लेखक की कलम

हाइपरसोनिक मिसाइल की शान ‘ध्वनि’

(मोहिता-हिफी फीचर)
यह मिसाइल और ड्रोन का युग है। इनसे हमलावर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता है लेकिन जहां हमला होगा, वहां डिफेन्स सिस्टम मजबूत नहीं है तो तबाही ही तबाही दिखेगी। भारत भी हाइपरसोनिक हथियारों की दौड़ मंे बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। अब तक ब्रह्मोस मिसाइल की चर्चा हो रही थी लेकिन हमारे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ध्वनि नामक नई पीढ़ी की मिसाइल तैयार कर ली है। इसके परीक्षण की तैयारी चल रही है। अनुमान है कि इसी साल 2025 के अंत तक परीक्षण होगा। यह मिसाइल लगभग 7400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेगी और इसकी रेंज ब्रह्मोस मिसाइल से ज्यादा होगी। इस मिसाइल को ध्वनि मिसाइल का नाम दिया गया है। ध्वनि मिसाइल डीआरडीओ के हाइपरसोनिक टेक्नोलाॅजी डेमान्सट्रेटर ह्वीकल (एचएसटीडीवी) प्रोग्राम पर आधारित है। ध्वनि एक हाइपरसोनिक ग्लाइड ह्वीकल (एचजीवी) है जो बैलेस्टिक बूस्टर से ऊँचाई पर पहुंचती है। इसके बाद हवा मंे ग्लाइड करती हैं। इसकी रफ्तार
ध्वनि की गति से दो गुना ज्यादा है। इस प्रकार यह मिसाइल दुश्मन को संभलने और जवाबी कार्रवाई का मौका नहीं देगी। सबसे खास बात यह है कि ध्वनि मिसाइल हवा, समुद्र और जमीन से लांच की जा सकेगी। हमारी ध्वनि मिसाइल विश्व की सबसे शक्तिशाली मिसाइलों को टक्कर देगी। यह मिसाइल चीन की डीएफ-26 और रूस की एवनगार्ड जैसी मिसाइलों का मजबूती से जवाब दे सकेगी।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ध्वनि नामक नई पीढ़ी की मिसाइल के परीक्षण की तैयारी कर रहा है। यह मिसाइल लगभग 7400 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ेगी। भारत-रूस की ब्रह्मोस मिसाइल से ज्यादा दूर रेंज होगी और तेज होगी। पहला प्रदर्शन परीक्षण 2025 के अंत तक हो सकता। मिसाइल टेक्नोलॉजी के मामले में भारत, चीन, अमेरिका और रूस जैसे देशों की कतार में है। जैसे ब्रह्मोस मिसाइल को दुनिया का कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम इंटरसेप्ट नहीं कर सकता है लेकिन अब भारत जिस मिसाइल प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, वो ब्रह्मोस से कई गुना ज्यादा खतरनाक है। इस दुनिया का मोस्ट एडवांस मिसाइल कहा जा रहा है, जो चीन के सबसे ज्यादा विनाशक डीएफ-26 के मुकाबले भी टेक्नोलॉजी में काफी आगे है। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानि डीआरडीओ इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहा है।
इसमंे कोई दो राय नहीं कि आधुनिक युद्ध में मिसाइल काफी बड़ी भूमिका निभाते हैं। एडवांस सुपरसोनिक ब्रह्मोस इस बात को साबित कर चुका है। इसीलिए भारत अब हाइपरसोनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी कार्यक्रम पर काम कर रहा है। डीआरडीओ इस साल के अंत तक एक नई श्रेणी की हाइपरसोनिक मिसाइल, जिसका नाम ध्वनि है, उसका परीक्षण करने की तैयारी कर रहा है। यह 7,400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकती है और उड़ान के दौरान मिशन और टारगेट के हिसाब से अचानक कहीं भी मोड़ ले सकती है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस स्पीड और फुर्ती की वजह से दुनिया का कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम, जिसमें अमेरिकी थाड और इजराइली आइरन डोम भी शामिल हैं, वो ध्वनि मिसाइल को रोक नहीं पाएंगे। सुपरसोनिक रैमजेट टेक्नोलॉजी में भारत पहले ही महारत हासिल कर चुका है। भारत ने पहले जितनी भी बार रैमजेट इंजन का टेस्ट किया है, उसने लगातार 1,000 सेकंड से ज्यादा देर तक परफॉर्म किया है, जो एक रिकॉर्ड है। रिपोर्ट के मुताबिक, पारंपरिक क्रूज मिसाइलों से अलग, ध्वनि मिसाइल में दो-स्टेज प्रणाली अपनाई गई है। पहले रॉकेट बूस्टर इसे ऊपर तक ले जाता है, फिर ग्लाइड व्हीकल लक्ष्य की तरफ हाइपरसोनिक स्पीड में उड़ता है लेकिन ब्रह्मोस मिसाइल की तरह ही ये पृथ्वी से काफी कम ऊंचाई पर उड़ान भरती है, स्पीड आवाज की रफ्तार से 6 गुना ज्यादा होगा। इसीलिए दुनिया का कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम इस मिसाइल को इंटरसेप्ट नहीं कर सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह सिस्टम भूमि और समुद्री दोनों तरह के लक्ष्यों को सटीक रूप से निशाना बनाने में सक्षम होगी। चीन का डीएफ-26 हाइपरसोनिक मिसाइल, जिसे दुनिया के सबसे एडवांस मिसाइलों में गिना जाता है, ध्वनि मिसाइल उसके मुकाबले भी कई मायनों में एडवांस है। डीएफ-26 को चीनी सेना ने कई वर्षों से तैनात किया है और यह लंबी दूरी की हाइपरसोनिक क्षमताओं के लिए जानी जाती है। हालांकि, डीएफ-26 मुख्य रूप से स्थिर मार्ग और सीमित फुर्ती के लिए डिजाइन की गई है, जबकि ध्वनि मिसाइल, उड़ान के दौरान दिशा बदलने और लक्ष्य को धोखा देने की क्षमता रखती है। इसके अलावा, डीएफ-26 की मारक क्षमता और कम ऊंचाई की उड़ान सीमा ध्वनि के मुकाबले थोड़ी सीमित है। ध्वनि का यह डिजाइन भारत की स्ट्रैटजी को काफी ज्यादा घातक बनाता है और यह भारत को उन देशों के क्लब में शामिल कर देगा, जिन्होंने ऑपरेशनल हाइपरसोनिक हथियार दिखाए हैं, जैसे अमेरिका, रूस और चीन। हाल के महीनों में डीआरडीओ ने मिसाइल के एरोडायनेमिक्स, थर्मल मैनेजमेंट, गाइडेंस सिस्टम और स्क्रैमजेट इंजन को लेकर कई कामयाब टेस्ट किए हैं। इनमें अत्यधिक गर्मी सहने के लिए एडवांस सेरामिक थर्मल बैरियर कोटिंग्स का टेस्ट भी किया गया। इन तकनीकी सफलताओं के बाद ध्वनि का पहला फुल-स्केल उड़ान परीक्षण 2025 में ही होने की संभावना है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रह्मोस के साथ-साथ ध्वनि, भारतीय सेना की तरकश में शामिल दो ऐसी मिसाइलें होंगी, जिसे चीन और पाकिस्तान अगले कम से कम 15 सालों तक इंटरसेप्ट नहीं कर पाएंगे।
भारत की मिसाइलों में सामरिक और सामरिक महत्व वाली बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल प्रणालियाँ शामिल हैं । इन मिसाइलों का विकास स्वतंत्रता के बाद से विभिन्न मिसाइल कार्यक्रमों के माध्यम से किया गया है, जिनमें एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम सबसे महत्वपूर्ण और सफल रहा है। इन मिसाइल प्रणालियों का विकास एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन और सामरिक स्थिरता बनाए रखने और महाशक्ति का दर्जा प्राप्त करने के भारत के उद्देश्य को दर्शाता है। पृथ्वी, आकाश, अग्नि, ब्रह्मोस, सागरिका आदि मिसाइलें भारत के समक्ष भू-राजनीतिक चुनौतियों और संभावित खतरों का मुकाबला करने के लिए विकसित की गई हैं। इनका उद्देश्य किसी भी संघर्ष की स्थिति में आक्रामक और रक्षात्मक दोनों क्षमताओं को मजबूत करना है। भारत के पास 40 से अधिक विभिन्न प्रकार की मिसाइलें हैं, जिनमें अग्नि, पृथ्वी, आकाश, नाग, त्रिशुल और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें शामिल हैं, जो विभिन्न रेंज और लक्ष्यों के लिए डिजाइन की गई हैं, जैसे सतह से सतह, सतह से हवा, हवा से हवा और टैंक-रोधी क्षमताएं। इन मिसाइल तंत्रों को अलग-अलग मिलिट्री इस्तेमाल के लिए विकसित किया गया है। (हिफी)

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