लेखक की कलम

नीतीश को चरण-वंदना का प्रसाद

नीतीश कुमार भाजपा के साथ जुड़कर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा भले ही नहीं दिलवा पाये लेकिन चुनावी साल मंे ही करोड़ों की योजनाएं केन्द्र सरकार से मिली हैं। नीतीश कुमार ने भी इसके लिए मोदी की चरण वंदना तक से गुरेज नहीं किया। हालांकि नीतीश कुमार इतने सरल भी नहीं हैं कि हर एक के सामने अपना सिर झुकाते रहंे। अभी पिछले दिनों अल्पसंख्यक सम्मेलन मंे एक फोटो बार-बार दिखाई जा रही थी जिसमंे अल्पसंख्यक नेता नीतीश कुमार को टोपी पहनाने का प्रयास करते हैं लेकिन बिहार के राजनीतिक चाणक्य खुद टोपी न पहन कर अल्पसंख्यक नेता को ही पहना देते हैं। भाजपा के साथ रहते हुए अल्पसंख्यकों को भी गांठते रहते हैं और जानकी मंदिर बनवाकर हिन्दुत्व को प्राथमिकता देते हैं। इसीलिए विपक्षी दलों के आरोप को कुंद करने के लिए नीतीश ने एक साल में ही करोड़ों की योजनाएं मोदी से प्राप्त करती हैं। ताजा घटनाक्रम में पीएम मोदी गयाजी पहुंचे थे। यहां भी उन्होंने करोड़ों रुपये की योजनाओं की सौगात दी है। विपक्षी दलों को विकास में बाधक बताया। पीएम ने 6 लेन गंगा पुल का उद्घाटन किया जो उत्तर और दक्षिण बिहार को जोड़ रहा है। इससे पूर्व जुलाई में मोदी मोतिहारी पहुंचे थे जहां 7217 करोड़ से ज्यादा की योजनाओं का तोहफा दिया था।
बीते कुछ महीनों से बिहार के लिए केंद्र सरकार ने अपना खजाना खोल दिया है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गयाजी पहुंचे जहां उन्होंने 12,992 करोड़ रुपये की लागत वाली कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इसमें गंगा पर बना 6 लेन वाला पुल भी शामिल है। इसके अलावा वैशाली से कोडरमा के बीच का बुद्ध सर्किट ट्रेन की शुरुआत भी हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अगस्त को बिहार के गयाजी पहुंचकर करोड़ों की योजनाओं की सौगात दी। इसमें तमाम तरह की सड़क और अन्य परियोजनाएं शामिल हैं। बक्सर में 660 मेगावाट क्षमता वाला थर्मल पावर प्लांट, मुंगेर में सीवरेज नेटवर्क और एसटीपी परियोजना, मुजफ्फरपुर के होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र का निर्माण और मोखामा-सिमरिया के बीच 4/6 लेन और गंगा ब्रिज का निर्माण शामिल है।
पीएम मोदी ने 22 अगस्त को 6-लेन गंगा पुल (औंटा-सिमरिया) का उद्घाटन किया। इससे बिहार की कनेक्टिविटी को एक नई रफ्तार के साथ और लाखों लोगों को राहत भी मिलेगी। लगभग 1871 करोड़ की लागत से बने इस पुल की कुल लंबाई 8.15 किमी है। भारी वाहनों की दूरी 100 किमी तक घटेगी। यह पुल उत्तर और दक्षिण बिहार को सीधा जोड़ने का काम करेगा। मोकामा-बेगूसराय के बीच सफर आसान होगा। सिमरिया धाम व दिनकर जी की जन्मभूमि तक बेहतर पहुंच और सिमरिया धाम तक तीर्थयात्रियों की आसान यात्रा के साथ लोगों का समय और ईंधन की बचत होगी।
इसी साल पीएम मोदी 18 जुलाई को बिहार के मोतिहारी पहुंचे थे। यहां उन्होंने 7217 करोड़ रुपये से ज्यादा की योजनाओं का तोहफा देकर मिशन-चंपारण को साधने की कोशिश की। इससे पूर्व पीएम मोदी 20 जून को भी बिहार के सिवान पहुंचे थे। उन्होंने 5,700 करोड़ की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया था, जिसमें रेलवे, जल और बिजली से जुड़ी योजनाएं शामिल थीं। पीएम मोदी मई में भी बिहार पहुंचे थे, तब उन्होंने बिहार को 50 हजार करोड़ की परियोजनाओं की सौगात दी थी। बिहार की राजधानी पटना पहुंचे पीएम मोदी ने पटना एयरपोर्ट, एनटीपीसी बिजली परियोजना और ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे जैसी कई योजनाओं की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने 24 अप्रैल को बिहार के मधुबनी में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने 13,480 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया। साथ ही बिहार में अमृत भारत एक्सप्रेस और नमो भारत रैपिड रेल को हरी झंडी दिखाई। पीएम मोदी ने इसी साल फरवरी में अपना पहला बिहार दौरा किया था, जिसमें 24 फरवरी को उन्होंने भागलपुर से पीएम किसान सम्मान निधि योजना की किस्त जारी की थी।
इससे पूर्व बजट में बिहार के लिए तोहफे दिये गये थे। मखाना किसानों के लिए मखाना बोर्ड का गठन करने का ऐलान, 2014 के बाद बने आईआईटी में साढ़े छह हजार नई सीटें जोड़ने की घोषणा, पटना आईआईटी को फायदा, बिहार में चार नए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बनाने की घोषणा, बिहार में फूड टेक्नोलॉजी, व्यसायिकता और मैनेजमेंट के लिए राष्ट्रीय योजना की शुरुआत और सिंचाई सुविधा बेहतर करने के लिए पश्चिमी कोसी नहर परियोजना को वित्तीय सहायता दी गयी थी।
हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक विवाद में फंसते हुए नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें वो बिहार सरकार के मंत्री मोहम्मद जमा खान को टोपी पहनाते हुए नजर आ रहे हैं। उनके आलोचकों का कहना है कि नीतीश कुमार ने खुद टोपी पहनने से इनकार करते हुए जामा खान को वह टोपी पहना दी। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि नीतीश ने टोपी पहनने से इनकार नहीं किया था। उनका कहना है कि नीतीश कुमार पहले भी ऐसा करते रहे हैं, कई बार जब उन्हें कोई माला पहनाने की कोशिश करता है तो वो वही माला उसे ही पहना देते हैं। यह कार्यक्रम मदरसा बोर्ड के 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया था। टोपी पहनाने या न पहनाने का यह विवाद चुनाव में मुद्दा बन सकता है। बिहार की राजनीति में यह मुद्दा मुसलमानों को अपने पक्ष में करने वाला हो सकता है, जिनकी जनसंख्या बिहार की 10.4 करोड़ की आबादी में करीब 18 फीसदी है। बिहार में मुसलमान आम तौर पर तीन खेमों में बंटे हुए हैं। मुसलमानों का एक बड़ा खेमा राष्ट्रीय जनता दल को वोट करता है। इसे देखते हुए ही राजद को एमवाई की पार्टी कहा जाता है, इसमें एम का मतलब मुसलमान होता है। बाकी के मुसलमानों में से कुछ जनता दल यूनाइटेड और कुछ कांग्रेस को वोट करते रहे हैं। लेकिन 2020 के चुनाव से मुसलमान वोटों की एक और दावेदार सामने खड़ी हो गई थी। वह थी हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम। उस चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि उनके चार विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए थे। साल 2020 के चुनाव में नीतीश की जेडीयू ने 11 मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं पाया था। इसलिए जब कैबिनेट बनी तो उसमें कोई मुसलमान चेहरा नहीं था। वीआईपी के मुकेश कुमार को कैबिनेट में शामिल किया गया था, जबकि वो चुनाव हार गए थे। जेडीयू ने मुसलमान को कैबिनेट में शामिल न होने को लेकर मुसलमान विधायक के न होने की बात कही
थी, इस पर नीतीश कुमार के आलोचकों ने कहा था कि जब हारे हुए मुकेश कुमार को मंत्री बनाया जा सकता है
तो किसी मुसलमान को क्यों नहीं। इसके बाद में बसपा के टिकट पर जीते जमा खान को जेडीयू में शामिल कराकर उन्हें मंत्री बनाया गया था। आज
जिनसे टोपी नहीं पहनने का आरोप नीतीश कुमार पर लगा है, वो जमा खान ही हैं। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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