लेखक की कलम

पप्पू यादव की प्रासंगिकता

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बिहार मंे कांग्रेस को अपना जनाधार मजबूत करना है तो उसे पप्पू यादव की प्रासंगिकता को समझना चाहिए। गत 9 जुलाई को बिहार बंद के दौरान पूर्णिया के निर्दलीय सांसद और बिहार के कभी दबंग नेता रहे पप्पू यादव को राहुल गांधी के साथ मंच साझा करने से रोका गया। इतना ही नहीं, आरोप तो यह भी लगाया जाता है कि पप्पू यादव को धक्का देकर वहां से हटाया गया। इसके वीडियो फुटेज भी वायरल हो गये लेकिन पप्पू यादव की वफादारी देखिए कि वह अब भी गांधी परिवार के साथ रिश्ते की दुहाई दे रहे हैं। कांग्रेस इस राजनीति को क्यों नहीं समझ पा रही है कि राजद प्रमुख लालू यादव वहां कांग्रेस को मजबूत होते नहीं देखना चाहते। इसीलिए हर वह व्यक्ति जो कांग्रेस को राजनीतिक लाभ पहुंचा सकता है, लालू यादव की नजर में खटकने लगता है। बाहुबली नेता पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी (जा प) का 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस मंे विलय कर लिया था। यह उनकी वफादारी का सबूत भी था लेकिन बदले में कांगे्रस ने अपनी तरफ से वफादारी नहीं दिखाई थी। पप्पू यादव पूर्णिया से ही लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे। कांग्रेस अगर पप्पू यादव की वफा का बदला देना चाहती तो पूर्णिया की सीट लेकर पप्पू यादव को दे सकती थी लेकिन लालू यादव ने वह सीट अपने पास रखी और कांग्रेस ने दबाव भी नहीं बनाया। पप्पू यादव की लोकप्रियता देखिए कि वह निर्दलीय रूप से पूर्णिया से लड़े और लालू यादव की बेटी को चुनाव मंे हराया। इसलिए राजद की नजर में पप्पू यादव आज भी खटक रहे हैं जबकि कांग्रेस अपने ‘वफादार’ का समर्थन करने मंे भी सकुचा रही है। राहुल को पप्पू यादव की प्रासंगिकता को समझना चाहिए।
पटना में 9 जुलाई को महागठबंधन के बिहार बंद के दौरान पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के साथ हुआ वाकया बिहार की सियासत में चर्चा का केंद्र बन गया है। बिहार बंद को लेकर आयोजित इस प्रदर्शन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव एक ओपन ट्रक पर सवार थे। पप्पू यादव और कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने जब इस मंच पर चढ़ने की कोशिश की तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें न केवल रोका, बल्कि धक्का देकर नीचे उतार दिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने पप्पू यादव की सार्वजनिक फजीहत को और बढ़ा दिया। अब वह नाराज भी हैं और यह भी बोल रहे हैं कि वह अपमान का घूट पीने के लिए ही राजनीति में आए हैं।
पप्पू यादव ने हमेशा राहुल गांधी को अपना नेता माना है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी (जाप) का कांग्रेस में विलय किया था। यह उम्मीद लेकर कि पूर्णिया सीट पर उन्हें कांग्रेस का टिकट मिलेगा लेकिन राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दबाव में यह सीट राजद के खाते में चली गई। बीमा भारती को टिकट दे दिया गया। नतीजतन, पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। खास बात यह है कि बीमा भारती के प्रचार में तेजस्वी यादव ने एक रैली में यहां तक बोल दिया था कि एनडीए बेशक जीत जाए लेकिन पप्पू यादव यहां से नहीं जीतना चाहिए। इस जीत ने पप्पू यादव की नजर में उनका कद और मजबूत किया। पप्पू यादव ने दिल्ली चुनाव से लेकर झारखंड विधानसभा चुनवा में कांग्रेस और महागठबंधन के लिए प्रचार किया। अभी कुछ दिन पहले पंजाब के लुधियाना सीट पर भी पप्पू यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी के लिए जमकर कैंपेन किया लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस में उनकी स्थिति असहज बनी हुई है। पटना चक्का जाम ने तो पप्पू यादव की जग हंसाई कर दी।
पटना की घटना कोई पहला मौका नहीं है जब पप्पू यादव को राहुल गांधी के करीब जाने से रोका गया। कई बार पहले भी उन्हें राहुल से मिलने का मौका नहीं मिला। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे तेजस्वी यादव और राजद का दबाव है, जो पप्पू यादव की बढ़ती लोकप्रियता और सक्रियता से असहज हैं। पप्पू यादव का तेज-तर्रार अंदाज और बिहार में दलित, पिछड़ा और गरीब वर्गों के बीच उनकी पकड़ राजद के लिए चुनौती बन सकती है। यह तेजस्वी यादव के लिए असहज है। ऐसे में तेजस्वी यादव ने जान बूझकर पप्पू यादव और कन्हैया कुमार का नाम मंच पर बैठने वाले नेताओं की लिस्ट से गायब कर दिया। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर तनाव साफ दिख रहा है। पप्पू यादव ने बार-बार कहा है कि कांग्रेस को ‘बड़े भाई’ की भूमिका निभानी चाहिए और कम से कम 90-100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। उनका यह बयान राजद के लिए असहजता का सबब है, जो खुद को गठबंधन का नेतृत्वकर्ता मानता है। तेजस्वी यादव की सक्रियता और युवा वोटरों के बीच उनकी अपील ने राजद को महागठबंधन का केंद्रीय चेहरा बना दिया है, लेकिन पप्पू यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं की महत्वाकांक्षा गठबंधन की एकता पर सवाल उठा रही है।
पटना में पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को मंच से दूर रखना आरजेडी की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। यह घटना गठबंधन के भीतर नेतृत्व और प्रभाव की जंग को उजागर करती है। पप्पू यादव का यह कहना कि ‘मेरे जिनके साथ रिश्ता है, वह क्या चाहता है, वह सोचना पड़ता है,’ शायद राहुल गांधी या कांग्रेस हाईकमान के प्रति उनकी वफादारी और गठबंधन की मजबूरियों की ओर इशारा करता है या फिर इस घटना के बाद राहुल गांधी या प्रियंका गांधी ने उनको फोनकर इसके लिए खेद जताया हो। ऐसे में पप्पू यादव का अपमान सहकर भी राहुल गांधी के प्रति वफादारी जताना उनकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। कुछ लोग इसे उनके बेटे को सियासत में स्थापित करने की कोशिश से जोड़ते हैं। दूसरी ओर, यह उनकी मजबूरी भी हो सकती है, क्योंकि निर्दलीय सांसद के रूप में उनकी सियासी ताकत सीमित है और कांग्रेस ही उनकी सबसे बड़ी उम्मीद है।
कहा रजा रहा है कि तेजस्वी यादव ने पटना में कांग्रेस के दो नेताओं को दिन में ही तारे दिखा दिए। दोनों नेताओं ने पिछले कुछ सालों से कांग्रेस की मजबूती से दीवार थाम रखी है। ‘बाढ़ और सूखा’ आने के बाद भी ये दोनों नेता राहुल गांधी के नजरों से कभी नहीं गिरे। आरजेडी के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने पटना के चक्का जाम में यही किया। कांग्रेस का पिछले कई सालों से ध्वज लेकर चल रहे पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव और राहुल गांधी के नजदीकी का खिताब हासिल करने वाले जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पटना में गजब की बेइज्जती झेलनी पड़ी। मौका था बिहार बंद के दौरान पटना में चक्का जाम में भाग लेने का। राहुल गांधी के साथ मंच पर कांग्रेस के कई ‘फूके हुए कारतूस’ नजर आए, लेकिन कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसे जुझारू नेताओं को मंच पर जगह नहीं मिली। ऐसे में सोशल मीडिया पर लोग खूब चटकारे लेने लगे। कुछ लोगों ने तो यह कहना शुरू कर दिया कि तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव और कन्हैया कुमार से सालों पुराना बदला ले लिया। तेजस्वी यादव ने इस चक्का जाम को अपने नेतृत्व में बदल दिया। ओपन ट्रक पर राहुल के साथ उनकी मौजूदगी ने उन्हें मुख्य चेहरा बनाया, जबकि अन्य नेताओं को हाशिए पर धकेल दिया गया। राजद के नेतृत्व में यह प्रदर्शन तेजस्वी के बढ़ते कद का प्रतीक बन गया। बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर उनकी सक्रियता और नीतीश कुमार की विश्वसनीयता में कमी ने उन्हें बिहार में एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित किया है। इसे तेजस्वी का ‘वन मेन शो’ करार दिया गया, जिसमें
राजद कार्यकर्ताओं ने इसे उनकी सियासी ताकत का सबूत बताया। कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी इस घटना में साफ झलकी। कन्हैया कुमार, जो अपनी
‘नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा’ के जरिए युवाओं में लोकप्रियता हासिल किए थे और पप्पू यादव पूर्णिया में जीत के बाद कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण चेहरा बन चुके हैं। कांग्रेस को उनका महत्व समझना ही होगा। (हिफी)

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