लेखक की कलम

एसआईआर का पश्चिम बंगाल में विरोध

मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले ही विरोध शुरू हो गया था लेकिन चुनाव आयोग ने किसी आपत्ति को स्वीकार नहीं किया। मामला देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में अपने हाथ खडे़ कर लिये और कहा यह निर्वाचन आयोग का अधिकार है। इसके बाद देश भर में एस आईआर की घोषणा कर दी गयी। पश्चिम बंगाल में इसको लेकर सबसे ज्यादा बेचैनी है। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद दिल्ली में भाजपा कार्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल की बारी है। इसके बाद पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशियों पर सख्ती शुरू हो गयी। वे पलायन भी करने लगे। एक महिला बीएलओ ने आत्महत्या कर ली। इससे दृवित और खिन्न होकर वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 20 नवम्बर को मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की मौजूदा प्रक्रिया अनियोजित और जबरन तरीके से चलाई जा रही है, जो नागरिकों और अधिकारियों दोनों को जोखिम में डाल रही है। उन्होंने जलपाईगुड़ी में बूथ-स्तरीय अधिकारी के रूप में तैनात एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की मौत का हवाला भी दिया। उसने आत्महत्या कर ली है। आरोप लगाया जा रहा है कि वह एसआईआर से जुड़ी परिस्थितियों के कारण मानसिक रूप से टूट गई थीं। ममता बनर्जी ने कहा, “इस प्रक्रिया की शुरुआत के समय उन्होंने यह भी दावा किया कि यह विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया चिंताजनक और खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि हालात काफी बिगड़ गए हैं और एसआईआर प्रक्रिया को रोक दिया जाना चाहिए। ममता बनर्जी ने कहा कि उन्होंने जारी एसआईआर प्रक्रिया को लेकर बार-बार अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं और अब स्थिति काफी बिगड़ जाने के कारण उन्हें मजबूर होकर मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) को यह पत्र लिखना पड़ा है।
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण की यह प्रक्रिया लोगों पर “बिना किसी बुनियादी तैयारी या पर्याप्त योजना” के थोपी जा रही है। मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा, “यह प्रक्रिया जिस तरह अधिकारियों और नागरिकों पर थोपी जा रही है, वह न केवल अनियोजित और अव्यवस्थित है, बल्कि खतरनाक भी है। बुनियादी तैयारी, पर्याप्त योजना और स्पष्ट संचार के अभाव ने पहले दिन से ही पूरे अभियान को पंगु बना दिया है।” प्रशिक्षण में गंभीर खामियों, अनिवार्य दस्तावेजों को लेकर अस्पष्टता और आजीविका के समय मतदाताओं से बूथ-स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) के मिलने की “लगभग असंभव” स्थिति की ओर इशारा करते हुए बनर्जी ने कहा कि एसआईआर की पूरी कवायद “संरचनात्मक रूप से कमजोर” हो गयी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि एसआईआर में
कुप्रबंधन की “मानवीय कीमत अब असहनीय हो गई है।” उन्होंने जलपाईगुड़ी में बूथ-स्तरीय अधिकारी के रूप में तैनात एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की मौत का हवाला दिया। उन्होंने आत्महत्या कर ली है। बताया जा रहा है कि वह एसआईआर से जुड़ी बेहद दबावपूर्ण परिस्थितियों के कारण मानसिक रूप से टूट गई थीं। उन्होंने कहा, “इस प्रक्रिया की शुरुआत के बाद से कई अन्य लोगों ने भी अपनी जान गंवाई है।” बनर्जी ने कहा, “ऐसे हालात में, मैं तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की कड़ी अपील करती हूं और इसकी अपेक्षा भी रखती हूं।” उन्होंने ज्ञानेश कुमार से कहा कि मैं आपसे रिक्वेस्ट करूंगी कि आप इस प्रक्रिया को रोकने के लिए मजबूती से दखल दें और जबरदस्ती के कदम न उठाएं, सही ट्रेनिंग और सपोर्ट दें और मौजूदा तरीके और टाइमलाइन को अच्छी तरह से फिर से देखें।
एसआईआर विशेष समस्या मुसलमानों को लेकर है। मौजूदा साल 2025 में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी का अनुमान 27फीसद से 33-35फीसद के बीच है, जो कि स्रोतों पर निर्भर करता है। आधिकारिक जनगणना के नवीनतम डेटा के अनुसार, यह संख्या लगभग 27 फीसद है, लेकिन अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, यह बढ़कर 33फीसद या उससे अधिक हो सकती है। आधिकारिक डेटा के अनुसार (2011 जनगणना के अनुसार) मुसलमान लगभग 27.07 फीसद थे। विभिन्न विश्लेषणों और स्रोतों के अनुसार अब मुस्लिम आबादी 30फीसद से 33-35फीसद तक हो सकती है। कुछ स्रोतों का अनुमान है कि यह 2025 तक 35 फीसद हो सकती है। अन्य स्रोतों ने इसे लगभग 30फीसद बताया है। इनको ममता बनर्जी की पार्टी का वोट बैंक बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सवाल किया कि और कितनी जानें जाएंगी? एसआईआर के लिए और कितने लोगों को मरने की जरूरत है? इस प्रक्रिया के लिए हमें और कितनी लाशें देखनी पड़ेंगी? यह अब सच में चिंताजनक हो गया है।
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया का विरोध कर रही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नादिया जिले में एक ब्लॉक लेवल अधिकारी (बीएलओ) रिंकु तरफदार की खुदकुशी पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए एसआईआर पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने कहा, एक और महिला बीएलओ पैरा-टीचर की मौत की खबर सुनकर बहुत सदमा लगा। उसने कृष्णानगर में खुदकुशी कर ली। खुदकुशी करने वाली महिला श्रीमती रिंकू तरफदार ने अपने घर पर खुदकुशी करने से पहले अपने सुसाइड नोट में ईसीआई को दोषी ठहराया है। मुख्यमंत्री टीएमसी की प्रमुख भी हैं। मुख्यमंत्री ने सवाल किया, ष्और कितनी जानें जाएंगी? एसआईआर के लिए और कितने लोगों को मरने की जरूरत है? इस प्रक्रिया के लिए हमें और कितनी लाशें देखनी पड़ेंगी? यह अब सच में चिंताजनक हो गया है। सत्ताधारी टीएमसी ने हैरानी जताई और कहा कि श्अमानवीय प्रशासनिक दबाव, डेडलाइन और छोटी-छोटी गलतियों के लिए सजा के लगातार डर में एक और जिंदगी बरबाद हो गई। टीएमसी ने कहा कि नादिया के सस्थिताला की बीएलओ रिंकू तरफदार मानसिक रूप से टूट चुकी थीं और असहनीय स्थिति में थीं। पार्टी के बयान में कहा गया, चुनाव आयोग की मुश्किल डिजिटल प्रक्रिया, टाइमलाइन, सजा का डर और रातभर निगरानी हमारे कर्मचारियों पर थोपा गया एक तरह का मानसिक टॉर्चर है और यह पूरी तरह से मंजूर नहीं है। टीएमसी ने एसआईआर प्रक्रिया के मद्देनजर मौजूदा हालात के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भी जिम्मेदार ठहराया।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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