बसपा को युवा तेवर दे रहीं मायावती

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
इसमंे कोई संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में चार बार मुख्यमंत्री बनीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती अपनी पार्टी को लेकर चिंतित हैं। वह विकल्प भी तलाश रही हैं। भतीजे आकाश आनंद के साथ दूसरे भतीजे ईशान आनंद को भी राजनीतिक मंच पर खड़ा कर दिया है। उनकी पार्टी बसपा अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है लेकिन बसपा प्रमुख मायावती की हिम्मत बरकरार है। वह कहती हैं न तो मैं टायर्ड हूं और न रिटायर्ड हूं। अभी 15 जनवरी को मायावती ने अपना 69वां जन्म दिन मनाया। इस बार ईशान आनंद पहली दफे मंच पर नजर आये। कुछ लोग कहने लगे कि अब मायावती ईशान को बढ़ावा देंगी। इससे पहले आकाश आनंद को पार्टी का महत्वूपर्ण दायित्व सौंपा जा चुका है। ईशान को राजनीति का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस बीच उनका प्रमुख दलित वोट बैंक खिसकता जा रहा है। आगामी 5 फरवरी को यूपी के मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उप चुनाव होना है। बसपा ने पहले से ही घोषणा कर रखी थी कि उप चुनाव नहीं लड़ेगी लेकिन पिछले साल नवम्बर में हुए नौ विधानसभा सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी खड़े कर दिये। इनमें किसी पर भी उसे सफलता नहीं मिली। इस बार मिल्कीपुर में बसपा प्र्रमुख का कोई दिशा निर्देश भी नहीं है। इससे साफ है कि मिल्कीपुर उप चुनाव में दलित वोट बैंक दिशाहीन रहेगा। मायावती को अपने दलित वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए कुछ विशेष प्रयास करने होंगे।
मायावती की पार्टी इन दिनों सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। चुनाव दर चुनाव बीएसपी का प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा है। बीते लोकसभा चुनाव में तो पार्टी का खाता तक नहीं खुला, न ही गठबंधन से बीएसपी को कोई फायदा हुआ और न ही अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने का फार्मूला सफल रहा। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बीएसपी के दो-चार विधायक चुने गए थे, लेकिन अब वहां भी पार्टी का प्रदर्शन जीरो हो गया है। बीएसपी अपने सबसे मजबूत गढ़ उत्तर प्रदेश में भी संकट में है। यूपी में मायावती चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, लेकिन अब पार्टी का वोट शेयर घटकर केवल 9.4 फीसद रह गया है। मायावती की सबसे बड़ी चिंता अब अपने पारंपरिक वोट बैंक, खासकर दलित वोटरों को बचाने की है। उनके दलित वोट बैंक में बिखराव आ रहा है, जिसे वे सहेजने की कोशिश कर रही हैं। गैर-जाटव वोट बैंक में बीजेपी और समाजवादी पार्टी की अच्छी पकड़ बन गई है, जबकि जाटव वोटरों को अपनी तरफ खींचने में कांग्रेस जुटी हुई है। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती चंद्रशेखर आजाद से मिल रही है, जो खुद लोकसभा सांसद बन चुके हैं। हाल में हुए विधानसभा उपचुनावों में उनकी पार्टी ने बीएसपी से भी बेहतर प्रदर्शन किया। युवा दलित वोटरों का रुझान अब बीएसपी से आजाद समाज पार्टी की तरफ बढ़ने लगा है। शायद यही कारण है कि मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में नंबर दो की जिम्मेदारी सौंपी है। युवा वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया है।
बसपा प्रमुख मायावती अपने 69वें जन्मदिन पर पहली बार अपने दूसरे भतीजे ईशान आनंद को साथ लेकर आईं। उन्होंने ईशान को अपने पास बुलाकर उनके साथ फोटो भी खिंचवाई। इस तस्वीर में मायावती के दाईं ओर आकाश आनंद और उनके बाद ईशान आनंद खड़े थे। बीएसपी प्रमुख ने खुद तय किया कि फोटो में कौन कहां खड़ा होगा लेकिन चौबीस घंटे बाद ईशान की पोजीशन में बदलाव हो गया। उसी स्थान पर मायावती अपने दोनों भतीजों के साथ पहुंची, लेकिन इस बार उन्होंने आकाश आनंद को बाईं ओर और ईशान आनंद को दाईं ओर रखा। ईशान के साथ इस बार सतीश चंद्र मिश्र भी खड़े थे। मायावती के साथ वाली फोटो में ईशान आनंद की पोजीशन चौबीस घंटे में बदल गई। सवाल उठ रहा है कि क्या राजनीति में कुछ बड़ा बदलाव हो सकता है। पहली बार मायावती ने ईशान आनंद को बीएसपी की मीटिंग में बुलाया, जो यूपी के बीएसपी नेताओं की बैठक थी। मायावती ने पार्टी के नेताओं से उनका परिचय भी कराया। सवाल यह उठ रहा है कि क्या मायावती ने अपने भतीजे ईशान आनंद के लिए बीएसपी में कोई खास योजना बना रखी है? मायावती के बड़े भतीजे आकाश आनंद पहले से ही बीएसपी में हैं और पार्टी में उनकी हैसियत मायावती के बाद सबसे ताकतवर नेता की मानी जाती है। दिल्ली चुनाव की जिम्मेदारी भी उनके पास है और दिसंबर 2023 में उन्हें मायावती ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें अपरिपक्व नेता बताकर कुछ समय के लिए हटा दिया गया था, लेकिन बाद मंे उन्हें नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया गया। मायावती ने ईशान के बारे में कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन यह तय है कि वे जल्द ही पार्टी में एक नया पावर सेंटर बन सकते हैं।
बहुत पहले मायावती ने कहा था कि परिवार नहीं, बल्कि पार्टी का कोई सामान्य जाटव कार्यकर्ता ही उनका उत्तराधिकारी बनेगा। हालांकि, राजनीति में सिद्धांत बदलते रहते हैं और यह सवाल अब भी बना हुआ है कि बीएसपी में मायावती के बाद कौन? मायावती इस सवाल का खुद ही जवाब देती
हैं -न तो मैं टायर्ड हूं, और न ही रिटायर्ड हूं। बहुत ही साधारण परिवार में पली-बढ़ीं मायावती ने संघर्ष के जरिए राजनीति में अपना मुकाम बनाया। उन्हें देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है। वो चार बार अलग-अलग समय के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं। कभी आयरन लेडी के नाम से मशहूर मायावती के सितारे राजनीति के मैदान में गर्दिश में चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाने वाली बसपा का विधानसभा में केवल एक विधायक है। वहीं संसद में बसपा की संख्या शून्य है।इस हालात में मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती बसपा को फिर से खड़ा करने की है। मायावती ने अयोध्या के मिल्कीपुर में होने वाला विधानसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए मायवती ने अपने जन्मदिन के अगले दिन पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक बुलाई थी। उत्तर प्रदेश में बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ही नहीं है बल्कि सपा भाजपा और कांग्रेस भी हैं। चंद्रशेखर का मुकाबला करने के लिए मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक बनाया लेकिन बात बनी नहीं। लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में बसपा कोई भी सीट नहीं जीत सकी। बसपा अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए कितना परेशान है, इस बात से समझ सकते हैं कि एक समय उपचुनावों से दूरी बनाने वाली पार्टी उपचुनाव भी लड़ रही है लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। पिछले साल नवंबर में हुए यूपी विधानसभा की नौ सीटों के उपचुनाव में बसपा ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे कहीं भी जीत नहीं मिली। कई जगह तो वो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई। ऐसा तब था जब उपचुनाव वाली सीटों में से कई पर पहले वो जीत दर्ज कर चुकी थी। इससे पहले वह लोकसभा चुनाव के साथ हुए पांच सीटों के उपचुनाव के मैदान में भी उतरी थी लेकिन उसे कहीं सफलता नहीं मिली थी। अब 2027 के विधानसभा चुनाव तक क्या मायावती को प्रतीक्षा करनी होगी? (हिफी)