राजनीतिलेखक की कलम

बिहार में विपक्ष की धुरी पप्पू यादव

 

बिहार में विधानसभा चुनाव को अभी डेढ़ साल बाकी है लेकिन रणनीतियां अभी से बन रही हैं। विपक्षी महागठबंधन मंे कोई बड़ा फेरबदल होता नहीं दिख रहा है क्योंकि नीतीश कुमार का एनडीए में रहना अब मजबूरी हो गयी है। उधर, विपक्षी दलों मंे लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की पार्टी को केवल चार सांसद ही मिल पाये हैं। कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं और पूर्णिया मंे पप्पू यादव निर्दलीय जीते हैं जो कांग्रेस के साथ हैं। आरा से सीपीआई (एमएल) के सुदामा प्रसाद को भी कांग्रेस के साथ ही जोड़ा जा रहा है। इस प्रकार कांग्रेस के पास 5 सांसद हैं। तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव के खिलाफ अपना प्रत्याशी न उतारा होता तो इंडिया गठबंधन को दो-तीन सांसद और मिल सकते थे। इस गणित को ध्यान से देखें तो नवम्बर 2025 तक बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव विपक्ष की धुरी बनेंगे। पिछली बार 2020 मंे राज्य की 243 सदस्यीय विधानसभा में महागठबंधन को 110 विधायक मिल पाये थे जबकि एनडीए को 125 सीटें मिली थीं। तेजस्वी की पार्टी राजद को 75 विधायक मिले थे जो लोकसभा चुनाव के नतीजे देखते हुए कम हो सकते हैं। कांग्रेस पिछली बार 70 सीटें पर चुनाव लड़ी थी और 19 विधायक बने थे। इस बार लोकसभा चुनाव में उसकी ताकत बढ़ी है। इसलिए तेजस्वी यादव को राकेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के महत्व को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। संबंध उन्होंने ही बिगाड़े थे, इसलिए उनको ही आगे बढ़ना होगा। पप्पू यादव तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद यादव का बहुत सम्मान करते थे। उन रिश्तों को ताजा करना होगा।

राकेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को बिहार क्या अब देश में भी ज्यादातर लोग जानने लगे हैं। कभी बाहुबली की पहचान रखने वाले पप्पू यादव ने लालू यादव से राजनीति का ककहरा सीखा, लेकिन लंबे समय तक दोनों का साथ टिक नहीं पाया। पप्पू यादव अपनी शर्तों पर राजनीति करते रहे, लेकिन कभी लालू यादव के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाए। खुद को लालू यादव का तीसरा बेटा तक कहने वाले पप्पू यादव की उनसे अदावत भी कम नहीं रही है। फिर भी पप्पू यादव क्यों खुद को उनसे दूर नहीं कर पाते? पप्पू यादव की जन्मस्थली मधेपुरा है। वही मधेपुरा जो लालू यादव और शरद यादव की लड़ाई का केंद्रबिंदु बनी थी। पप्पू यादव चैथी बार पूर्णिया से सांसद बने हैं और दो बार मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं। मगर इस बार की जीत से पहले वह फूट-फूट कर रोए। जिसे पिता कहते थे, उस पर सवाल दागे। दरअसल, पप्पू यादव ने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। इससे पहले उन्हें आश्वासन मिला था कि पूर्णिया से गठबंधन के वही प्रत्याशी बनेंगे। लालू यादव को साधने के लिए वह उनसे मिलने भी गए लेकिन लालू यादव ने खेल कर दिया। लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया सीट अपने पास रख ली। पार्टी ने वहां से रूपौली की जदयू विधायक बीमा भारती को अपना टिकट दे दिया। इसके बाद कांग्रेस ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए और पप्पू यादव अकेले पड़ गए। हालांकि, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और निर्दलीय के तौर पर नामांकन कर दिया। इस अवसर पर वह फूट-फूट कर रोए और बोले कि उनके साथ राजनीति हुई है। पप्पू यादव ने कहा, ‘‘मुझे कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है, मैं एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा हूं। कई लोगों ने मेरी राजनीतिक हत्या करने की साजिश रची। पूर्णिया की जनता ने हमेशा पप्पू यादव को जाति-धर्म से ऊपर रखा है। मैं इंडिया गठबंधन को मजबूत करूंगा और मेरा संकल्प राहुल गांधी को मजबूत बनाना है।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पूर्णिया में राजद की प्रत्याशी बीमा भारती के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कहा कि यह चुनाव दो विचारधारा के बीच की लड़ाई है। उन्होंने कटिहार जिले के कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र में कहा, आप इंडिया गठबंधन को चुनिए। अगर आप इंडिया गठबंधन की बीमा भारती को नहीं चुनते हैं, तो साफ बात है कि आप एनडीए को चुनो। उन्होंने लोगों को सचेत करते हुए कहा कि किसी के धोखे में नहीं रहना है। यह किसी एक व्यक्ति का चुनाव नहीं है या तो इंडिया या तो एनडीए। इसके बाद पप्पू यादव ने राजद सुप्रीमो लालू यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी वजह से ही उन्हें कांग्रेस का चुनाव चिन्ह नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि मुझे तो ये भी नहीं पता कि आखिर तेजस्वी यादव मुझसे इतनी नफरत क्यों करते हैं। मुझे चुनाव में हराने के लिए वह पूर्णिया हेलीकॉप्टर से आए और प्रचार किया। मैं लालू यादव का केवल ब्लेसिंग लेना चाहता हूं। पप्पू यादव ने कहा कि अगर आप पहले के लोकसभा चुनाव को देखेंगे तो हम कांग्रेस के खिलाफ नहीं लड़ना चाहते थे, इसलिए हम मधेपुरा चले गए। बीते 20 साल से राजद का रिकॉर्ड देखेंगे तो इस क्षेत्र से वह कभी चुनाव नहीं जीते हैं। ऐसे में एकाएक मेरे खिलाफ यहां से अपना उम्मीदवार उतार देना कहीं से भी जायज नहीं था। मैं हमेशा लालू यादव के साथ रहा हूं। मैं उनके बड़े बेटे की तरह हूं। मैं उनके बुरे वक्त में हमेशा साथ खड़ा रहा हूं। लालू यादव मुझे मधेपुरा भेजना चाहते थे पर मैंने कहा कि पूर्णिया मेरी मां की तरह है। मैं इसे छोड़कर नहीं जाऊंगा। इतना सब होने के बाद भी पप्पू यादव चुनाव जीत गए।

पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा हैं। 2020 में इस क्षेत्र के कस्बा विधानसभा में कांग्रेस के एमडी अफाक आलम जीते। वहीं अन्य सभी सीटों पर भाजपा-जदयू ने कब्जा कर लिया। बनमबखी सीट पर भाजपा के कृष्ण कुमार ऋषि, रुपौली से जदयू की बीमा भारती, धमदाहा से जदयू की लेशी सिंह, पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विजय कुमार खेमका और कोरहा से भाजपा की कविता देवी ने जीत दर्ज की। इनमें कोरहा और बनमनखी एससी रिजर्व सीट हैं। पूर्णिया लोकसभा सीट पर 1977 का चुनाव छोड़ दें तो 1984 तक कांग्रेस जीतती रही। 1977 में जनता पार्टी ने चुनाव जीत और 1989 में जनता दल ने। इसके बाद 1991 में पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव यहां से जीता और 1996 में समाजवादी पार्टी के दम पर। 1998 में भाजपा पहली बार यहां जीती। मगर 1999 में पप्पू यादव फिर निर्दलीय चुनाव जीत गए। इसके बाद 2004 और 2009 में भाजपा जीती। फिर 2014 और 2019 में जदयू जीता। 2024 में फिर पप्पू यादव निर्दलीय जीत गए। पप्पू यादव को 5,67,556 वोट मिले तो जदयू के संतोष कुमार कुशवाह को 5,43,709 वोट मिले। वहीं सांसद का चुनाव लड़ने के लिए जदयू की विधायक बीमा भारती ने राजद का दामन थामकर महज 27,120 वोट पाए। पूर्णिया लोकसभा सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं। पूर्णिया सीट के मतदाताओं में करीब 60 फीसदी हिंदू और करीब 40 फीसदी मुसलमान हैं। पूर्णिया में ओबीसी और दलित मतदाताओं की संख्या पांच लाख से ऊपर बताई जाती हैं। इसके बावजूद पप्पू यादव जीते तो स्पष्ट है कि वहां उनका दबदबा है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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