
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
जनसेवकों का सरोकार अब जन से उतना नहीं रह गया है जितना वे प्रदर्शित करते हैं। संसद से विधानसभाआंे तक यह देखा जा सकता है कि सत्ता में रहने तक जिस काम का वे समर्थन करते थे, विपक्ष में जाते ही उसी का विरोध करने लगते हैं। विपक्षी दलों का कभी-कभी तो अंध विरोध देखने को मिलता है। रेल और बस सुविधाएं हमेशा जनहित में होती हैं तो इनका विरोध करने वाला जनसेवक कैसे कहा जा सकता है। केरल में एक रेल सुविधा को लेकर यही हो रहा है। सत्तारूढ़ एलडीएफ इसे जनहित में बता रहा है जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाला मुख्य विपक्षी दल यूडीएफ इसका विरोध कर रहा है। यह योजना केंद्र सरकार के माध्यम अर्थात रेलवे से सम्पन्न होनी है इसलिए मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन मोदी सरकार के साथ वार्तालाप करते हैं। वामपंथियों के साथ वैचारिक भिन्नता होने के बावजूद केरल की इस योजना को केंद्रीय सरकार का समर्थन मिल रहा है। इस प्रोजेक्ट को लेकर एर्नाकुलम, कोट्टायम और कोझिकोड जिले में सबसे ज्यादा विरोध है। विरोध में सभी विपक्षी दल और पर्यावरणविद भी शामिल हैं। इनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट का रूट वेटलैंड्स, धान के खेत और केरल की पहाड़ियों से होकर गुजर रहा है। इस प्रोजेक्ट के कारण केरल में पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचेगी और बुरा असर पड़ेगा। विरोध प्रदर्शन करने वालों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के कारण 20000 से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा। वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का कहना है, राज्य सरकार किसी भी कीमत पर इस प्रोजेक्ट को पूरा करेगी। कुछ लोग जनता को भटका रहे हैं, लेकिन यह प्रोजेक्ट केरल का भविष्य है।
केरल में के-सिल्वर लाइन प्रोजेक्ट के खिलाफ नयी दिल्ली में 20 मार्च को विजय चैक पर प्रदर्शन कर रहे केरल के यूडीएफ सांसदों और दिल्ली पुलिस के जवानों के बीच हाथापाई हो गई थी। उसी समय यह मामला चर्चा में आया था। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सांसदों ने दिल्ली पुलिस पर उनके साथ दुव्र्यवहार करने का आरोप लगाया। वहीं, दिल्ली पुलिस ने सांसदों के साथ किसी भी तरह के दुव्र्यवहार से इनकार किया है और अपने बयान में कहा है, ”बैरिकेड्स पर मौजूद पुलिस कर्मियों ने केवल सांसदों को रोकने की कोशिश की क्योंकि वे (केरल के यूडीएफ सांसद) चिल्ला रहे थे और अपनी पहचान बताए बिना संसद की ओर बढ़ रहे थे। बहरहाल यह मामला तो सामान्य था क्योंकि विरोध प्रदर्शन के दौरान इस तरह की स्थितियों को रोक पाना मुश्किल होता है। गंभीर विषय है रेल परियोजना का विरोध। परियोजना का विरोध करने वाले पर्यावरण और विस्थापन का तर्क तो सही दे रहे हैं लेकिन इससे होने वाले लाभ का जिक्र करने से भी बच रहे हैं। दरअसल यह विन्दु उनकी राजनीति के अनुकूल नहीं है। राज्य सरकार इसे समझती है। इसीलिए केरल सरकार भारतीय रेलवे के साथ मिलकर राज्य के दक्षिणी और उत्तरी सिरों को जोड़ने के लिए 64000 करोड़ रुपये की लागत से के-सिल्वर लाइन प्रोजेक्ट ला रही है। राज्य सरकार का कहना है कि शहरों में ट्रैफिक तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में अगर केरल के दक्षिण और उत्तर छोर को आपस में ट्रेन से जोड़ दिया जाए तो जनता को आवागमन की सुविधा मिलेगी और रोजगार के अवसर भी बढेंगे। यही सोचकर पिनाराई विजयन केंद्रीय सरकार के साथ मिलकर सेमी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर बनाने की परियोजना पर काम कर रहे हैं। इसका ही नाम के-सिल्वर लाइन प्रोजेक्ट है। रेलवे बोर्ड ने 17 दिसंबर 2019 को इस प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी। कांग्रेस सहित अन्य दल इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को लेकर एर्नाकुलम, कोट्टायम और कोझिकोड जिले में सबसे ज्यादा विरोध है। विरोध में सभी विपक्षी दल और पर्यावरणविद शामिल हैं। इनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट का रूट वेटलैंड्स, धान के खेत और केरल की पहाड़ियों से होकर गुजर रहा है । इस प्रोजेक्ट के कारण केरल में पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचेगी और बुरा असर पड़ेगा। विरोध प्रदर्शन करने वालों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के कारण 20000 से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का कहना है, राज्य सरकार किसी भी कीमत पर इस प्रोजेक्घ्ट को पूरा करेगी। कुछ लोग जनता को भटका रहे हैं, लेकिन यह प्रोजेक्ट केरल का भविष्य है।
केरल सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सिल्वर लाइन के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू करने को मंजूरी दे दी गई है। हाई स्पीड इस ट्रेन का मुख्य उद्देश्य राज्य के उत्तरी और दक्षिणी छोर के बीच यात्रा के समय को कम करना है। 63,941 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना को सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार द्वारा सबसे बड़ा बुनियादी ढांचा उपक्रम माना जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का विरोध भी किया जा रहा है। विरोध करने वालों का कहना है कि इस परियोजना के कारण 9 हजार बिल्डिंग्स गिराई जाएंगी और करीब 10 हजार परिवारों को फिर से रिलोकेट किया जाएगा। प्रोजेक्ट में राज्य के दक्षिणी छोर और राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम को कासरगोड के उत्तरी छोर से जोड़ने के लिए राज्य के माध्यम से एक सेमी हाई-स्पीड रेलवे कॉरिडोर का निर्माण करना शामिल है। इसी के तहत 529.45 किलोमीटर लंबी लाइन का प्रस्ताव है जिसमें 11 स्टेशनों के माध्यम से 11 जिलों को शामिल किया गया है। प्रोजेक्ट के पूरा होने पर कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक 200 किमी. घंटा की यात्रा करने वाली ट्रेनों में चार घंटे से भी कम समय में यात्रा की जा सकती है। अभी इंडियन रेलवे नेटवर्क में इस दूरी के लिए करीब 12 घंटे लगते हैं। केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (केआरडीसीएल) के इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 2025 तक का समय निर्धारित किया गया है। केआरडीसीएल या के रेल, केरल सरकार और केंद्रीय रेल मंत्रालय के बीच एक संयुक्त उद्यम है। शहरी नीति विशेषज्ञों द्वारा लंबे समय से यह तर्क दिया गया है कि राज्य में मौजूद रेलवे बुनियादी ढांचा भविष्य की मांगों को पूरा नहीं कर सकता है। अधिकांश ट्रेनें मौजूदा खंड पर बहुत अधिक कर्व और मोड़ के कारण 45 किमी. प्रति घंटा की औसत गति से चलती हैं। सरकार का दावा है कि सिल्वर लाइन प्रोजेक्ट समय की जरूरत है क्योंकि यह मौजूदा रेलवे खंड से यातायात का एक महत्वपूर्ण भार उठा सकती है और यात्रियों के लिए यात्रा को आसान और तेज बना सकती है। इससे सड़कों पर भीड़ कम होगी और हादसों और मौतों में भी कमी आएगी।केरल रेल के अनुसार, इस परियोजना में इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (ईएमयू) प्रकार की ट्रेनें होंगी जिनमें अधिमानतः नौ कारें होंगी और प्रत्येक को 12 कारों तक बढ़ाया जा सकता है। एक नौ-कार रेक में अधिकतम 675 यात्री बैठ सकते हैं। ट्रेनें मानक गेज ट्रैक पर 220 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति से दौड़ सकती हैं, चार घंटे से कम समय में किसी भी दिशा में यात्रा पूरी कर सकती हैं। दो टर्मिनलों सहित कुल 11 स्टेशन प्रस्तावित हैं, जिनमें से तीन एलिवेटेड, एक अंडरग्राउंड और बाकी ग्रेड पर होंगे। कॉरिडोर के
प्रत्येक 500 मीटर पर सर्विस रोड के प्रावधान के साथ अंडर पैसेज होंगे। कैबिनेट ने औपचारिक रूप से भूमि अधिग्रहण को मंजूरी देने के साथ महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को गति दी है। कुल 1,383 हेक्टेयर का अधिग्रहण करने की आवश्यकता है जिसमें से 1,198 हेक्टेयर निजी भूमि होगी। सरकार की केंद्रीय निवेश शाखा केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड से 2,100 करोड़ रुपये प्राप्त करने की प्रशासनिक मंजूरी को भी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। (हिफी)