सम-सामयिक

चुनाव आयोेग को आक्सीजन

 

प्रजातंत्र मंे चुनाव रक्त की तरह होते हैं जिसका शुद्ध रहना बहुत जरूरी है। रक्त के अशुद्ध होते ही जैसे शरीर कमजोर होने लगता है, उसी तरह चुनावों की शुचिता खत्म होते ही प्रजातंत्र डगमगाने लगता है। चुनाव को निष्पक्ष और निडर सम्पन्न कराने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की होती है। कहने की जरूरत नहीं कि निर्वाचन आयोग पर सत्तापक्ष के समर्थन में काम करने का आरोप लगाया जाने लगा है। देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात् सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को मजबूत बनाने का आह्वान किया था। निर्वाचन आयुक्तों की तैनाती को लेकर भी विवाद चल रहा है। अब तक सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी रहती थी लेकिन अब इसमंे संशोधन किया जा रहा है। कहने को निर्वाचन आयोग स्वायत्तशासी संस्था है और उसके पास काफी अधिकार भी हैं जिनका प्रयोग कर पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन ने राजनीतिक दलों के अंदर चुनाव आयोग के प्रति भय पैदा किया था। इसके बाद निर्वाचन अयोग की आवाज को अनसुना किया गया है।

आयोग की कई सिफारिशें केन्द्र सरकार ने ठण्डे बस्ते मंे डाली हुई हैं। चुनाव आयुक्तों के वेतनमान को लेकर भी विवाद चल रहा था। अब उन्हंें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बराबर वेतन देने के लिए कानून बनाया जा रहा है। निर्वाचन आयोग ने हाल ही में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कई मौकों पर सख्ती बरती थी। लगभग 2 हजार करोड़ की ड्रग, नकदी और शराब जब्त की गयी थी। कई नेताओं के चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की तैनाती का नियम बनाया था। कोर्ट ने कहा था चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होनी चाहिए। लगभग एक वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार, वित्त मंत्रालय और कानून मंत्रालय को नोटिस भेजकर चुनाव आयोग को अधिक स्वायत्तता देने के बारे मंे अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। अब चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट में जजों के समकक्ष कर दिया गया है।

वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों का दर्जा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष ही है। सरकार ने इसी साल अगस्त में राज्यसभा में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें) विधेयक 2023 पेश किया था। विधेयक में सीईसी और अन्य निर्वाचन आयुक्तों का दर्जा कैबिनेट सचिव के समकक्ष लाने का प्रस्ताव किया गया। सूत्रों के अनुसार प्रस्तावित संशोधन सीईसी एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों को जो वेतन दिया जाएगा वह न्यायालय के न्यायाधीश के समान होगा। संशोधन के अनुसार केंद्रीय कानून मंत्री के नेतृत्व में
एक ‘सर्च कमेटी’ बनेगी। यह समिति पांच लोगों के नामों का एक पैनल बनायेगी। विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि कैबिनेट सचिव ‘सर्च कमेटी’ का नेतृत्व करेंगे। यह विधेयक राज्यसभा में 12 दिसम्बर को विचार एवं पारित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

चार साल बाद 18 नवंबर, 2022 से संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की थी जो कि 24 नवंबर को खत्म हुई। इन याचिकाओं में माँग की गई थी कि चुनाव आयुक्त (ईसी) और मुख्य चुनाव आयुक्त(सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए। सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने सरकार से कई गंभीर सवाल किए।
अदालत ने यहां तक कह दिया कि हर सरकार अपनी हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है। अदालत ने यह भी कह दिया कि देश को टीएन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत है। उस समय वो योजना आयोग के सदस्य थे जो कि अब नीति आयोग कहा जाता है। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया था। शेषन 1990 से 1996 तक पूरे छह साल के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त थे। उन्हें चुनाव आयोग में कई ऐतिहासिक सुधारों के लिए जाना जाता है। दिसंबर 2019 में उनका निधन हो गया था। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि हमें एक ऐसे सीईसी की आवश्यकता है जो प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अरुण गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से उनकी नियुक्ति की फाइल मांगी थी। पंजाब काडर के 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण गोयल ने 21 नवंबर को चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला था। इससे पहले उन्हें 19 नवंबर को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने 18 नवंबर को वीआरएस यानी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। गोयल उसी साल 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले थे लेकिन अब वो मौजूदा सीईसी राजीव कुमार के फरवरी, 2025 में रिटायर होने के बाद अगले सीईसी होंगे। अटॉर्नी जनरल वेंकटरमाणी ने अरुण गोयल की नियुक्ति संबंधित फाइल सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश की थी। फाइल देखने के बाद अदालत ने कहा कि वो अरुण गोयल की योग्यता पर नहीं बल्कि उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठा रही है। अदालत ने आश्चर्य जताते हुए कहा था कि आईएएस गोयल ने सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, एक ही दिन में कानून मंत्रालय ने उनकी फाइल को मंजूरी दे दी, चार नामों की सूची प्रधानमंत्री के समक्ष पेश की गयी तथा गोयल के नाम को 24 घंटे के भीतर राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गयी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वेंकटरमानी ने कहा कि चयन की एक प्रक्रिया है और ऐसा नहीं कि सरकार हर अधिकारी का पिछला रिकॉर्ड देखे व सुनिश्चित करें कि वह छह साल का कार्यकाल पूरा करें।

ध्यान रहे देश के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन पैनल में देश के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल करने वाला विवादास्पद विधेयक? राज्यसभा में पेश किया गया था। इस बीच विपक्ष और कुछ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की आपत्तियों के बाद केंद्र ने इसमें कुछ संशोधन किए। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023, इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लाया गया है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता वाले एक पैनल के गठन का आदेश दिया था। इसलिए चुनाव आयोग को आक्सीजन की जरूरत थी जो मिल गयी। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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