मानवीय संवेदना

जनसेवक और समाज-सुधारक पटेल

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
कहते हैं होनहार बिरवान के होत चीकने पात लेकिन जनसेवक और समाज सुधारकों की पहचान भी बचपन से ही मिल जाती है। सरदार वल्लभभाई पटेल ऐसे ही विलक्षण व्यक्तियों में से थे जिनके तेवर विद्यार्थी काल में ही मिल गये थे। आजादी के बाद पांच सौ से अधिक रियासतों को मिलाकर नये और सशक्त भारत का निर्माण करने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था। वे बचपन से कर्मठ, निर्भीक और संकल्पवान थे। उन्होंने विद्यालय में गरीब विद्यार्थी पर लगाए अनावश्यक जुर्माने, शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को उनसे ही पुस्तकें खरीदने की अनिवार्यता के विरुद्ध सफल हड़ताल की, जिससे उनकी नेतृत्व और संगठन क्षमता को विशिष्ट पहचान मिली। पटेल ने एंट्रेंस के बाद मुख्तारी परीक्षा पास कर गोधरा में वकालत शुरू की। वे इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई करना चाहते थे, किंतु अपनी इच्छा का बलिदान करते हुए बड़े भाई विट्ठल को अपने स्थान पर इंग्लैंड जाने की अनुमति दे दी। बाद में 1936 में पटेल ने इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई कर अहमदाबाद में सबसे सफल बैरिस्टर के रूप में ख्याति अर्जित की। यह देश उनका ऋणी है और नत मस्तक भी। हालांकि सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी राजनीति के चश्में से देखा जाने लगा कर जो उनके साथ अन्याय है। सरदार पटेल कांग्रेस से जुड़े थे लेकिन वह भारत के नेता थे। भारत की जनता के नेता थे।
सरदार पटेल का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। देश को आजाद कराने के आंदोलन के साथ वह सरकार के अन्याय से भी लड़ रहे थे। उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की अमानवीय बेगार प्रथा समाप्त कराने के बाद 1918 में खेड़ा के किसानों के लिए सत्याग्रह किया, जहां भारी वर्षा व भीषण बाढ़ से किसानों की सारी फसल नष्ट हो गई थी लेकिन सरकार ने कर वसूली स्थगित नहीं की। पटेल ने शांतिपूर्ण ढंग से संघर्ष का आह्वान किया और किसानों का विश्वास अर्जित करते हुए स्वयं विदेशी वस्तुओं का त्याग कर धोती, कुर्ता, टोपी पहन किसानों के बीच साथ में बैठ संघर्ष किया। अंततः वे दृढ़ संकल्प के कारण अपने उद्देश्य में कामयाब हुए। गांधीजी ने कहा यदि मुझे वल्लभभाई न मिले होते तो जो काम आज हुआ है वह नहीं होता।
सन् 1928 में सरदार पटेल के नेतृत्व में बारडोली में सत्याग्रह प्रारंभ हुआ। अंग्रेज सरकार ने 1927 में किसानों पर 30 प्रतिशत लगान बढ़ा दिया। गरीबी के कारण किसान कर चुकाने की स्थिति में नहीं थे। पटेल ने निर्णय लिया कि जब तक सरकार बढ़े हुए लगान की जांच कराने के लिए तैयार न हो तब तक बिल्कुल भी लगान न दिया जाए। यदि सरकार अत्याचार करती है तो भी सारे कष्टों को सहन करते हुए आंदोलन जारी रखा जाएगा। एक ओर दमनकारी अंग्रेज सरकार तो दूसरी और भोले-भाले निहत्थे अहिंसक किसान।
मुंबई गवर्नर ने किसानों पर अमानुषिक अत्याचार शुरू कर हजारों किसान गिरफ्तार कर लिये। पटेल ने किसानों में अद्भुत साहस का संचार किया और किसानों की संगठन शक्ति के समक्ष अंग्रेज सरकार कमजोर पड़ गई। बढ़े हुए लगान को माफ कर दिया गया। ऐसा दृढ़ विश्वास रखते थे सरदार पटेल।
उन्होंने गांधी द्वारा प्रारंभ किए गए सभी आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। असहयोग, स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन, भारतीय ध्वज फहराने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के विरुद्ध नागपुर में झंडा सत्याग्रह, नमक सत्याग्रह, रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आदि में सरदार की संचालक और प्रबंधकीय भूमिका ने स्वाधीनता संघर्ष के फलक को व्यापक कर उसे नई ताकत दी और देशवासियों के स्वाभिमान को जागृत किया। माना जाता है कि इससे नवयुवकों को क्रांति की भी प्रेरणा मिली।
सरदार पटेल का सबसे साहसी व्यक्तित्व देश की आजादी के बाद देखा गया। अंग्रेजों ने कूटनीति से भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में ‘लैप्स आफ पैरामाउंसी’ विकल्प के अनुसार रियासतों को यह स्वतंत्रता दे दी कि वे चाहें तो आजाद रह सकते हैं अथवा भारत- पाकिस्तान किसी भी देश में अपना विलय कर सकते हैं। निःसंदेह अंग्रेजों का यह षड्यंत्र अखंड भारत के निर्माण का सपना कभी पूरा नहीं करता यदि सरदार पटेल ने दृढ़तापूर्वक अपनी विलक्षण बुद्धि, अनोखी सूझबूझ, साम-दाम दंड-भेद की नीति तथा अंतिम विकल्प के रूप में बल प्रयोग कर जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों को भारत में सम्मिलित नहीं किया होता। वस्तुतः भारत की आजादी की घोषणा के साथ ही अधिकांश रियासतों ने यह अर्थ लगा लिया कि अब वे संप्रभुता संपन्न राज्य हो जाएंगे। इसकी शुरुआत भी हो गयी थी क्योंकि 12 जून 1947 को त्रावणकोर राज्य ने और बाद में हैदराबाद निजाम ने अपने स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा कर दी। सरदार पटेल ने संदेश में कहा श्हमारी खंडित अवस्था और एक होकर मुकाबला न करने की हमारी अयोग्यता का ही परिणाम था कि भारत को आक्रमणकारियों का शिकार होना पड़ा। सरदार पटेल की चेतावनी का व्यापक असर हुआ और उनके अथक प्रयासों से 14 अगस्त तक 3 रियासतों को छोड़कर लगभग सभी रियासतें भारत राज्य में सम्मिलित हो गईं। सरदार पटेल ने कतिपय रियासतों को उनके निकटवर्ती राज्यों में मिला दिया, कुछ को भारत सरकार के सीधे नियंत्रण में ले लिया और कुछ को परस्पर मिलाकर एक नए संघ का रूप देकर स्वाधीन भारत को एकता के सूत्र में संगठित कर आधुनिक भारत के निर्माण का स्वप्न साकार कर दिया।यद्यपि जूनागढ़ नवाब ने जूनागढ़ को पाकिस्तान में विलय करने का ऐलान कर दियाथा लेकिन वहां की प्रजा ने खुलेआम बगावत कर दी। नवाब पाकिस्तान से किसी प्रकार की सहायता न मिलने के कारण अकूत संपत्ति के साथ पाकिस्तान भाग गया और 9 नवंबर को जूनागढ़ का भारत संघ में विलय हो गया।
दूसरी बड़ी रियासत हैदराबाद थी, जो स्वतंत्र रहना चाहती थी किंतु पटेल ने इसे अस्वीकार कर दिया। हैदराबाद के हालात बहुत ज्यादा बिगड़ने पर सरदार पटेल ने पंडित नेहरू के विरोध के बावजूद जनरल चौधरी के नेतृत्व में ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत हैदराबाद में सेनाओं को भेज दिया। भारतीय सेनाओं ने हैदराबाद की सेनाओं को धूल चटा दी। निजाम की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और 29 नवंबर को निजाम ने विलय पत्र समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस प्रकार हैदराबाद भी भारत संघ में सम्मिलित हो गया।
अब बचा था कश्मीर और वहां के नरेश हरि सिंह भी स्वतंत्र राज्य का सपना देख रहे थे। पाकिस्तान को भनक लगते ही उसने कबाइलियों को उकसाया और कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर नरेश को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भारत सरकार से सहायता की अपील की, तब सरदार पटेल ने कश्मीर को भारत संघ में सम्मिलित होने की शर्त पर समर्थन दिया और 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सैनिकों ने कश्मीर से कबाइलियों को खदेड़ दिया। इस तरह से कश्मीर की स्थिति पर भी नियंत्रण पा लिया गया।
सरदार पटेल ने असंभव को संभव कर दिखाया इसीलिए भारत के इस महान सपूत के लिए लौह पुरुष की संज्ञा विश्लेषण की हर कसौटी पर खरी उतरती है। उनके विराट व्यक्तित्व को शब्दों की सीमा में बांधना संभव नहीं है। (हिफी)

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