आपराधिक कानूनों में सामयिक संशोधन

समाज में अगर सुनियोजित व्यवस्था नहीं है तो उसे बिखरने मंे देर नहीं लगेगी। इसीलिए पुरस्कार और दण्ड की व्यवस्था भी की गयी है। अच्छे कार्य के लिए पुरस्कार दिया जाता है ताकि दूसरों को प्रेरणा मिले और वे भी अच्छे कार्य करें। इसी प्रकार गलत काम करने पर दण्ड दिया जाता है ताकि दूसरे लोगों को सबक मिल सके और वे गलत काम न करें। यही व्यवस्था कानून का रूप ले लेती है। समय और परिस्थिति के अनुसार कानून में बदलाव होना जरूरी है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस बात को महसूस किया और तीन आपराधिक कानूनों मंे संशोधन कराया है। न्याय व्यवस्था की दृष्टि से यह संशोधन बहुत महत्वपूर्ण और व्यावहारिक कहा जाएगा। मुकदमें सालों तक लंबित रहते थे लेकिन अब प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज होने के बाद ट्रायल कोर्ट को तीन साल मंे फैसला सुनाना अनिवार्य होगा। दूसरा महत्वपूर्ण बदलाव यह हो गया है कि भीड़ मंे लोग कानून अपने हाथ में ले लेते थे और जज बनकर सजा भी दे देते थे लेकिन अब भीड़ मंे हिंसा के लिए जिम्मेदारी तय की जाएगी। इसी क्रम में नाबालिगों से दुराचार की दुष्प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे भीड़ मंे हिसा और नाबालिगों से दुराचार की घटनाएं कम होंगी। इन सभी का प्रभाव समाज पर पड़ेगा। ऐसे समाज सुंस्कृत माने जाते हैं।
लोकसभा मंे पिछले दिनों तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया गया। गृहमंत्री अमित शाह ने 20 दिसम्बर को लोकसभा मंे ये विधेयक प्रस्तुत किये थे। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) व भारतीय साक्ष्य अधिनियम को संशोधित किया गया है। इनकी जगह अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पर चर्चा हुई। अफसोस यह कि विपक्षी सांसद संसद भवन में चूक के मामले को लेकर ही हंगामा करते रहे। हंगामा करने के चलते उनको निलबित भी किया गया जबकि इन महत्वपूर्ण विधेयकों पर सार्थक चर्चा होने से और भी अच्छा स्वरूप इनको दिया जा सकता था। सत्ता पक्ष से चर्चा हो सकी। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चर्चा का जवाब दिया। उन्होंने बताया कि नये कानून मानव केन्द्रित हैं अर्थात मानवता को ही प्राथमिकता दी गयी है। दूसरी बात उन्हांेने यह कही कि भाजपा का मानना है कि गुलामी के अवशेष जिस रूप मंे भी हों, उन्हंे खत्म किया जाना चाहिए। आपराधिक कानूनो मंे भी ब्रिटिश दासता की झलक थी। इसीलिए शाह ने सामान्य लोगो को समय से न्याय दिलाने के लिए उचित बदलाव किया। प्रक्रिया को दूरदर्शी और जवाबदेह बनाया गया है। मुकदमों मंे तारीख पर तारीख जारी होती रहती थी। फैसले की कोई निर्धारित सीमा ही नहीं थी। देर से मिला न्याय न्याय नहीं होता- इसकी अहमियत ही खत्म हो गयी थी। इसलिए नये कानून में व्यवस्था की गयी कि रिपोर्ट दर्ज होने के तीन साल के अंदर ट्रायल कोर्ट को अपना फैसला सुनाना ही होगा। अमित शाह ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों को याद किया और कहा फैसले की कोई निर्धारित समय सीमा न होने कारण ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और बाल गंगाधर राव तिलक जैसे स्वाधीनता सेनानी वर्षों तक जेल मंे बंद रहे थे।
इसी संदर्भ मंे देशद्रोह कानून की चर्चा भी की सकती है। अंग्रेजों के समय से राजद्रोह कानून लागू था। यह कानून सरकार की आलोचना करने पर भी लागू होता था। हमारे स्वाधीनता सेनानी इसके चलते भी जेल भेजे गये। अब अमित शाह ने राजद्रोह को खत्म कर दिया है और उसकी जगह देशद्रोह कानून लाया गया है। मोटे रूप से कहा जाए तो सरकार की आलोचना तो की जा सकती है लेकिन देश की आलोचना नहीं होनी चाहिए। देश के खिलाफ काम करने वालों को सजा दिलाने के लिए देशद्रोह कानून लाया गया है। गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि ऐसा कोई कृत्य जिससे देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर आंच आती हो, देश मंे आर्थिक संकट की संभावना पैदा होने की नौबत आती हो तब ऐसे लोग देशद्रोह के दायरे मंे लाए जाएंगे। उदाहरण के लिए सशस्त्र विद्रोह करने, बम फोड़ने, तोड़-फोड़ और आगजनी कर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के कृत्य देशद्रोह माने जाएंगे।
अमित शाह ने भीड़ हिंसा पर भी कानूनी प्रावधान किये हैं। इसके तहत नस्ल, जाति, समुदाय के आधार पर भीड़ आदि किसी की हत्या कर देती है तो आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया है। भारतीय न्याय संहिता में इंसाफ को प्राथमिकता की गयी है। अंग्रेजों के शासन मंे मानव वध या महिलाओं पर अत्याचार के साथ सरकार की आलोचना और खजाना आदि लूटने पर सजा देने का प्रावधान था। नये कानून मंे इंसानियत को प्रमुखता दी गयी है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में न्याय की समय सीमा तय की गयी है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम मंे इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को भी सबूत की मानता दी गयी है। इलेक्ट्रानिक या डिजिटल रिकार्ड, ईमेल, कम्प्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज, स्मार्टफोन या लैपटाॅप के संदेश को भी सबूत माना गया है। इलेक्ट्रानिक बयान साक्ष्य के रूप मंे मान्य समझे जाएंगे। इस प्रकार समय से न्याय देना और इंसानियत को प्राथमिकता देने का प्रयास अमित शाह ने किया है।
भारतीय न्याय संहिता में 21 नए अपराध जोड़े गए हैं, 41 अपराधों में कारावास की अवधि बढ़ाई गई है और 82 में जुर्माना बढ़ाया गया है। 25 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा शुरू की गई है, 6 अपराधों में सजा के रूप में सामुदायिक सेवा के प्रावधान हैं और 19 धाराएं निरस्त कर दी गई हैं। इसका उद्देश्य ब्रिटिश काल के कानूनों को बदलना है। नया कानून मौजूदा आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव लाएगा। वर्तमान कानूनों में केवल दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान हैं लेकिन नए कानून मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं। इसमें महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता दी गई है।
इन प्रस्तावित कानूनों ने राजद्रोह को अपराध के रूप में खत्म कर दिया और राज्य के खिलाफ अपराध नामक एक नई धारा पेश की। इनमें पहली बार, आतंकवाद को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसमें मॉब लिंचिंग के लिए भी मौत की सजा दी गई है। नाबालिग से दुष्कर्म में फांसी की सजा का प्रावधान है। ट्रायल अदालतों को एफआईआर दर्ज होने के तीन साल में हर हाल में सजा सुनानी होगी। अपराध कर विदेश भाग जाने वाले या कोर्ट में पेश न होने वालों के खिलाफ उसकी अनुपस्थिति में सुनवाई होगी। सजा भी सुनाई जा सकेगी।
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023, आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की जगह लेगी। सीआरपीसी अरेस्ट, प्रॉसीक्यूशन और बेल के लिए है। इसके अंतर्गत सीआरपीसी में 531 धाराएं होंगी, जबकि पहले केवल 484 धाराएं थीं। नए विधेयक में 177 धाराओं में बदलाव किए गए हैं और 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है। इसी तरह भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय दंड संहिता 1860 का स्थान लेगी। ये देश में क्रिमिनल ऑफेंस पर प्रमुख लॉ है। नए विधेयक में सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके अंतर्गत पहले की 511 धाराओं के बजाय अब 358 धाराएं होंगी। इसमें 21 नए अपराध जोड़े गए हैं और 41 अपराधों में सजा के टाइम को बढ़ा दिया गया है।भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता बिल 2023, सीआरपीएसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और एविडेंस एक्ट के बदले भारतीय साक्ष्य विधेयक-2023 को लोकसभा में बदलाव किया गया। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)