लेखक की कलम

जस्टिस गवई होंगे नए सीजेआई

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका इन दिनों ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है। कार्यपालिका के रवैये और विधायिका के फैसले ही नहीं खुद न्यायपालिका के हाईकोर्ट में ऐसी टिप्पणियां की जा रही हैं जो न्यायसंगत भी नहीं हैं और तर्कसंगत कतई नहीं कही जा सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने उन पर अपनी नाराजगी भी जताई है। केन्द्र सरकार ने हाल ही में वक्फ संशोधन अधिनियम को दोनों सदनों में पारित करवाकर कानून बना दिया लेकिन लगभग तीन दर्जन याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो गयीं। इन सभी याचिकाओं पर मौजूदा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सुनवाई कर रहे हैं। सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल अगले महीने अर्थात् 14 मई को समाप्त हो जाएगा। इसलिए परम्परा के तहत सीजेआई संजीव खन्ना ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति बीआर गवई का नाम केन्द्र सरकार के पास भेज दिया है। जस्टिस गवई सबसे सीनियर हैं और कोई अति विशेष अड़चन नहीं आयी तो वह भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में 14 मई 2025 को शपथ लेंगे। हालंाकि जस्टिस गवई का भी सीजेआई के रूप मंे कार्यकाल लगभग 6 महीने ही रहेगा। वह 23 नवम्बर 2025 को ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
मई 2019 मंे सुप्रीम कोर्ट के जज बनने वाले जस्टिस गवई उस बेंच का हिस्सा थे जो आर्टिकल-370 हटाये जाने वाले फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सभी याचिकाओं को खारिज कर सरकार के पक्ष को उचित बताया था। इसी प्रकार एक महत्वपूर्ण फैसला इलेक्टोरल बांड स्कीम को लेकर भी हुआ था। इलेक्टोरल बांड स्कीम को खारिज करने वाली बेंच के भी जस्टिस गवई हिस्सा थे। नोटबंदी के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई करने वाली बेंच मंे भी जस्टिस गवई शामिल थे।
जस्टिस गवई सम-सामयिक विषयों पर भी नजर रखते हैं। दो दिन पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले मंे आरोपित को जमानत देते हुए जिस तरह की टिप्पणी की, उस पर न्यायमूर्ति गवई की पीठ ने आपत्ति जताते हुए कहा कोई जमानत देना चाहता है तो ठीक है, लेकिन इस तरह की टिप्पणी क्यों की गयी। दुष्कर्म के मामले में हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि युवती ने मुसीबत खुद बुलाई। शीर्ष कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च के एक अन्य मामले पर भी स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रहा था जिसमंे नाबालिग के अंग छूना दुराचार नहीं बताया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति आंगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ के इस न्यायसंगत और जन कल्याणकारी सवाल की देश भर मंे तारीफ हो रही है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने औपचारिक रूप से न्यायमूर्ति बी.आर. गवई को अपना उत्तराधिकारी बनाने का प्रस्ताव दिया है। नियुक्ति प्रक्रिया के तहत यह सिफारिश विधि मंत्रालय को भेजी गई है। न्यायमूर्ति गवई वर्तमान में सीजेआई खन्ना के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वो देश के 52वें मुख्य न्यायधीश होंगे। वो 14 मई को सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे। परंपरा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस ही अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजते हैं। इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है। कानून मंत्रालय ने औपचारिक तौर पर जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने जस्टिस गवई का नाम आगे बढ़ाया। गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। उनका जन्म 24 नवंबर को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वे दिवंगत आर.एस. गवई के बेटे हैं, जो बिहार और केरल के राज्यपाल रह चुके हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में उन्होंने 14 नवंबर 2003 को अपनी न्यायिक करियर की शुरुआत की थी। बतौर जज वो मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी के विभिन्न पीठों पर काम कर चुके हैं। हाई कोर्ट ने हाल में बलात्कार के एक मामले में जमानत प्रदान करते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता ने शराब पीकर याचिकाकर्ता के घर जाने के लिए सहमति जताकर खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 17 मार्च के एक आदेश पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि स्तनों को पकड़ना और महिला के ‘पायजामे’ या सलवार का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, उसी उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश ने एक और आदेश पारित किया है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘यदि कोई जमानत देना चाहता है तो ठीक है, लेकिन ऐसी टिप्पणियां क्यों की
गईं कि उसने मुसीबत को खुद ही आमंत्रित किया और इस तरह की बातें। ठीक नहीं इस तरफ भी पीठ
को बहुत सावधान रहना होगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आम आदमी ऐसी टिप्पणियों को कैसे लेता है, इसे ध्यान में रखना आवश्यक है। पीठ ने स्वतः संज्ञान मामले में सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को बलात्कार के प्रयास के मामले में उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसका अर्थ था कि वर्तमान आरोपियों या अन्य द्वारा राहत पाने के लिए किसी भी न्यायिक कार्यवाही में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा था कि उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियां पूर्णतः ‘‘असंवेदनशील’’ तथा ‘‘अमानवीय दृष्टिकोण’’ वाली थीं। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में मामला लाए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने इस पर स्वतः संज्ञान लिया था।
उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को अपने एक आदेश में कहा था कि महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे’ का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता लेकिन इस तरह के अपराध किसी भी महिला के खिलाफ हमले या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आते हैं। उच्च न्यायालय का आदेश आरोपियों द्वारा दायर एक याचिका पर आया था। इन आरोपियों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी, जिसके जरिए उन्हें अन्य धाराओं के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के तहत कथित अपराध के लिए समन जारी किया गया था। एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने एक आरोपी को जमानत देते हुए आदेश पारित किया और कहा, ‘‘पक्षों के वकीलों को सुनने और मामले पर समग्रता से गौर करने के बाद, मैं पाता हूं कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि पीड़िता और याचिकाकर्ता दोनों ही बालिग हैं। पीड़िता एमए की छात्रा है, इसलिए वह अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी, जैसा कि उसने प्राथमिकी में बताया है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत का मानना है कि यदि पीड़िता के आरोप को सच मान भी लिया जाए तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया और वह इसके लिए स्वयं ही जिम्मेदार है। जस्टिस गवई को इस प्रकार की टिप्पणियां न्यायसंगत नहीं लगतीं। (हिफी)

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