वक्फ कानून में सुधार अपरिहार्य

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हम सभी ने सुना होगा और सुनकर आश्चर्य भी हुआ कि प्रयागराज मंे जहां महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, वह जमीन वक्फ बोर्ड की है, ऐसा दावा किया गया। युगों से चला आ रहा तीर्थराज प्रयाग का मेला, जहां भारद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य ऋषि से रामकथा सुनी थी, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का पवित्र संगम होता है और जहां आज भी एक महीने माघ मंे श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। उस जमीन को वक्फ बोर्ड कहता है कि यह तो हिन्दुओं की जमीन ही नहीं है। इसी तरह के दावे अन्य तीर्थस्थलों की जमीन पर भी किया जा सकता है। मुगल साम्राज्य ने धर्म-कर्म सब कुछ तो छीन कर कब्जा किया। इसलिए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व मंे वक्फ कानून में लगभग 40 संशोधनों का प्रस्ताव रखा। इन संशोधनों में प्रमुख यह है कि वक्फ बोर्ड इधर-उधर की जमीन पर जो दावा करता है, उसके लिए अनिवार्य सत्यापन के प्रमाण देने होंगे। इससे पारदर्शिता भी सुरक्षित होगी। वक्फ कानून 1995 मंे संशोधन स्वीकार हो गये हैं क्योंकि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) मंे विपक्ष के संशोधन खारिज हो गये हैं। जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने 27 जनवरी को यह जानकारी दी है। देश मंे पहली बार 1954 मंे वक्फ एक्ट बना। इसी के बाद वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। इसके बाद 1995 मंे नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना था।
बीते दिनों संसद में एक नया विधेयक लाया गया जो 1995 के वक्फ कानून में बदलाव करेगा। इसका मकसद वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता लाने के साथ महिलाओं को इन बोर्ड में शामिल करना है। सरकार के अनुसार मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठ रही मांगों को देखते हुए यह कदम उठाया जा रहा है। हाल ही में कैबिनेट की ओर से समीक्षा किए गए इस विधेयक का उद्देश्य मौजूदा वक्फ अधिनियम के कई खंडों को रद्द करना है। ये रद्दीकरण मुख्य रूप से वक्फ बोर्डों के मनमाने अधिकार को कम करने के उद्देश्य से हैं, जो वर्तमान में उन्हें अनिवार्य सत्यापन के बिना किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में दावा करने की अनुमति देता है। राजनीतिक दलों के बीच इस बिल को लेकर तीखी बहस छिड़ी है। भारत में वक्फ की अवधारणा दिल्ली सल्तनत के समय से चली आ रही है, जिसके एक उदाहरण में सुल्तान मुइजुद्दीन सैम गौर (मुहम्मद गोरी) की ओर से मुल्तान की जामा मस्जिद को एक गांव समर्पित कर दिया गया था। साल 1923 में अंग्रेजों के शासन काल के दौरान मुसलमान वक्फ अधिनियम इसे विनियमित करने का पहला प्रयास था।
साल 1954 में स्वतंत्र भारत में वक्फ अधिनियम पहली बार संसद की ओर से पारित किया गया था। साल 1995 में इसे एक नए वक्फ अधिनियम से बदला गया, जिसने वक्फ बोर्डों को और ज्यादा शक्ति दी। शक्ति में इस इजाफे के साथ अतिक्रमण और वक्फ संपत्तियों के अवैध पट्टे और बिक्री की शिकायतों भी बढ़ गईं। साल 2013 में, अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे वक्फ बोर्डों को मुस्लिम दान के नाम पर संपत्तियों का दावा करने के लिए असीमित अधिकार प्रदान किए गए। संशोधनों ने वक्फ संपत्तियों की बिक्री को असंभव बना दिया। वक्फ इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से समर्पित संपत्तियों को संभालने का काम करता है। एक बार वक्फ के रूप में नामित होने के बाद संपत्ति दान करने वाले व्यक्ति से अल्लाह को ट्रांसफर हो जाती है और यह अपरिवर्तनीय होती है। इन संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ या सक्षम प्राधिकारी की ओर से नियुक्त मुतव्वली द्वारा किया जाता है।
रेलवे और रक्षा विभाग के बाद वक्फ बोर्ड कथित तौर पर भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूमि धारक है। वक्फ बोर्ड भारत भर में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों को नियंत्रित करते हैं, जिनकी अनुमानित कीमत
1.2 लाख करोड़ रुपये है। उत्तर प्रदेश और बिहार में दो शिया वक्फ बोर्ड सहित 32 वक्फ बोर्ड हैं। राज्य वक्फ बोर्ड का नियंत्रण लगभग 200 व्यक्तियों के हाथों में है।
यह बिल मौजूदा वक्फ कानून में लगभग 40 बदलावों का प्रस्ताव रखता है। इसके तहत वक्फ बोर्डों को सभी संपत्ति दावों के लिए अनिवार्य सत्यापन से गुजरना होगा, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों की संरचना और कामकाज को बदलने के लिए धारा 9 और 14 में संशोधन करना है, जिसमें महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व को शामिल किया गया है। इसके अलावा, विवादों को निपटाने के लिए वक्फ बोर्डों द्वारा दावा की गई संपत्तियों का नया सत्यापन किया जाएगा और दुरुपयोग को रोकने के लिए, जिला मजिस्ट्रेट वक्फ संपत्तियों की निगरानी में शामिल हो सकते हैं। यह कानून वक्फ बोर्डों की मनमानी शक्तियों को लेकर व्यापक चिंताओं के कारण लाया जा रहा है। उदाहरण के लिए, सितंबर 2022 में, तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने मुख्य रूप से हिंदू बहुल तिरुचेंदुरई गांव पर अपना दावा जताया था। वक्फ संशोधन बिल पर चर्चा कर रही ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी यानी जेपीसी ने 27 जनवरी को बीजेपी और एनडीए के सभी संशोधनों को स्वीकार कर लिया। इस दौरान विपक्ष द्वारा पेश किए गए हर बदलाव को ठुकरा दिया गया। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि समिति द्वारा अपनाए गए संशोधन कानून को बेहतर और अधिक प्रभावी बनाएंगे। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल 2024 पर संसदीय पैनल के सदस्यों ने मसौदा कानून में 572 संशोधनों का सुझाव दिया।
जेपीसी बैठक के बाद विपक्षी सांसदों ने कार्यवाही की निंदा करते हुए जगदंबिका पाल पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नष्ट करने का आरोप लगाया। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह एक हास्यास्पद प्रैक्टिस थी। हमारी बात नहीं सुनी गई। जेपीसी की अध्यक्षता कर रहे जगदंबिका पाल ने तानाशाही तरीके से काम किया है। उधर, जगदंबिका पाल का कहना है कि पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक थी और बहुमत से फैसला आया है। बैठक से पहले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने एनडीए सांसदों के साथ बैठक की थी और सबको एकजुट रहने की सलाह दी थी। जेपीसी अध्यक्ष ने कहा कि विधेयक के 14 खंडों में एनडीए सदस्यों द्वारा पेश किए गए संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि विपक्षी सदस्यों ने सभी 44 खंडों में सैकड़ों संशोधन पेश किए और उनमें से सभी को वोट से खारिज कर दिया गया। वक्फ विधेयक पर जेपीसी की बैठक सुबह 11 बजे बैठी, जिसमें प्रस्तावित विधेयक पर हर क्लॉज पर चर्चा हुई। जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बैठक से पहले कहा था, “आज वक्फ बोर्ड की बैठक है, जिसमें सरकार द्वारा किए गए क्लॉज-बाय-क्लॉज संशोधनों पर चर्चा होगी। जेपीसी के गठन का प्रस्ताव शामिल किया गया था और पिछले छह महीनों में जेपीसी ने सभी हितधारकों और राज्यों के साथ बातचीत की है। अब सांसदों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर चर्चा होगी, चाहे वे पक्ष में हों या विपक्ष में, चर्चा होगी। सहमति बनेगी तो क्लॉज क्लियर होगा, नहीं तो वोटिंग होगी।” जेपीसी की पिछली बैठक में हंगामा हुआ था, जिसके बाद 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर निष्पक्ष चर्चा कराए जाने की मांग की थी। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा था, “संसदीय परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा और यह विधेयक पूरी तरह से समय के खिलाफ है। विपक्ष का मंसूबा कामयाब नहीं हो सका। (हिफी)