कुम्हारों की रोजी रोटी पर भी दें ध्यान

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पारम्परिक कलाकारों को प्रोत्साहन की जरूरत है। इन्हीं कलाकारों मंे कुंभकार अर्थात् कुम्हार भी होते हैं। कुम्हारों की जिंदगी को रौशन करने के लिए सरकार की तमाम योजनाओं और वोकल फॉर लोकल जैसे नारों के बाद भी दिवाली पर उनके घरों में उतनी रोशनी नहीं हो पाती जितनी होनी चाहिए। भला हो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जिन्होंने अयोध्या और काशी जैसे धार्मिक स्थलों पर भव्य रूप में मिट्टी के दीपक जलाने की परम्परा शुरू करायी। इससे कुम्हारों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिल रहा है। चाइनीज झालरों के बढ़ते चलन और मिट्टी सहित दूसरे सामानों की बढ़ी कीमतों के चलते मिट्टी के दियों की डिमांड साल दर साल घटती जा रही है। ऐसे में सदियों से पारंपरिक पेशा से जुड़े कुम्हार समाज के सामने रोजी रोटी का संकट गहराने लगा है जिसके चलते वे अपने परंपरागत धंधे को छोड़ मेहनत मजदूरी करने लगे हैं। दीपावली पर मिट्टी का सामान तैयार करना उनके लिए महज एक सीजनल धंधा बनकर रह गया है।
मिट्टी के बर्तनों के कारोबार से जुड़े कुम्हार समाज के लोगों का कहना है कि दीपावली और गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग थोड़ी बढ़ जाती हैं, लेकिन बाद के दिनों में वे मजदूरी कर किसी तरह अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं। पहले शादी-व्याह और अन्य अवसरों पर मिट्टी के प्याले और कुल्हड़ प्रयोग किये जाते थे। मिट्टी के बड़े बर्तनों की भी मांग रहती थी लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। उनका कहना है कि सरकार की ओर से भी किसी तरह की सहायता नहीं मिल रही है। वहीं बाजारों में इलेक्ट्रोनिक्स झालरों की चमक-दमक के बीच मिट्टी के दीपक की रोशनी धीमी पड़ती जा रही हैं। इसके चलते लोग दीपों का उपयोग सिर्फ पूजा के लिए ही करते हैं। यही कारण हैं कि इस पेशा को लोग धीरे-धीरे छोड़ते जा रहे हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी की सरकार ने वोकल फॉर लोकल की नीति को व्यवहार में लागू किया और स्थानीय कलाकारों को विदेशों तक में बाजार उपलब्ध कराया है लेकिन कुम्हारों के सामने रोजी रोटी का संकट है।
मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाने का पुश्तैनी काम करने वालों का कहना हैं कि, बर्तन बनाने के लिए चिकनी मिट्टी मिलने में काफी परेशानी होने लगी हैं। पहले मिट्टी बहुत सस्ती और आसानी से मिल जाती थी लेकिन अब मिट्टी बहुत महंगी हो गई हैं। मिट्टी की एक ट्रैक्टर ट्राली साढ़े तीन हजार से चार हजार रुपए में खरीदनी पड़ रही है। सिर्फ अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं।
इसीलिए योगी आदित्यनाथ ने भगवान राम की नगरी अयोध्या में भव्य स्तर पर दीपावली मनाने की शुरुआत यूपी में अपनी सरकार बनने के बाद से ही की है। अयोध्या में 2017 से दीपावली भव्य स्तर पर मनायी जा रही है। इसके साथ ही काशी में भी गंगा तट पर दीपक जगमगाते हैं। अयोध्या में इस बार 28 से 30 अक्टूबर तक दीपोत्सव मनाया जाएगा। इस मौके पर साकेत से चार किलोमीटर तक शोभायात्रा निकाली जाएगी।
अयोध्या में दीपावली के लिए पर्यटन एवं संस्कृति विभाग ने भी खास तैयारी की है। इस क्रम में अयोध्या में 25 लाख दीप प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। साथ ही 10 लाख दीप विभिन्न मंदिरों में जलाए जाएंगे। कार्यक्रम में अवध विश्वविद्यालय, स्वयंसेवक, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के साथ-साथ विभिन्न कॉलेजों के छात्र-छात्राओं का सहयोग लिया जा रहा है। पिछले साल 22 से 23 लाख दीपक प्रज्वलित किए गए थे जिसमें 54 देश के राजनयिक साक्षी बने थे। इसके अलावा अयोध्या में हेलीकॉप्टर से भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की झांकी निकाली जाएगी। साथ ही रथ से शोभायात्रा निकाली जाएगी।
यह जानकारी 23 अक्टूबर को पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने गोमतीनगर स्थित पर्यटन भवन में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मीडिया से साझा की थी। पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री व अतिथियों की मौजूदगी में इस बार लक्ष्मण किला घाट से नया घाट तक 1100 वेदाचार्यों के साथ सरयू आरती कर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जाएगा। साथ ही अनगिनत दीपों की झिलझिल में सरयू धारा, राम की पैड़ी पर पानी के बीचोबीच भव्य स्टेज पर कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम व लेजर शो पेश किया जाएगा।
दीपोत्सव में छह देशों के कलाकार रामलीलाओं का मंचन करेंगे। इसमें थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया, म्यांमार, मलेशिया व नेपाल के कलाकार होंगे। इसमें आईसीसीआर का सहयोग लिया जाएगा। रामनगरी अयोध्या में मेजबान उत्तर प्रदेश सहित 16 राज्यों के कलाकार भी हिस्सा लेंगे। इसमें कश्मीर, उत्तराखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, बिहार, चंडीगढ़, सिक्किम, छत्तीसगढ़ के कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। हालांकि सबसे बड़ा आकर्षण दीपोत्सव होगा। इस बार की दीपावली में दीपों की कतार के बीच गुप्तार घाट, बड़ी देवकाली, तुलसी उद्यान, हनुमानगढ़ी, रामपथ, रामकथा पार्क, सरयू तट, राम की पैड़ी आदि स्थानों पर देश-विदेश के कलाकार सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देंगे। इस दौरान ड्रोन शो, म्यूजिकल लेजर शो आदि भी होंगे। हम लोग भी अपने अपने घरों और प्रतिष्ठानों पर मिट्टी के दीपक जलाएं। इससे कुम्हारों को रोजगार मिलेगा। दीपावली के जश्न कि बात करें तो शिव की नगरी काशी में भव्य दीपोत्सव मनाया जाता है। बनारस में दिवाली का त्योहार बेहद शानदार तरीके से मनाते हैं। काशी प्राचीन होने के साथ अपनी सुंदरता के लिए मशहूर है। दिवाली के मौके पर पूरे काशी को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है। काशी के घाटों की देव दीपावली को देखने के लिए लाखों की संख्या में पर्यटक देश और विदेश से पहुंचते हैं। महीनो पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। नाव की बुकिंग, होटलों की बुकिंग, घाटों की साफ सफाई पर्यटकों के आवागमन संबंधित विषय को लेकर पर्यटन विभाग और स्थानीय प्रशासन की तरफ से तैयारियां पूरी की जाती है। इसी क्रम में इस बार काशी के घाटों की देव दीपावली को भव्य रूप में आयोजित करने की तैयारी है। काशी के 84 घाट 12 लाख दियों से जगमग होंगे। इसके अलावा देव दीपोत्सव पर ग्रीन क्रैकर शो और लेजर शो का आयोजन किया जाएगा।
जानकारी अनुसार इस बार 15 नवंबर को मनाया जाने वाली देव दीपावली को लेकर काशी के घाटों पर जोर शोर से तैयारियां की जा रही है। इसी क्रम में काशी के 84 घाट को 12 लाख दियों से सजाने की तैयारी है, इसमें 3 लाख दिए गाय के गोबर से तैयार होंगे। गंगा के दोनों छोर पर भव्य दियों की सजावट होगी। साथ ही लेजर शो और ग्रीन क्रैकर्स शो का भी आयोजन किया जाएगा। जिसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाएगा। इसको लेकर पर्यटन विभाग की तरफ से तैयारी पूरी की जा रही है।
काशी के घाटों की देव दीपावली को देखने के लिए लाखों की संख्या में पर्यटक देश और विदेश से पहुंचते हैं। महीनो पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। नाव की बुकिंग, होटलों की बुकिंग, घाटों की साफ सफाई पर्यटकों के आवागमन संबंधित विषय को लेकर पर्यटन विभाग और स्थानीय प्रशासन की तरफ से तैयारियां पूरी की जाती है। इसी क्रम में इस बार काशी के घाटों की देव दीपावली को भव्य रूप में आयोजित करने की तैयारी है। काशी के 84 घाट 12 लाख दियों से जगमग होंगे। इसके अलावा देव दीपोत्सव पर ग्रीन क्रैकर शो और लेजर शो का आयोजन किया जाएगा। झालरों से आग लगने का भी खतरा रहता है। नन्हा दीपक हमें प्रेरणा भी देता है कि अगर हम ठान लें तब कुछ भी असंभव नहीं है। अमावस्या के घने तिमिर को एक छोटा सा दीपक पराजित कर देता है। (हिफी)