राजनीति

भजनलाल को घेरेंगे अपने और पराए

 

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भले ही आलाकमान के निर्देश पर भजनलाल के नाम का प्रस्ताव विधायक दल की बैठक में पेश किया था लेकिन उनके चेहरे पर अस्वीकारोक्ति की लकीरे साफ-साफ पढ़ी जा सकती थीं। इसी तरह अन्य नेता भी भजनलाल को सहज ही स्वीकार नहीं करेंगे। उधर, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस मंे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे सचिन पायलट के बीच टकराव जितना बढ़ेगा, भजन लाल को उतनी ही राहत मिलेगी लेकिन 69 विधायकों वाले विपक्ष के साथ चैन की नींद सोने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है।

राजस्थान मंे हरे-भरे नखलिस्तान हैं तो आग की तरह तपती हुई रेती भी है। इस बार की राजनीति मंे भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीनकर सरकार बनायी और दिग्गज नेताओं को परे रखते हुए भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है। भजनलाल को दो उपमुख्यमंत्री भी मिले हैं। इनमंे एक नाम तो खासा चर्चित है वे हैं दीया कुमारी, जिनको पूर्व मुख्मयंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के कद को बराबर करने के लिए लाया गया है। दूसरे डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा हैं जो खासे सक्रिय रहे हैं। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को मुख्य विपक्षी कांग्रेस के साथ भाजपा के कुछ नेताओं से भी सावधान रहना होगा। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भले ही आलाकमान के निर्देश पर भजनलाल के नाम का प्रस्ताव विधायक दल की बैठक में पेश किया था लेकिन उनके चेहरे पर अस्वीकारोक्ति की लकीरे साफ-साफ पढ़ी जा सकती थीं। इसी तरह अन्य नेता भी भजनलाल को सहज ही स्वीकार नहीं करेंगे। उधर, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस मंे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे सचिन पायलट के बीच टकराव जितना बढ़ेगा, भजन लाल को उतनी ही राहत मिलेगी लेकिन 69 विधायकों वाले विपक्ष के साथ चैन की नींद सोने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है। खासतौर पर तब, जब भजनलाल शर्मा को मंत्री तक का अनुभव नहीं है।

भजनलाल शर्मा ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। राजधानी जयपुर के अल्बर्ट हॉल में 15 दिसम्बर को शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बड़े नेता मौजूद रहे। शपथ ग्रहण समारोह में कई केंद्रीय मंत्रियों के साथ-साथ राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल थे। भजनलाल के अलावा दीया कुमारी सिंह और प्रेमचंद बैरवा ने भी शपथ ली। दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया है। भजनलाल शर्मा पहली बार विधायक बने हैं। ऐसे में उनपर भरोसा जताकर भाजपा ने भविष्य की राजनीति का संकेत दिया है। विधायक दल की बैठक में भजनलाल शर्मा को विधायक दल का नेता चुना गया था। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने की भजनलाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव रखा था। भजनलाल शर्मा सांगानेर से विधायक हैं। वसुंधरा उस समय भी सहज नहीं दिख रही थीं।

वासुदेव देवनानी को विधानसभा का स्पीकर बनाया गया है। डिप्टी सीएम दीया कुमारी जयपुर की विद्याधर नगर सीट से जीती हैं जबकि प्रेमचंद बैरवा जयपुर जिले की दूदू सीट से विधायक बने हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजस्थान का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया जाएगा। यह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही है जो उनके जैसे साधारण कार्यकर्ता को भी मौका देती है।

अब इतिहास के पन्ने पलटो। बात मार्च, 2018 की है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राजस्थान के झुंझुनूं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक कार्यक्रम में मौजूद थे और साथ थीं तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे।
सभा समाप्ति के बाद एक फोटो वायरल हुआ, इस वायरल फोटो में प्रधानमंत्री मोदी सावधान की मुद्रा में थे और वसुंधरा उनके सामने गर्वीली अदा में खड़ी थीं। उनकी एक उंगली उठी हुई थी। वह अपने आप को अब भी महारानी मानती हैं।
भारतीय जनता पार्टी की नेता की यह मुद्रा उनकी भीतरी ताकत, न झुकने की अदा और आत्मविश्वास का प्रतिबिंब था। अब परिदृश्य बदल चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की सभाओं में वह मंच पर तो होती थी, लेकिन एक शालीन मुद्रा में। लेकिन अपराजेय होने का भाव उनकी दैहिक भाषा से टपकता है। पांच बार विधायक और पांच बार लोकसभा सांसद रहीं ग्वालियर राजघराने की बेटी और धौलपुर राजघराने की बहू वसुंधरा राजे से पांच जातियों का सीधे-सीधे जुड़ाव भी है। सभी जातियां खासा महत्व रखती है। मराठा राजपूत हैं और जाट राजघराने में उनकी शादी हुई। उनके पति का जन्म सिख राजघराने में हुआ और वे जाट राजघराने में नाना की गोद में खेले। इसी के चलते उन्हें राजस्थान की राजनीति में अपना कद बड़ा कर सकने का मौका मिला। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश राज्य और कार्मिक मंत्रालय जैसे विभागों की मंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे को राजस्थान में उतारा गया, उन्होंने भाजपा की कलह भरी राजनीति के बावजूद 2003 के चुनाव में 200 में से 120 सीटें लाकर इतिहास रच दिया। इससे पहले भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान की राजनीति में बहुमत नहीं मिला था।

उल्लेखनीय है कि भैरोसिंह शेखावत 1977 में 152 सीटें लाने वाली जनता पार्टी के समय बहुत जोड़तोड़ से मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उसके बाद उनके नेतृत्व में भाजपा कभी भी 95 का आंकड़ा पार नहीं कर सकी।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने भी राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार की समीक्षा के लिए गत दिनों बैठक की और यह फैसला किया कि कमियों को दूर करके तथा एकजुट होकर अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाना है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मुख्यालय में इसके लिए समीक्षा बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। राजस्थान के चुनाव के नतीजों को लेकर समीक्षा बैठक में सरकार को घेरने की रणनीति भी बनी। इसलिए भजनलाल को मजबूत विपक्ष का भी सामना करना है।

बैठक के बाद रंधावा ने बताया था कि ‘‘काफी लंबी चर्चा हुई है। हमारे कई उम्मीदवार बहुत कम वोटों से हारे। हमने नेतृत्व को बोल दिया है कि हम लोकसभा चुनाव की तैयारियां
करेंगे। जहां-जहां कमियां थीं, उनको हम दूर करके चुनाव लड़ेंगे। एकजुट होकर लड़ेंगे। जाहिर है कि भजनलाल शर्मा को कांग्रेस के नेता उन चुनावी वादों को शीघ्र पूरा करने के लिए दबाव बनाएंगे इसके साथ ही भजन लाल शर्मा को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में परीक्षा देनी होगी। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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