शरद की किताब से खुले सियासी पन्ने-2

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 15 मई, 1999 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की मीटिंग बुलाई। मीटिंग का कोई एजेंडा नहीं बताया गया। मीटिंग में अचानक उन्होंने एक पेपर निकाला और जोर-जोर से पढ़ना शुरू किया, ‘मेरा जन्म भारत से बाहर हुआ है। यदि यह विषय चुनाव अभियान में मुद्दे के रूप में उठाया गया तो चुनाव में हमारी पार्टी के प्रदर्शन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?’ उन्होंने सीडब्ल्यूसी के सदस्यों से स्पष्ट रूप से अपने विचार रखने को कहा। कांग्रेस अध्यक्ष की बात समाप्त होते ही, सबसे पहले अर्जुन सिंह ने कहा, ‘आपका जन्म विदेश में हुआ परन्तु आपकी शादी होने के बाद आप इस देश की नागरिक हो गईं। आपकी सास और आपके पति की हत्या कर दिये जाने के बाद भी आपने यह देश नहीं छोड़ा। आपने इस देश को ही अपना समझा, इस देश की माटी में ही अपने पैर जमाए रखे, भारत की जनता ने भी आपको इसी रूप में स्वीकार किया है और अपने ही बीच का एक व्यक्ति माना है। उनके लिए आप ‘राष्ट्र माता’ हैं। केवल आप ही देश और पार्टी को नेतृत्व प्रदान कर सकती हैं।’ अर्जुन सिंह ने लोगों के वक्तव्यों का मार्ग प्रशस्त कर दिया और इसके बाद ए.के. एंटनी, गुलामनबी आजाद और अम्बिका सोनी ने वफादारी से भरे अपने वक्तव्य दिये। इसके बाद पी.ए. संगमा की बोलने की बारी आई। संगमा को सोनिया गांधी का बहुत करीबी समझा जाता था। संगमा ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का विषय चुनाव में एक बड़ा मुद्दा होगा। जब पार्टी में इतने योग्य व्यक्ति मौजूद हैं तो एक विदेशी मूल के व्यक्ति द्वारा पार्टी नेतृत्व प्रदान करने की आलोचना अवश्य ही होगी और इसका पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं होगा, यह कहना केवल मूर्खता है। हमें उनकी आलोचना का जवाब देने के तरीकों और उपायों को सोचना होगा।’ संगमा से ऐसे वक्तव्य की किसी को भी आशा नहीं थी।
सीडब्ल्यूसी के सभी सदस्य तन्मयता और ध्यान से संगमा का वक्तव्य सुन रहे थे। एक वरिष्ठ सदस्य ने बीच में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया किन्तु संगमा ने उनको यह कहकर शान्त करा दिया कि यह प्रत्येक के हित में होगा कि उनके बोलने के दौरान कोई हस्तक्षेप न करे। तारिक अनवर ने अपने वक्तव्य में संगमा से सहमति व्यक्त की। कुछ अन्य लोगों के बोलने के बाद मेरा नम्बर आया। मैंने कहा, ‘इस देश के लिए गांधी परिवार के भारी योगदान को भारतीय जनता नहीं भूल सकती। देश की जनता कांग्रेस का समर्थन करती है क्योंकि वह इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के देशहित में बलिदान को भली प्रकार याद करती है। इसलिए सोनिया गांधी के विदेशी मूल के प्रश्न का हम भली प्रकार उत्तर दे सकते हैं। मैं संगमा से एक बात पर सहमत हूं कि हमें सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर विपक्ष से आमने-सामने टकराना होगा। विपक्षी ‘विदेशी मूल’ के प्रश्न को चुनावी मुद्दा नहीं बनाएंगे, यह सोचना हमारी भारी भूल होगी।’
तदोपरान्त मैंने अपने विचार के पक्ष में एक घटना का वर्णन किया। कुछ दिन पूर्व मैंने मुम्बई विश्वविद्यालय में एक समारोह में भागीदारी की जहां एक छात्रा ने मुझसे पूछा, ‘इस एक बिलियन जनसंख्या वाले देश में क्या कांग्रेस को भारतीय मूल का एक भी नेता नहीं मिला?’ युवा पीढ़ी के एक सदस्य द्वारा इस प्रश्न को उठाना, इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि यह प्रश्न जनता में गहराई तक पहले ही पहुंच चुका है। इसका अर्थ है कि ‘विदेशी मूल’ का विषय चुनाव में केन्द्रीय मुद्दा होगा। इस घटना का उल्लेख करने के पीछे मेरा उद्देश्य यह था कि पार्टी इस चुनौती का जवाब देने को तैयार रहे। इसके बाद कोई बहस नहीं हुई।
चूंकि सोनिया गांधी ने ही इस विषय पर बहस शुरू की थी इसलिए हम सब उनके आखिरी वक्तव्य की प्रतीक्षा कर रहे थे। परन्तु वह शान्त रहीं और उन्होंने कोई विचार व्यक्त नहीं किया। इस चुप्पी का कारण वही जानती होंगी। इस प्रकार एक असामान्य स्थिति में ही सीडब्ल्यूसी की मीटिंग समाप्त हो गई। मैंने चार बजे अपराह्न को हवाई जहाज से पुणे के लिए प्रस्थान किया। पत्रकार हवाई अड्डे पर ही मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है! नई दिल्ली में पार्टी मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन हो रहे हैं। वहां पर उपस्थित अनेक महिलाएं विलाप कर रही हैं। भीड़ में उपस्थित कुछ लोग संगमा को भला-बुरा कह रहे थे और इस बारे में मेरा और तारिक अनवर का भी नाम लिया जा रहा था। पत्रकारों ने इस विषय पर मेरी प्रतिक्रिया जानना चाही। मैंने कहा, ‘यह एक अति संवेदनशील विषय है इसलिए सम्पूर्ण जानकारी के बगैर कुछ भी कहना उचित नहीं है।’
इस घटना के दूसरे दिन और अधिक प्रदर्शन होने से परिस्थिति तनावपूर्ण हो गई। पुलिस ने हम लोगों को पार्टी ऑफिस के समीप जाने से रोका और बताया कि आप पर लोग हमला भी कर सकते हैं।
तारिक अनवर, मैं और संगमा ने दिल्ली में भेंट कर सोनिया गांधी के नाम एक पत्र लिखा। इस पत्र में अति संयमपूर्वक हम लोगों ने स्पष्ट किया कि ‘विदेशी मूल’ का मुद्दा निश्चित रूप से चुनाव के समय केन्द्रीय मुद्दा बनेगा और पार्टी को इसकी भारी राजनीतिक कीमत चुकानी होगी। इस विषय और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हम लोगों ने सोनिया गांधी से भारतीय संविधान में संशोधन पेश करने का निवेदन किया कि भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भारत में जन्मा स्वाभाविक भारतीय नागरिक होना चाहिए। हम लोगों का प्रस्ताव पार्टी कार्यालय के बाहर ‘वफादारी’ के प्रदर्शन के ठीक विरोध में था। जैसे ही हम लोगों का पत्र पहुंचा, तुरन्त उसके बाद सीडब्ल्यूडी की मीटिंग आहुत हुई और हम लोगों को पार्टी से 6-6 वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया। 10 जनपथ पर एक सप्ताह तक वफादारों का उन्मादी प्रदर्शन होता रहा। 25 मई को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की एक मीटिंग तालकटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली में बुलाई गई। एआईसीसी ने कर्तव्य पालन करते हुए हम लोगों के निलंबन पर मुहर लगा दी।
कुछ समय बाद हम लोगों को ज्ञात हुआ कि यह सब प्रदर्शन आदि सब पूर्व नियोजित था और अर्जुन सिंह ने ही यह सारा खेल रचाया था। हम लोगों को निलंबित करने से पूरे देश की पार्टी कतारों में विक्षोभ व्याप्त हो गया। पार्टी कतारों में उत्पन्न अशान्ति सर्वाधिक महाराष्ट्र में देखी गई। पी.ए. संगमा और तारिक अनवर के अतिरिक्त शरतचन्द्र सिन्हा (असम से) मुम्बई पहुंचे। उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तरपूर्व, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल से भी दूसरी कतार के कांग्रेसी नेता मुम्बई आए। महाराष्ट्र से शामिल होने वाले नेताओं में छगन भुजबल और आर.आर. पाटिल शामिल हुए। इन सबके बीच यह तय किया गया कि कांग्रेस की मूल विचाराधारा और संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए एक नई पार्टी का गठन किया जाए। इस नई पार्टी का नाम नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) होगा और यह भी निर्णय लिया गया कि चुनाव आयोग से चरखेवाला चुनाव चिह्न आवंटित करने का निवेदन किया जाए। इस प्रकार 10 जून, 1999 को मुम्बई के खचाखच भरे सम्मुखखंड हॉल में आहूत मीटिंग में औपचारिक रूप से एनसीपी का आविर्भाव हुआ। मुझे पार्टी का अध्यक्ष और पीए संगमा व तारिक अनवर को राष्ट्रीय महासचिव चुना गया। छगन भुजबल पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। (हिफी)