लेखक की कलम

नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
सुप्रीम कोर्ट ने नवजात बच्चों को खरीद-फरोख्त रोकने के लिए देश के अस्पतालों को जो दिशा-निर्देश जारी किया है, वह ऐतिहासिक होने के साथ ही मानवीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। एक मां जो अपने बच्चे को नौ महीने कोख में रखने के बाद तमाम पीड़ा सहते हुए उसे जन्म देती है और उसको यह पता चले कि उसका बच्चा चोरी हो गया है, तो इससे ज्यादा असहनीय पीड़ा और दर्द किसी मां के लिए हो ही नहीं सकती है। हालांकि अपने देश में यह आम बात हो गया है, क्योंकि प्रतिदिन ऐसे गिरोह का पर्दाफाश होता ही रहता है, जो नवजातों की तस्करी में शामिल है। गिरोह प्रतिदिन कई माताओं की गोद को सूनी कर देते हैं और उनको जिंदगी भर का ऐसा कष्ट और पीड़ा देते हैं, जिसको वह जीते जी नहीं भूल पाती हैं। इसलिए देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मामले में जो फैसला सुनाया है और दिशा-निर्देश जारी किया है, वह बाल तस्करी रोकने के मामले में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
अदालत ने बाल तस्करी के मामलों से निपटने के तरीके को लेकर यूपी सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई है और साथ हो बच्चों की तस्करी को रोकने और बाल तस्करी अपराधों से जुड़े मामलों से निपटने के लिए राज्य सरकारों के लिए व्यापक दिशा-निर्देश निर्धारित किए हैं। दरसअल वाराणसी और उसके आसपास के अस्पतालों में हुई बच्चा चोरी की घटनाओं के आरोपियों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2024 में जमानत दे दी थी और इसके खिलाफ बच्चों के परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनते हुए इसका दायरा बढ़ा दिया था और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ डेवेलपमेंट से रिपोर्ट मांगी थी। इसके आधार पर अब दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे वी पारदीबाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। कोर्ट ने इस बात को फैसले में दर्ज किया है कि यह देशव्यापी गिरोह था और इसके चुराए हुए बच्चे पश्चिम बंगाल, झारखंड और राजस्थान तक से बरामद हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को समाज के लिए खतरा बताया और कहा कि इन्हें जमानत देना हाई कोर्ट के लापरवाह रवैये को दिखाता है। जमानत के आदेश को चुनौती न देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की भी आलोचना की है। शीर्ष न्यायालय ने बाल तस्करी के मामले में भारतीय इंस्टीट्यूट की तरफ से दिए गए सुझावों को अपने फैसले में जगह दी है और सभी राज्य सरकारों कहा है कि उसे पढ़कर अमल करें। एक अहम निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई महिला बच्चे को जन्म देने के लिए हॉस्पिटल आती है और वहां से नवजात बच्चा चोरी हो जाए, तो सबसे पहले हॉस्पिटल का लाइसेंस सरकार को रद्द कर देना चाहिए। इससे बच्चा चोरी की घटनाओं में कुछ हद तक लगाम लग सकेगी। कोर्ट ने सभी माता-पिता को सलाह दी है कि वह अस्पताल में अपने नवजात बच्चों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा सतर्क रहें। सबसे बड़ी बात है कि शीर्ष न्यायालय ने सभी हाई कोर्ट से कहा है कि वह चाइल्ड ट्रैफिकिंग के लंबित मुकदमों का ब्यौरा लें और ट्रायल कोर्ट को उनका निपटारा 6 महीने में करने का निर्देश दें। इसके साथ अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है वह फैसले के पैराग्राफ 34 में दर्ज की गई सिफारिशों को पढ़े और उन पर अमल शुरू करें।
अदालत के अनुसार बच्चों के गायब होने की घटनाओं को तब तक अपहरण या मानव तस्करी की तरह देखा जाए, जब तक जांच में कोई और बात सामने नहीं आती। जो लोग पीड़ित हैं, पुलिस उनका विश्वास जीतने की कोशिश करें। उन्हें ऐसा न महसूस कराए जैसे उनके खिलाफ ही जांच हो रही है। मानव तस्करी में शामिल लोगों से सख्ती हो और उनके खिलाफ बैंक खाता फ्रीज करने और अवैध संपत्ति जब्त करने जैसी कार्रवाई हो। मानवीय संवेदनाओं पर अहम टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा है कि अगर किसी माता-पिता का नवजात बच्चा मर जाए, तो उन्हें दुख होता है। वह सोचते हैं कि बच्चा ईश्वर के पास वापस चला गया है, लेकिन अगर उनका नवजात बच्चा चोरी हो जाए, तो उनके दुख का अनुमान नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि अब उनका बच्चा एक अज्ञात गिरोह के पास है। देखा जाए तो शायद ही ऐसा कोई सप्ताह जाता है, जब बच्चों की तस्करी का मामला सामने नहीं आता हो। दो दिन पहले ही देश की राजधानी दिल्ली में नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त का घिनौना कारोबार का मामला सामने आया है।
दिल्ली पुलिस ने ऑपरेशन नवजात के तहत एक ऐसे अंतरराज्यीय मानव तस्करी गिरोह का पर्दाफाश किया है जो गरीब परिवारों के मासूम बच्चों को उठाकर दिल्ली-एनसीआर के अमीर निःसंतान कपल को बेचता था। द्वारका जिला पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए गुजरात, राजस्थान और दिल्ली में फैले इस सिंडिकेट के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया है। इनके कब्जे से महज 3-4 दिन का एक नवजात शिशु भी बरामद किया है। पुलिस जांच में जो बातें सामने आई हैं वह और भी चौंकाने वाली हैं, क्योंकि अब तक इस गिरोह ने 30 से ज्यादा बच्चों को दिल्ली-एनसीआर के अमीर परिवारों को बेचा है। गिरोह के सदस्य राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती इलाकों से गरीब तबके के बच्चों को चोरी करते थे। खासकर गुजरात-राजस्थान बॉर्डर के पाली इलाके में आदिवासी समाज के बच्चों को निशाना बनाया जाता था। कुछ मामलों में तो परिवारों को गुमराह कर या फुसलाकर उनके बच्चों को ले जाया जाता था। इसके बाद इन बच्चों को 5 लाख से लेकर 10 लाख रुपये में बेच दिया जाता था। ऐसा गिरोह सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि देश के प्रत्येक राज्य में फैला हुआ है और समय-समय पर राज्य पुलिस के द्वारा कार्रवाई भी की जाती है। लेकिन यह गिरोह जिस प्रकार से पूरे देश में अपनी जाल बिछा चुका है, उसको तोड़ने की जरुरत है। इसके लिए राज्य पुलिस और खुफिया विभाग को मिलकर इस गिरोह पर शिंकजा कसना होगा। अच्छी बात है कि जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश देते हुए नवजातों के मामलांे को छह महीने के भीतर निपटाने और अस्पतालों का लाइसेंस रद्द करने का निर्देश दिया है, इससे उम्मीद की किरण दिखायी देने लगी है कि देश में नवजातों का खरीद-फरोख्त का अवैध धंधा बंद होगा और फिर से किसी मां की कोख सूनी नहीं होगी। (हिफी)

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