लेखक की कलम

दायित्वों के प्रति सतर्क योगी

विपरीत परिस्थिति में भी सत्मार्ग से विचलित न हों

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

  •  समाज में हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद दोनों दर्ज कराते रहे हैं अपनी उपस्थिति: योगी
  • विपरीत परिस्थिति में भी सत्मार्ग से विचलित न हों

पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव में विकास के साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मुद्दा भी खूब चला। परिस्थितियों ने इसे प्रासंगिक बना दिया था। इसके दो प्रमुख कारण थे। पहला यह की पांच सौ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। ढाई सौ वर्षों बाद भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम का निर्माण हुआ। ये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़े प्रसंग थे। इनमें भाजपा एक तरफ थी दूसरी तरफ सेक्युलर सियासत की दुहाई देने वाली अन्य सभी पार्टियां थी। इन सभी पार्टियों के लिए काशी और अयोध्या के संबंधित मुद्दे साम्प्रदायिक हुआ करते थे। यह संयोग था कि चुनाव परिणाम रंगोत्सव के कुछ दिन पहले आये थे। योगी आदित्यनाथ ने हिरण्यकश्यप का विशेष रूप से उल्लेख किया। वह अहंकारी था। अपनी ही प्रजा को कष्ट देता था। उसका यह आचरण भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांत के विरुद्ध था। भारतीय संस्कृति में सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई। इसके लिए सत्मार्ग पर चलने की आवश्यकता होती। इससे सहज मानवीय गुणों का विकास होता है। सद्भाव व सौहार्द की प्रेरणा मिलती है। इस मार्ग से विचलित होना अंततः कष्टप्रद होता है। इससे समाज का भी अहित होता है।
भारत के उत्सवों में समाज कल्याण का भाव समाहित होता है। उल्लास के साथ साथ इसमें गंभीर सन्देश रहता है। दीपावली का प्रसंग प्रभु श्री राम से जुड़ा है। लंका विजय कर वह अयोध्या पहुंचे थे। लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित कर आनन्द मनाया था। सन्देश यह है कि आतताई शक्तियों को अंततः पराजित होना पड़ता है। लाभ के साथ शुभ का होना भी आवश्यक है। सत्मार्ग पर चलते हुए ही लाभ अर्जित करना चाहिए। होली पर भक्त प्रह्लाद का प्रसंग भी प्रेरणा दायक है। वह सत्मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए। अंततः आसुरी प्रवत्ति के हिरण्यकश्यप का अंत हुआ। योगी आदित्यनाथ ने इस प्रसंग को आध्यात्मिक व राजनीतिक दृष्टि से अभिव्यक्त किया। वह समाज सेवा व राजनीति में सक्रिय रहने के बाद भी संन्यास मार्ग पर दृढ़ता से अमल करते हैं। अत्यधिक व्यस्तता के बाद भी वह विशेष अवसरों पर गोरक्षपीठ पहुंचने का समय निकालते है। यहां के विशेष अनुष्ठानों में सहभागी होते है। गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में उनके निर्धारित दायित्व होते है। इनका वह श्रद्धाभाव से निर्वाह करते है। श्री महंत के रूप में आध्यात्मिक दायित्व का निर्वाह करते है।
आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा को दूसरी बार सरकार बनाने का जनादेश मिला है। चार दशक बाद किसी पार्टी को यह अवसर मिला है। ऐसे में भाजपा का उत्साहित होना स्वाभाविक है। दस मार्च को चुनाव परिणाम आये थे। उस दिन लखनऊ भाजपा मुख्यालय में होली मनाई गई थी। उसमें भी योगी आदित्यनाथ सम्मलित हुए थे। फिर तिथि के अनुरूप भी कार्यक्रम हुए। इस प्रकार योगी आदित्यनाथ अपने राजनीतिक दायित्व भी निभा रहे हैं।
योगी आदित्यनाथ ने हिरण्यकश्यप के प्रसंग का उल्लेख किया। कहा कि ईश्वरीय व राष्ट्र सत्ता को चुनौती देना तथा सामान्य नागरिकों की भावनाओं का निरादर करना ही हिरण्यकश्यप की प्रवृत्ति है लेकिन सामान्य जनमानस भक्त प्रह्लाद के रूप में अपनी राष्ट्र आराधना के मार्ग पर चलता है। ऐसी परिस्थिति में भगवान नरसिंह उसके सहगामी बनाते हैं। वह प्रकट होते हैं और भक्त प्रह्लाद के विजय रथ को आगे बढ़ाते हैं। उत्तर प्रदेश ने एक बार फिर राष्ट्रवाद और सुशासन की सरकार चुनी है। जनता की विजयश्री का यह सिलसिला लगातार चलता रहेगा। हमेशा कायम रहेगा। स्वाभाविक रूप से हर देशभक्त नागरिक के मन में अन्याय, अत्याचार, शोषण और अराजकता के खिलाफ लड़ने की इच्छा रखने वाले के मन में उमंग और उत्साह है। भाजपा की जीत राष्ट्रवाद पर मुहर है। यह पर्व और त्योहार गोरखपुर के लिए बहुत महत्वपूर्ण बन गया क्योंकि आजादी के बाद पहली बार भाजपा ने यहां की नौ की नौ सीटें जीती हैं। राष्ट्रवाद की मुहर लगी है। लोगों ने गोरखपुर कमीश्नरी की अट्ठाइस में से सत्ताईस सीटें राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाने के लिए दी है। योगी ने कहा होलिका हों या हिरण्यकश्यप किसी न किसी रूप में समाज के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। इसी तरह किसी न किसी रूप में भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह भी उपस्थित रहे हैं। भले ही इनका रूप बदलता रहा है। यह पर्व और त्योहार हमें अच्छे मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं। भक्त प्रह्लाद अपनी बुआ का कहना मानकर भक्ति मार्ग से विचलित नहीं हुए। भक्त प्रह्लाद प्रतिकूल परिस्थितियों व यातना के बाद भी सत्मार्ग से विचलित नहीं हुए। (हिफी)

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