लेखक की कलम

क्या फिर पलटी मारेंगे नीतीश!

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बिहार की राजनीति मंे वर्ष 2025 बड़े बदलाव ला सकता है। इसमें कुछ चीजें तो तय हैं और कुछ चीजें अनुमानित हैं। तय यह है कि राज्य में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। अनुमानित यह है कि इस बार राज्य का मुख्यमंत्री कौन बनेगा, नीतीश कुमार क्या फिर पलटी मारेंगे? तेजस्वी यादव की पार्टी क्या कांग्रेस को छोडकर चुनाव लड़ेगी? हालांकि गत 30 दिसम्बर को ही तेजस्वी यादव ने बयान दिया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राजद के दरवाजे बंद हो चुके हैं। इससे पूर्व यह भी चर्चा थी कि तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच अंदर ही अंदर सहमति बन गयी है। राजद के प्रवक्ता शक्ति सिंह ने कहा था कि समाजवादी सोच के लोग कभी भी एक हो सकते हैं। उन्हांेने यह भी कहा था कि अगर नीतीश कुमार साथ आते हैं तो महागठबंधन में उनका स्वागत किया जाएगा। उधर, नीतीश की भाजपा से नाराजगी की खबरें भी आ रही हैं। एनडीए के नेता स्वयं कह रहे हैं कि आरजेडी के दर्जन भर से अधिक नेता एनडीए में शामिल पार्टियों के सम्पर्क में हैं। गत दिनों नीतीश कुमार दिल्ली में थे। उन्हांेने दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिजनों से बात की लेकिन भाजपा नेताओं से नहीं मिले। अमित शाह की बैठक मंे भी नीतीश नहीं गये थे। इसलिए नीतीश के फिर से पलटी मारने की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं।
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेताओं की चौकस नजर नीतीश कुमार पर है। उन्हें बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने का इंतजार है। बीच-बीच में वे संकेत भी देते रहे हैं कि जल्दी ही नीतीश आरजेडी के साथ आ जाएंगे। हालांकि आरजेडी ने पहले भी नीतीश को अपदस्थ करने की कोशिश की है, पर तब कामयाबी नहीं मिली। सच कहें तो आरजेडी पर उसका ही दांव उल्टा पड़ गया था। गत 12 फरवरी 2024 को विश्वासमत के दौरान नीतीश को सबक सिखाने की आरजेडी ने पूरी तैयारी कर ली थी। आरजेडी विधायकों को तेजस्वी यादव ने अपने आवास पर नजरबंद कर दिया था तो कांग्रेस के विधायक हैदराबाद भेज दिए गए थे। इसके बावजूद आरजेडी के दो विधायक- नीलम देवी और चेतन आनंद ने ऐन मौके पर आरजेडी का साथ छोड़ दिया। लालू यादव ने जेडीयू के कुछ विधायकों को तोड़ने की तैयारी की थी, लेकिन वे भी साथ नहीं आये। अब नीतीश के भाजपा से अनबन की खबरें आने लगी हैं तो आरजेडी को फिर उनके साथ आ जाने की आस बढ़ गई है।
वर्ष 2025 के आगाज के साथ बिहार के राजनीतिक परिदश्य में बदलाव की आहट साफ सुनाई पड़ रही है। नए साल में मकर संक्रांति (14 जनवरी) के बाद बिहार में सियासी बदलाव की पुरानी रवायत रही है। बहुत दूर न भी जाएं तो साल 2024 के जनवरी में ही नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया था। एनडीए में शामिल होकर उन्होंने एक बार फिर सीएम पद की शपथ ली थी। इस बार भी उनके भाजपा से नाराज होने की सूचनाएं मिल रही हैं। बिहार में सियासी कसमसाहट जिस तरह दिख रही है, उसमें कई तरह के उलट-फेर की संभावनाएं जताई जा रही हैं। नीतीश कुमार की भाजपा से कथित नाराजगी मीडिया की चटपटी खबरों का शक्ल लेती रही हैं। इंडिया ब्लॉक अब भी इस उम्मीद में है कि नीतीश कुमार अपने ही बनाये गठबंधन में वापसी करेंगे। इधर एनडीए की ओर से दावा किया जा रहा है कि आरजेडी के दर्जन भर से अधिक नेता एनडीए में शामिल पार्टियों के संपर्क में हैं। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का दावा है कि आरजेडी के दर्जन भर नेता उनके संपर्क में हैं। नीतीश कुमार के भाजपा से नाराज होने का अनुमान इसलिए लगाया जा रहा है कि वे मीडिया से मुखातिब नहीं हो रहे। जब-जब वे चुप होते हैं, बिहार में कोई सियासी खेल हो जाता है। अनुमान का दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार दिल्ली गए तो उन्होंने दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिजनों से तो मुलाकात की, लेकिन भाजपा नेताओं से मिलना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा। ऐसा तब हुआ, जब नीतीश कुमार के सहयोग से ही केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार चल रही है। उन्होंने हफ्ते-दस दिन पहले अमित शाह द्वारा बुलाई बैठक में शिरकत करने से भी परहेज किया, जबकि एनडीए सरकार में नीतीश कुमार की तरह ही भूमिका निभाने वाले आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू शामिल हुए। नाराजगी के अनुमान का तीसरा कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश इकाई द्वारा जेडीयू को सीटें देने से इनकार है। जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने दिल्ली में चुनाव लड़ने की बात साफतौर पर कही थी।
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने साफतौर पर कह दिया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राजद के दरवाजे पूरी तरह बंद हैं। उनकी महागठबंधन में एंट्री नहीं होने वाली। तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री के साथ सरकार चलाना अब अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री के सिर्फ चेहरे पर सरकार चल रही है। रिटायर्ड अधिकारी सरकार चला रहे हैं। तेजस्वी यादव के इस बयान के बड़े सियासी मायने हैं, क्योंकि हाल के दिनों में यह काफी चर्चा होती रही है कि तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच साथ आने की सहमति अंदर ही अंदर बन गई है। इस पर सियासत तब और तेज हो गई आरजेडी के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि कि समाजवादी सोच के लोग कभी भी एक हो सकते हैं। इसके बाद विधायक भाई वीरेंद्र ने भी ऐसा ही बयान दिया और उन्होंने यह भी कहा कि अगर नीतीश कुमार महागठबंधन में आते हैं तो उनका स्वागत किया जाएगा।
आरजेडी नेता शक्ति सिंह यादव और भाई वीरेंद्र के बयानों के बाद बिहार की सियासत में हलचल मच गई। तमाम बयान सामने आने लगे, लेकिन दूसरी और नीतीश कुमार की खामोशी बरकरार रही। वहीं, अब तेजस्वी यादव के यह कह देने पर कि नीतीश कुमार की महागठबंधन में एंट्री नहीं होगी और राजद के साथ कोई तालमेल नहीं होगा, उनके लिए दरवाजे बंद हैं, इस पर बीजेपी के मंत्री केदार गुप्ता ने तेजस्वी यादव पर निशाना साधा है। केदार गुप्ता ने कहा, वह कुछ दिन सरकार में थे और आज बाहर चले गए हैं तो टायर्ड और अनटायर्ड और रिटायर्ड बोल रहे हैं। उनके जो मन में आए और नीतीश कुमार को जो कहना है कहें, लेकिन नीतीश कुमार ने बिहार की दशा-दिशा को बदलने का काम किया है। राजद के दरवाजे बंद होने पर मंत्री ने कहा- उनके साथ कौन रहा है, उनके माता-पिता की सरकार को बिहार की जनता ने देखा है। जितना भी गठबंधन है सब को बिहार की जनता ने नकार दिया है।
वहीं, जेडीयू के प्रवक्ता अभिषेक ने साफतौर पर कह दिया है कि राजद को दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है, वह दरवाजा खोलकर भी रखें तो नीतीश कुमार कहीं नहीं जाने वाले हैं। नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं और नीतीश कुमार बिहारके विकास की नई इबारत लिखने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2025 में फिर एनडीए गठबंधन बड़ी जीत हासिल करेगा। मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह बात उन्हांेने भी नहीं बताई। (हिफी)

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