घनिष्ठता सभी जानते हैं। दोनों एक दूसरे की परछाई जैसे ही हैं। उन्होंने कहा कि नेकां अब इन दावों को नकारते हुए , इसे नई दिल्ली व अपने विरोधियों का षडयंत्र करार देते हुए रोएगी। वह हर बार यही करती है। सज्जाद लोन ने नेकां- भाजपा के बीच सांठगांठ का दावा करते हुए व्यंग्य भरे लहजे में कहा कि नेकां के विधाायक नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा व अन्य भाजपा नेताओं से मिलते हैं और कहते हैं कि हम तो आपके कुंभ में बिछड़े हुए भाई हैं। मैं तो पहले से ही मानता हूं कि पांच अगस्त 2019 को जो हुआ, वह पहले से तय था और वर्ष 2024 में नेंका को उसका इनाम मिला है।
इस प्रकार इस किताब में डॉ. फारूक अब्दुल्ला को अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थक बताने से संगठन में असंतोष साफ नजर आ रहा है। यही कारण है कि पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती से लेकर अन्य विपक्षी दल नेकां को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। इसी क्रम में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती पर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के बारे में पूर्व रॉ प्रमुख ए एस दुल्लत की नवीनतम पुस्तक पर उनकी टिप्पणी के लिए निशाना साधा। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, अगर महबूबा मुफ्ती मानती हैं कि दुलत ने जो कुछ लिखा है, वह सब सच है, तो क्या हमें उनकी पहली किताब में उनके पिता के बारे में जो लिखा है, उसे भी सच मानना चाहिए?
मुफ्ती के पिता दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री थे। उमर यहां एएस दुल्ला की 2015 में पब्लिश हुई किताब – कश्मीर-द बाजपेयी इयर्स की बात कर रहे थे। इस किताब में मुफ्ती मोहम्मद सईद को बेटी और महबूबा मुफ्ती की बहन रुबिया सईद के (1989) अपहरण का जिक्र किया गया था। उस समय मुफ्ती सईद केंद्र सरकार में गृहमंत्री थे। किताब में बताया गया कि उस दौरान फारूक अब्दुल्ला ने आतंकियों को न छोड़ने की बात कही थी लेकिन सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। इसी तरह किताब में अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी और मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच रिश्ते का भी जिक्र था।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि किताबों की बिक्री बढ़ाने के लिए तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना दुलत की आदत है। उन्होंने पूछा कि क्या ऐसे दोस्तों के होते हुए दुश्मनों की जरूरत है? दुलत पर कटाक्ष करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि जब किताबें बेचने की बात आती है तो वह सच्चाई के साथ खड़े नहीं होते। उन्होंने कहा कि अपनी पहली किताब में भी उन्होंने किसी को नहीं बख्शा था। इस किताब में भी उन्होंने फारूक साहब को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
मुख्यमंत्री ने कहा, खैर, कम से कम अब फारूक साहब को दुल्लत की असली पहचान समझ में आ गई है। उन्हें अब इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि जब किताब रिलीज होगी तो फारूक साहब उनके साथ खड़े होंगे। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। मुफ्ती ने यह भी दावा किया कि 2014 में उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी।
सज्जाद लोन ने इसी क्रम में एक्स पर अपनी एक प्रतिक्रिया में लिखा है कि दुल्लत साहब ने अपनी किताब में लिखा है कि फारूक अब्दुल्ला ने निजी तौर अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया था। पोस्ट में लिखा है। संयोग से, दुल्लत साहब दिल्ली के कुख्यात अंकल और आंटी ब्रिगेड के प्रसिद्ध अंकल हैं। बेशक नेकां इससे इंकार करते हुए इसे नेकां के खिलाफ एक और साजिश कहेगी। उसने विक्टिम कार्ड खेलने में महारत हासिल कर ली है। उन्होंने आगे लिखा है कि मेरे अंकल आंटी मेरे इसी प्रतिक्रिया का संज्ञान लेंगे और भाजपा से ऐसे ट्वीटरों को सबक सिखाने की गुहार लगाएंगे। मैं फारूक साहब को यह कहते हुए देख सकता हूं- हमें रोने दो – तुम अपना काम करो – हम तुम्हारे साथ हैं – अब ऐसा लगता है कि 2024 में उन्हें 2019 में की गई सेवाओं का पुरस्कार मिला है। बेशक, राष्ट्रीय हित में।इस बीच, पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने कहा कि दुल्लत साहब जो हमेशा डॉ फारूक अब्दुल्ला की प्रशंसा करने लिए,उनके खास दोस्त के रूप में जाने जाते हैं अब उन्होने ही बताया है कि डॉ फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र के कदम के साथ जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि वह इसका विरोध करने के लिए संसद में खड़ा होने के बजाय, श्रीनगर में ही रहे और इसे सामान्य बनाने के लिए दिल्ली के साथ सक्रिय रहे। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने से कुछ दिन पहले अब्दुल्ला और पीएम के बीच क्या हुआ, इस पर पहले से ही संदेह
था।
नेकांअध्यक्ष डॉ फारूक अब्दुल्ला ने एएस दुल्लत की किताब में किए गए दावों और अपने विरोधियों के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि किताब में बहुत कुछ बेबुनियाद लिखा गया है, किताब में इतनी गलतियां हैं मैं बयान नहीं कर सकता। अफसोस है कि वह मुझे दोस्त कहता है,लेकिन दोस्त ऐसी बातें नहीं लिख सकता।
उन्होंने कहा कि उसने दावा किया है कि 1996 में जब मैंने हुकूमत बनाई तो उससे पूछा था कि किसको मंत्री बनाऊं, उसने कहा है कि उसने छोटा मंत्रिमंडल बनाने को कहा,लेकिन मैनें तो 25 मंत्री बनाए। वह कहता है कि मैं उससे हर विषय में सलाह करता था, लेकिन मुख्यमत्री तो सिर्फ अपनी कैबिनेट से सलाह करता है, लेता है, और इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताता। मैंने कभी उससे सलाह नहीं ली। (हिफी)