लेखक की कलम

रामायण काल से जुड़ा मनकामेश्वर मंदिर

(मोहिता स्वामी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

सावन के महीने में शिव एवं उनके परिवार की आराधना का विशेष महत्व है। आदिदेव भगवान शिव का संदर्भ प्राचीन काल से है और दुनिया भर में कहीं न कहीं शिव का उल्लेख भी मिलता है। हमारे देश में समुद्र मंथन के समय शिव का विशेष उल्लेख मिलता है जब उन्होंने सृष्टि के कल्याण के लिए हलाहल को पी लिया और गले में नीचे नहीं उतरने दिया। भगवान नीलकंठ के प्राचीन मंदिर यूपी की राजधानी लखनऊ में भी है। इनमें एक है गोमती के तट पर डालीगंज में बना शिव मंदिर मनकामेश्वर। हमारे पौराणिक आख्यानों के अनुसार लखनऊ का पहले नाम लखनपुर हुआ करता था। लखनऊ का क्षेत्र प्राचीन काल में कोशल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी और उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को प्रदान कर दिया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता सीता को बाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रुककर भगवान शिव की आराधना की थी। इस प्रकार रामायण काल से यह शिवमंदिर जुड़ा है। कहते हैं कि इस शिवमंदिर में पूजा-आराधना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसीलिए इसका नाम मनकामेश्वर मंदिर है। मनकामेश्वर के नाम से प्रयागराज में भी एक मंदिर है। इसका संबंध भी रामायण काल से है। भगवान राम वनवास जाते समय भ्राता लक्ष्मण और माता सीता के साथ प्रयागराज में रुके थे। अक्षय वट के नीचे माता सीता ने विश्राम किया और शिव की आराधना की थी।
लखनऊ के डालीगंज में गोमती नदी के तट पर बना महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां शिव भक्त अपनी मनोकामना लेकर शिव के दरबार में आते हैं और इस श्रृद्धा के साथ अपनी मनोकामना कहते हैं कि भगवान शिव उनकी इच्छा पूरी करेंगे। महादेव का यह मंदिर मनकामेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। लोगों की आस्था है कि यहां भोलेमाथ हर भक्त की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं। गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का ये मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है।सावन के मौके पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। यहां पर सुबह व शाम आरती का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि यहां जो आरती में शामिल होकर मन में जो भी कामना की जाती है वो पूरी हो जाती है। यहां मंदिर में भोलेनाथ का फूल, बेलपत्र और गंगा जल से अभिषेक किया जाता है। मंदिर में सुबह और शाम को भव्य आरती होती हैं, जिसमें काफी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं। मनकामेश्वर मंदिर में फर्श पर चांदी के सिक्के लगे हैं, जिससे मंदिर काफी सुंदर लगता है।भोले बाबा के दरबार में आने वाले भक्तों को कभी भी निराश होकर नहीं जाना पड़ता। यहां मनकामेश्वर मंदिर में आए सभी भक्तों की महादेव सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं। मंदिर को लेकर लोगों का कहना है की माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रुककर भगवान शंकर की आराधना की थी, जिससे उनके मन को बहुत शांति मिली थी। उसके बाद कालांतर में मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना की गई थी।गोमती नदी के किनारे बना यह मंदिर रामायणकाल का है और इनके नाम मनकामेश्वर से ही इस बात की एहसास हो जाता है कि यहां मन मांगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती। जैसे ही भक्त इस मंदिर में प्रवेश करते हैं उन्हें शांति की अनुभूति होती है। लोग यहां आकर मनचाहे विवाह और संतानप्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर बाबा का बेलपत्र, गंगाजल और दही आदि से अभिषेक करते हैं। इस प्रकार प्रयागराज में भी एक शिवमंदिर मनकामेश्वर के नाम से है। मुगल बादशाह अकबर के किले के समीप यमुना नदी के किनारे मनकामेश्वर मंदिर स्थित है जहां पर भगवान शिव अपने विविध रूपों में विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन-पूजन, जलाभिषेक करने से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। साल भर यहां पर शिव के दर्शन-पूजन को श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। सावन मास में तो यहां पर भारी भीड़ उमड़ती है जिनमें शहर के साथ दूर-दराज से भी भारी संख्या में शिवभक्त जलाभिषेक को आते हैं।मंदिर परिसर में मनकामेश्वर शिव के अलावा सिद्धेश्वर और ऋणमुक्तेश्वर महादेव के शिवलिंग भी विराजमान हैं। रुद्रावतार कहे जाने वाले बजरंगबली की दक्षिणमुखी मूर्ति भी यहां पर है। भैरव, यक्ष और किन्नर भी यहां पर विराजमान हैं। धार्मिक मान्यता है कि जहां पर शिव विराजमान होते हैं वहां पर माता पार्वती का भी वास होता है। ऐसे में यहां पर दोनों के दर्शन का लाभ श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है। मंदिर के प्रबंधक बताते हैं कि स्कंद पुराण और पदम पुराण में कामेश्वर पीठ का वर्णन है। यह वही कामेश्वर धाम है जहां कामदेव को भस्म करके भगवान शिव स्वयं यहां पर विराजमान हुए हैं। बताते हैं कि त्रेता काल में भगवान श्रीराम वनवास जाते वक्त भ्राता लक्ष्मण और माता सीता के साथ प्रयाग में रुके थे और अक्षयवट के नीचे विश्राम किया था। आगे जाने के पहले प्रभु राम ने भी यहां शिव का पूजन और जलाभिषेक कर अपने मार्ग में आने वाली तमाम विघ्न-बाधाओं को दूर करने की कामना की थी।शिव के दर्शन-पूजन के लिए वैसे तो यहां पर रोज शिवभक्तों की भीड़ आती है लेकिन सावन माह में श्रद्धालुओं की संख्या में खासी बढ़ोत्तरी हो जाती है। सावन के सोमवार, प्रदोष और खास तिथियों व शिवरात्रि पर तो यहां तिल रखने तक की जगह नहीं मिलती है। भोर से ही शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ जुट जाती है। रुद्राभिषेक आदि धार्मिक कर्म भी यहां संपादित किए जाते हैं। कुंभ, अर्ध कुंभ और माघ मेला के दौरान भी यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं। (हिफी)

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