वन नेशन, वन इलेक्शन की सियासत

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल जब अपने गठबंधन ‘इंडिया’ का कुनबा बढ़ा रहे थे, तभी नरेन्द्र मोदी की सरकार ने वन नेशन, वन इलेक्शन के ट्रम्प कार्ड को फेंक दिया है। यह विचार एकदम नया नहीं है। बहुत पहले से इस पर चर्चा हो रही है। देश के व्यापक हित में भी है। भाजपा ने 2014 मंे जब नरेन्द्र मोदी को आगे कर लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब यह बात पार्टी के संकल्प पत्र मंे भी कही गयी थी। चुनाव आयोग भी इसके लिए अपनी स्वीकृति दे चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले पर ध्वजारोहण करते समय भी इसका उल्लेख कर चुके हैं लेकिन जनता को लगता था कि यह एक राजनीतिक शिगूफा है क्योंकि चुनाव में अपराधीकरण को रोकने, एक सीट से दो लोगों के चुनाव न लड़ने जैसे कई सुझाव निर्वाचन आयोग ने दिये लेकिन उन पर ध्यान नहीं दिया गया। अब अचानक केन्द्र सरकार को वन नेशन, वन इलेक्शन की याद आ गयी क्योंकि 28 विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा बनाया है। इनमंे लोकसभा चुनाव में एक साथ खड़े होने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं क्योंकि सीट शेयरिंग का ही मामला रहेगा लेकिन राज्यों मंे जिसने अपना अधिकार जमा लिया है, वह पूर्ववर्ती को घुसने नहीं देगा। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल मंे ममता बनर्जी कांग्रेस और वामपंथियों को सत्ता की तरफ नहीं बढ़ने देंगी तो अरविन्द केजरीवाल अब पंजाब और दिल्ली मंे कांग्रेस को नजदीक नहीं आने देंगे। इसके साथ ही जगन मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक और के। चंद्रशेखर राव क्रमशः आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना मंे राजगद्दी संभाले हुए हैं। वे अपने सूबे को बचाने मंे ही लगे रहेंगे। उत्तर प्रदेश मंे अखिलेश यादव अपना प्रभुत्व पूरी तरह स्वीकार कराने को उतावले हैं तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे भी पहले अपनी सियासत देखेंगे। यही भाजपा चाहती थी। फिलहाल पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व मंे एक समिति बनायी गयी है। इसके लिए 18 सितम्बर से संसद का विशेष सत्र बुलाया जाएगा।
विपक्षी दलों की बैठक की गहमागहमी के दौरान केंद्र सरकार ने वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर बड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेठी गठित की है। पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी कानून के सभी पहलुओं पर विचार करेगी और एक देश, एक चुनाव की संभावना का पता लगाएगी। कमेटी लोगों की राय भी लेगी। वन नेशन, वन इलेक्शन का मतलब देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने से है। इसके लिए केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर को संसद का विशेष सत्र बुलाया है। सरकार संसद के विशेष सत्र के दौरान एक देश एक चुनाव को लेकर बिल पेश कर सकती है। आगामी विशेष सत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के 9 सालों का पहला ऐसा विशेष सत्र होगा। इसके पहले 30 जून 2017 को जीएसटी लागू करने के लिए आधी रात को लोकसभा और राज्यसभा की विशेष संयुक्त बैठक बुलाई गई थी। 18 सितंबर से बुलाया गया ये पांच दिनों का पूर्ण सत्र होगा, जिसमें पांच बैठकें होंगी। इसमें दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की अलग-अलग बैठकें होंगी, जैसे सामान्य सत्र के दौरान होती हैं।
वन नेशन, वन इलेक्शन का मुद्दा बीजेपी के एजेंडे में रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता कई मौकों पर एक देश, एक चुनाव को लेकर बोल चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में भी ये शामिल रहा था। घोषणा पत्र में कहा गया था, बीजेपी अपराधियों को खत्म करने के लिए चुनाव सुधार शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है। बीजेपी अन्य दलों के साथ परामर्श के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की पद्धति विकसित करने की कोशिश करेगी। चुनाव खर्चों को कम करने के अलावा राजनीतिक दलों और सरकार दोनों के लिए, यह राज्य सरकारों के लिए कुछ स्थिरता सुनिश्चित करेगा। हम खर्च सीमा को वास्तविक रूप से संशोधित करने पर भी विचार करेंगे। घोषणा पत्र में कहा गया था, बीजेपी अपराधियों को खत्म करने के लिए चुनाव सुधार शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है। बीजेपी अन्य दलों के साथ परामर्श के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की पद्धति विकसित करने की कोशिश करेगी। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गयी।
कमेटी का उद्देश्य एक देश, एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर गौर करना है ताकि इसको लागू करते समय कोई कानूनी अडचन नहीं आए। देश के सभी मुख्यमंत्रियों और विपक्षी नेताओं से भी यह कमेटी सलाह-मशविरा करेगी। ध्यान रहे 2018 में बने लॉ कमीशन ने एक देश, एक चुनाव को लेकर कानून मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसको यह कह कर खारिज कर दिया गया था कि संविधान का मौजूदा ढांचा इसकी इजाजत नहीं देता। लॉ कमिशन ने 2018 में एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में उसने देश में एक चुनाव कराए जाने की यह कहते हुए वकालत की थी, एक चुनाव देश के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए मुफीद रहेंगे। लॉ कमीशन ने कहा था, एक देश, एक चुनाव इसलिए फायदे मंद होगा क्योंकि यह देश को लगातार चुनावी स्थिति में पड़े रहने से बचाएगा। लॉ कमीशन ने स्पष्ट तौर पर लिखा था कि लोक सभा और राज्य विधान सभा में एक साथ चुनाव कराने से सार्वजनिक धन की बचत होगी। उन्होंने कहा, इससे प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर भी बोझ कम होगा। इसके अलावा सरकार यह सुनिश्चित कर सकेगी की सरकारी नीतियां बेहतर ढंग से आम लोगों तक पहुंच सकें, क्योंकि एक बार चुनाव हो जाने से अमूमन पांच सालों तक चुनाव नहीं होंगे।
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने इस दौरान उप-चुनाव भी एक साथ कराए जाने को लेकर जोर दिया। कमीशन ने कहा, आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन करने की भी सिफारिश की, ताकि एक कैलेंडर में पड़ने वाले सभी उपचुनाव एक साथ आयोजित किए जा सकें।
लॉ कमीशन ने जब अपनी यह रिपोर्ट केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंपी तब इस रिपोर्ट को यह कहते हुए रोक लिया गया था कि इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। तब इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया जा सका था। इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को इस मुद्दे पर एक बैनर तले लाना था जोकि प्रायोगिक रूप से संभव होता नहीं दिख रहा था।
संविधान निर्माण के बाद से ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में,1957 में, 1962 में और 1967 में एक साथ हुए थे। अब विपक्षी दल इसकी आलोचना कर रहे हैं। (हिफी)