गणतंत्र दिवस का संदेश

(मनीषा-हिफी फीचर)
हमारा देश लगभग एक हजार वर्ष की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। उस समय अंग्रेज हमारे देश पर राज करते थे। आजादी के बाद भी संविधान अंग्रेजों का ही लागू हो रहा था। आजादी मिलने के बाद ही अपना संविधान बनाने का प्रयास हमने प्रारम्भ किया था और 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने अपना संविधान तैयार कर इसे अपनाया था। इस संविधान को लागू नहीं किया गया था। उस समय तिथि और दिवस पर विचार न करके 26 जनवरी 1950 को इसलिए लागू किया गया क्योंकि 1930 मंे इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। गणतंत्र दिवस इसीलिए 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य यही है कि 2 साल, 11 महीने और 18 दिन के गंभीर चिंतन-मनन के बाद जो संविधान बना था और जिसने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की थी, उसको हम अपनी पीढ़ी को याद कराते रहें। यह देश भक्ति और गौरव का दिन है। साथ ही उन राजनेताओं को सबक लेने का भी, जो संविधान का मखौल उड़ाते रहते हैं। विधानसभा परिसरों से लेकर संसद के परिसर तक जिस तरह से चुने हुए प्रतिनिधि आचरण कर रहे हैं, वे गणतंत्र दिवस का महत्व अब तक नहीं समझ पाये हैं। इस बार 76वें गणतंत्र दिवस पर हम सभी संकल्प लें कि अपने संविधान की अवहेलना करने वाले को माफ नहीं करेंगे। गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ के शब्दों मंे-
जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिस में रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमंे स्वदेश का प्यार नहीं।
एक स्वतन्त्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपने संविधान को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। इसे लागू करने के 26 जनवरी की तिथि को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। इस दिन हर भारतीय अपने देश के लिए प्राण देने वाले अमर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं। स्कूलों, कॉलेजों आदि मे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत गणराज्य के राष्ट्रपति दिल्ली के कर्तव्य पथ पर भारतीय ध्वज फहराते हैं। राजधानी दिल्ली में बहुत सारे आकर्षक और मनमोहक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पूरे देश को अच्छी तरह सजाया जाता है कर्त्तव्यपथ पर बड़ी धूम-धाम से परेड निकलती है जिसमें विभिन्न प्रदेशों और सरकारी विभागों की झांकियाँ होतीं हैं। देश के कोने कोने से लोग दिल्ली मंे 26 जनवरी की परेड देखने आते हैं। भारतीय सेना के अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। 26 जनवरी के दिन धूम-धाम से राष्ट्रपति की सवारी निकाली जाती है तथा बहुत से मनमोहक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
सन् 1929 के दिसंबर में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वायत्तयोपनिवेश (डोमीनियन) का पद प्रदान नहीं करेगी, जिसके तहत भारत ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित इकाई बन जाता उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। इसके पश्चात स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1946 से आरंभ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। डॉ० भीमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। संविधान निर्माण में कुल 22 समितियाँ थी जिसमें प्रारूप समिति (ड्राफ्टींग कमेटी) सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण समिति थी और इस समिति का कार्य संपूर्ण ‘संविधान लिखना’ या ‘निर्माण करना’ था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष विधिवेत्ता डॉ० भीमराव आंबेडकर थे। प्रारूप समिति ने और उसमें विशेष रूप से डॉ. आंबेडकर जी ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में भारतीय संविधान का निर्माण किया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान सौंपा, इसलिए 26 नवंबर को भारत में संविधान दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है। संविधान सभा ने संविधान निर्माण के समय कुल 114 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। अनेक सुधारों और बदलावों के बाद सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किये। इसके दो दिन बाद संविधान 26 जनवरी को देश भर में लागू हो गया। 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए इसी दिन संविधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। जैसा कि आप सभी जानते है कि 15 ।नह 1947 को अपना देश हजारों देशभक्तों के बलिदान के बाद अंग्रेजों की दासता (अंग्रेजों के शासन) से मुक्त हुआ था। इसके बाद 26 जनवरी 1950 को अपने देश में भारतीय साशन और कानून व्यवस्था लागू हुई। गणतंत्र दिवस को पूरे देश में विशेष रूप से राजधानी दिल्ली में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस अवसर के महत्व को चिह्नित करने के लिए हर साल राजपथ पर एक भव्य परेड इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन (राष्ट्रपति के निवास) तक आयोजित की जाती है। इस भव्य परेड में भारतीय सेना के विभिन्न रेजिमेंट, वायुसेना, नौसेना आदि सभी भाग लेते हैं। इस समारोह में भाग लेने के लिए देश के सभी हिस्सों से राष्ट्रीय कैडेट कोर व विभिन्न विद्यालयों से बच्चे आते हैं, समारोह में भाग लेना एक सम्मान की बात होती है। परेड प्रारंभ करते हुए प्रधानमंत्री राजपथ के एक छोर पर इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति (सैनिकों के लिए एक स्मारक) पर पुष्प माला अर्पित करते हैं। इसके बाद शहीद सैनिकों की स्मृति में दो मिनट मौन रखा जाता है। यह देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़े युद्ध व स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लिए बलिदान देने वाले शहीदों के बलिदान का एक स्मारक है।
संविधान हमारी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के संचालन का एक संदर्भ ग्रंथ है। इसकी प्रस्तावना ही अपने निचोड़ में हमारे राष्ट्रीय जीवन के आदर्श और उद्देश्य दोनों को प्रतिबिंबित करती है। भारत का संविधान बनाते समय संविधान सभा ने भारत को उसकी सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ मंे भी देखा। इसीलिए संविधान की मूल प्रति मंे भारत की संस्कृति और सभ्यता को प्रतिबिम्बित करने वाले 22 चित्रों को सांकेतिक तरीके से लगाया गया है। इसमंे राम दरबार का चित्र है जो राम राज्य का संदेश देता है। आश्चर्य हमारे जनप्रतिनिधि ही इसको अब तक नहीं समझ पाये हैं। (हिफी)