लेखक की कलम

संसद में विपक्ष की एकजुटता

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो गया है। विपक्षी गठबंधन इंडिया ने कई मामलों पर नरेन्द्र मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बनायी थी लेकिन संसद मंे विपक्ष की एकजुटता संभव नहीं दिखती। कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। फिलहाल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य मल्लिकार्जुन खरगे ने सदन की कार्यवाही से पहले ही आपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर चर्चा का नोटिस दिया था। कांग्रेस का मुख्य जोर इस बात पर है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की युद्धविराम में क्या भूमिका रही है। विपक्ष ने बिहार मंे मतदाता सूची की विशेष जांच पर भी सरकार को घेरने की नोटिस दे रखी है। इसमंे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का भी साथ मिल सकता है लेकिन इंडिया एलायंस के साथी अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी किनारा करते हुए नजर आ रहे हैं। गठबंधन की एकता बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखी जाएगी। महाराष्ट्र मंे उद्धव ठाकरे कांग्रेस का साथ जरूर दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मानसून सत्र की शुरुआत से पहले आपरेशन सिंदूर मंे सेना के शौर्य का बखान करते हुए कहा कि हमारी सेना ने 22 मिनट मंे ही आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया। उन्हांेने याद दिलाया कि आपरेशन सिंदूर पूरी तरह स्वदेशी रक्षा तकनीक से किया गया। मोदी ने कहा कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और देश मंे नक्सलवाद का प्रभाव तेजी से घटा है।
संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही विपक्षी इंडिया अलायंस ने सरकार को घेरने की रणनीति पर चर्चा की, लेकिन रणनीति कम और रस्साकशी ज्यादा दिखी। हर दल की अलग लाइन, हर नेता की अलग सोच। उद्धव ठाकरे ने तो साफ साफ गठबंधन की चुनावी नाकामी पर सवाल उठा दिए। कह दिया ‘एक बार फिर वही गलती हुई तो साथ आने का कोई फायदा नहीं’। ममता, अखिलेश और तेजस्वी कांग्रेस को घेरते रहे हैं। वजह साफ है बीजेपी भले प्रतिद्वंद्वी हो, असली ‘खतरा’ कांग्रेस बन रही है। उधर, राहुल गांधी भी पीछे नहीं रहे। केरल की धरती से उन्होंने कह दिया, वामदल आरएसएस जैसे हैं। वही वाम दल जो इंडिया अलायंस में पार्टनर है। यही वजह है कि इंडिया अलायंस को साथ रखना अब ‘तराजू में मेंढक तौलने’ जैसा बन गया है। इंडिया अलायंस में शामिल हर पार्टी जानती है कि बीजेपी एक कॉमन दुश्मन है, लेकिन वे कांग्रेस को भी अपने-अपने राज्यों में सबसे बड़ा खतरा मानते हैं। ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस को जगह नहीं देना चाहतीं। अखिलेश यादव को यूपी में कांग्रेस के वोट शेयर का असर अखरता है। तेजस्वी यादव को लगता है कि अगर कांग्रेस ने बिहार में ज्यादा दखल दिया, तो आरजेडी की पकड़ ढीली पड़ेगी। उधर, कांग्रेस की स्थिति भी सामूहिक नेतृत्व वाली नहीं दिखती। वह एक ओर गठबंधन को साधने की कोशिश कर रही है, लेकिन जैसे ही एक राज्य में किसी दल के साथ डील करती है, दूसरे राज्य में नया झगड़ा खड़ा हो जाता है। इसीलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस जहां समेटने जाती है, वहां से नया रायता फैल जाता है। इस पूरे भ्रम और असमंजस का सीधा लाभ बीजेपी को मिलता है। वह विपक्ष में मार-काट को भुनाने में जुटी है। बीजेपी को पता है कि इंडिया अलायंस का हर नेता कांग्रेस से डरता है क्योंकि कांग्रेस अगर राष्ट्रीय स्तर पर फिर से मजबूत हो गई, तो क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व खत्म हो
जाएगा। कांग्रेस की दुविधा यह भी
है कि वह लीडरशिप को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहती। कोई नया नेता नहीं देना चाहती, जो इंडिया अलायंस को परेशान करता है। इस गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति विचित्र है। वह
हर राज्य में अलग-अलग साथी दलों
से तालमेल बिठाने की कोशिश कर
रही है, लेकिन हर सहयोगी उसे
अपनी राजनीतिक जमीन के लिए खतरा मानता है।
उद्धव ठाकरे ने इंडिया अलायंस की रणनीति पर सीधा सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा, जब लोकसभा चुनाव हुए, तब हमारे पास साझा चुनाव चिह्न नहीं था, पर कैंडिडेट तय किए गए। विधानसभा चुनाव में चिन्ह तय था, पर सीटों और उम्मीदवारों पर कोई स्पष्टता नहीं थी। यह गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए, वरना साथ आने का मतलब ही नहीं। इस बयान के बाद यह साफ हो गया कि अंदरखाने जो नाराजगी पल रही थी, वह अब मंच पर आ चुकी है। बंगाल में ममता बनर्जी को डर है कि अगर कांग्रेस को छूट दी गई तो मुस्लिम वोटों में बंटवारा होगा और बीजेपी को लाभ मिलेगा।
यूपी में अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन तो चाहते हैं, लेकिन सीमित सीटों पर। कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव से समाजवादी पार्टी को खतरा महसूस होता है। क्योंकि दोनों का वोट बैंक लगभग एक है। बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी ने शुरू से ही कांग्रेस को जूनियर पार्टनर की भूमिका में रखा है, लेकिन अब कांग्रेस यहां भी दखल बढ़ाना चाह रही है। यह तेजस्वी को परेशान करता है।
कांग्रेस खुद भी इस स्थिति से संतुलन नहीं बना पा रही। अगर वह किसी राज्य में गठबंधन के लिए झुकती है, तो दूसरे राज्य में उसी का खामियाजा भुगतना पड़ता है। ममता बनर्जी जैसी नेता कई बार यह इशारा कर चुकी हैं कि उन्हें कांग्रेस पर भरोसा नहीं है। बिहार में चुनावी घमासान शुरू होने से पहले ही दिल्ली की सियासत में हलचल तेज हो गई है। इस बार यह हलचल चुनावी राज्य बिहार से नहीं, बल्कि मुंबई से आई है। सूत्रों के मुताबिक, शिवसेना यूबीटी चीफ उद्धव ठाकरे ने इंडिया अलायंस की बैठक बुलाने की मांग की है। उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वे बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन इससे पहले इंडिया गठबंधन की एक बैठक जरूर होनी चाहिए, ताकि आगे की रणनीति बनाई जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक इंडिया गठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है, जबकि यह सबसे जरूरी समय है जब विपक्ष को एक मंच पर आकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
यह बात कुछ हद तक सही भी है। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद, जब विपक्षी दलों को उम्मीद से अधिक सीटें मिलीं और एनडीए को बहुमत से कम, तब इंडिया अलायंस के भीतर लीडरशिप को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही। और अब, जब बिहार जैसे बड़े राज्य में चुनाव होने जा रहे हैं, जहां कांग्रेस, राजद और वाम दल गठबंधन का हिस्सा हैं, ऐसे में उद्धव ठाकरे का मीटिंग बुलाने की मांग करना कई सवाल खड़े करता है। उद्धव ठाकरे की इस पहल को कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका को दोबारा स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हाल के महीनों में विशेषकर लोकसभा चुनाव के बाद, इंडिया अलायंस के कई सहयोगी दल कांग्रेस से खुलकर नाराजगी जता चुके हैं। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव जैसे बड़े नेता या तो दूरी बना चुके हैं या फिर खुलकर कांग्रेस को लीडर मानने से इनकार कर चुके हैं। ऐसे में उद्धव ठाकरे की यह मांग कई लोगों को प्रेशर पॉलिटिक्स के रूप में नजर आ रही है। ऐसा लग रहा कि कांग्रेस को फिर से एकजुट करने और अलायंस के चेहरे के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही चुनाव बिहार जैसे राज्य में हो जहां कांग्रेस की पकड़ पहले ही कमजोर हो चुकी है। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए स्थिति जटिल हो गई है। इंडिया अलायंस में फिलहाल कांग्रेस, राजद और वाम दल एकजुट दिख रहे हैं, लेकिन सीट शेयरिंग, चेहरा और प्रचार के तरीके को लेकर असमंजस है। तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव में उतना असर नहीं छोड़ पाए, जैसी उम्मीद की जा रही थी। वहीं कांग्रेस भी बिहार में कोई अलग अस्तित्व नहीं बना पाई है। ऐसे में इंडिया अलायंस की कोई भी बैठक इन चुनौतियों से निपटने की दिशा तय कर सकती है, बशर्ते सभी दल उसमें शामिल हों। (हिफी)

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